चौका छुआई
चौका छुआई
नम्बरदार ठाकुर हरि सिंह के पोते की बारात जब हवेली मे प्रवेश की,महिलाओं ने नव वधू का मंगल गीत गाते हुए स्वागत किया। निछावर लूटने की गरीब गुरबो मे होड़ लग गई । हालाकि अब नम्बरदारि नहीं रही, पर ठसक तो है। ठाकुर साहेब की ज़िद पर उनके इकलौते पोते डॉ राजेश की शादी, गाँव ,पूर्वजों की हवेली से हुई। बहू के आगमन के बाद की सारी रस्मे भी धूमधाम से हुई। ठाकुर साहेब दिल खोल कर खर्च कर रहे थे। उपहारों का लेन देन दरियादिली से हो रहा था।
रस्मे सानंद सम्पन्न हो रही थी। दो दिन बाद बारी आई"चौका छुआई "रस्म की। इसमे नयी बहू से कुछ मीठा बनवाया जाता है। ताकि उसकी परीक्षा हो सके कि नयी बहू पाककला मे निपुण है या नहीं । ठाकुर साहेब का हुक्म हुआ। बहू के हाथ का मूँग की दाल का हलवा बने। डॉ नीरा, नेत्र रोग विशेषज्ञ ,बास्केटबॉल चेम्पियन,कथक नृत्यकला निष्णात ,चौके मे ,सिर ढंके, पिसी मूँग की दाल को, कढ़ाई मे डले शुद्ध घी मे मिलाकर भून रही थी। उसे घेरे खड़ी थी। रिश्ते की ननदे,जेठानिया,चचेरी,ममेरी,फुफेरी सासे किसी बाह्य परीक्षक की तरह नीरा को देख रही थी। वो नीरा जिसके हाथ कभी ऑप्रेशन करने मे नही कांपे,कढ़ाई मे कल्छुल चलाते हुए कांप रहे थे।
ऐसा नही की नीरा ने कभी हलवा नही बनाया। मायके मे कई बार गाजर,रवा का हलुआ बनाया है। (मूँग की दाल का जरुर कभी नही बनाया था)पर तब इतनी आँखो ने उसकी पाक कला का निरीक्षण नही किया था।
एक तो गर्मी, ऊपर से सिर पर पल्ला, भीड़ अलग, पसीने मे भीग गई नीरा, कुछ घबराहट,गाँव का माहौल,औरतो का आपस में धीरे-धीरे बात करना और फिर भेदभरी हँसी की आवाजें । सब मिलकर नीरा को बेचैन कर रहे थे।
उसे अपना आत्म विश्वास गुम होता सा लगने लगा। नहीं बन पायेगा उससे ये हलुआ,आँखो मे आँसू आ गये। इतनी भीड़ मे कोई भी उसका अपना नहीं है। मम्मी की बहुत जोर से याद आने लगी। "कितनी भीड़ कर रही है सबने मिल के।
अरे बहू कोई अजूबा न करे है। हलुआ बना रही है न। चलो सब निकलो बाहर । उसे आराम से बनाने दो। चलो भागो यहाँ से"नीरा की दादी सास जैसे ही चौके मे लाठी टेकती पहुंची,सभी औरतों ने चुपचाप चौका छोड़ दिया। "हाँ बिटिया,थोड़ा और चलाओ,अभी दाल गुलाबी न हुई, अब ठीक शक्कर बस बसमेवा चलाओ कलछुलिहांहांलगे न देव कढ़ाई से। चिंता जिन करो बिटिया,अगर बिगरहे तो हम लच्छू हलवाई के इंहा से शुद्ध घी का मूँग की दाल का ताजा हलवा मंगाय लेब । " दादी के निर्देशन मे नीरा ने "चौका छुआइ"परीक्षा अच्छे अंको से उतीर्ण की। लच्छू हलवाई के यहाँ से हलवा मँगवाने की आवश्यकता नहीं पड़ी।