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Ekta Rishabh

Inspirational

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Ekta Rishabh

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बुढ़ापा तो सबको आता है !

बुढ़ापा तो सबको आता है !

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पिछले कुछ समय से खाँसी बहुत परेशान कर रही थी करुणा जी को। रात को ठीक से सो भी नहीं पाती, जब भी हलकी सी झपकी आये तो खाँसी शुरू हो जाती। घर में सब थे बेटा, बहु, पोता और पोती लेकिन सब अपनी दुनियां में मस्त रहते। हर इतवार घूमना और बाहर खाना पीना। किसी को करुणा जी की कोई ख़ास फ़िक्र नहीं होती थी। बेटे ने डॉक्टर को दिखा दवाई दिलवा कर अपना फ़र्ज पूरा कर दिया था। लेकिन बुढ़ापे के रोग इतनी जल्दी जाते भी नहीं थे।

"आज भी खाँसी रुक नहीं रही थी परेशान हो फ्लास्क में देखा तो गर्म पानी भी नहीं था, धीरे धीरे उठ रसोई में पानी गर्म कर पिया तो थोड़ी राहत मिली बुढ़ापे में नींद भी ज्यादा नहीं आती थी करुणा जी को"।

करुणा जी की खाँसी की आवाज़ से जवान होते पोता पोती चिढ़ते रहते थे बच्चों का कमरा अपनी दादी के कमरे से लगा हुआ था।

"दादी की खाँसी बहुत परेशान करती है माँ, रात को ठीक से सो भी नहीं पाते हम।" पोते जय ने अपनी माँ स्नेहा से शिकायत करते हुए कहा।

"हाँ माँ, भैया सही बोल रहा है" अपने भाई के हाँ में हाँ मिलाती हुई अनन्या ने कहा।

अपने बच्चों की तकलीफ देख स्नेहा को अपनी सास पे बहुत गुस्सा आ रहा था । इतना इलाज कराओ फिर भी दिन रात खाँसते रहती है । अब तो डर भी लगता है कहीं बच्चों और हमें भी ये इन्फेक्शन ना हो जाये। आने दो शाम को रवि को आज ही इनका कमरा पीछे स्टोर रूम में शिफ्ट कर देती हूँ वही खाँसते रहे रात भर। गुस्से से भुनभुनाती स्नेहा ने कामवाली को कह स्टोररूम साफ करवा दिया और रवि का इंतजार करने लगी।

शाम को जब रवि आये तो स्नेहा शुरू हो गई..., ""दिन रात तुम्हारी माँ खाँसते रहती है, मैं तो तंग हो गई हूँ मेरे बच्चे रात को ठीक से सो भी नहीं पाते दिमाग़ फ्रेश नहीं रहेगा तो पढ़ेंगे क्या""?

विवेकहीन हो चूका रवि अपनी पत्नी की हाँ में हाँ मिलाता हुआ बोला। "सही कह रही हो स्नेहा बच्चों की पढ़ाई भी ख़राब होंगी और सेहत भी माँ ने तो अपनी जिंदगी जी ली है बच्चों की तो पूरी जिंदगी पड़ी है "। एक काम करो पीछे का कमरा साफ करवा दो, रवि अपने बच्चों के सेहत का सोच बहुत चिंतित स्वर में बोला।  "मैंने साफ सफाई करवा दी है आप तो बस माँजी को बता देना स्नेहा ने कहा" ।

अपने कमरे में बैठी करुणा जी सुबह से सारी बातें सुन भी रही थी और अपने ह्रदय में मचे हाहाकार को रोक भी रही थी।

" इन निर्मोहियो के सामने एक बूंद आंसू भी अपनी आँखों से गिराना खुद का अपमान करने के बराबर था"।

थोड़ी देर बाद रवि आया अपनी माँ के कमरे में थोड़ी भूमिका बाँधी बात शुरू करने से पहले। खूब समझ रही थी करुणा जी अपने सुपूत को अपनी बीवी का आदेश मान अपनी माँ को स्टोररूम में भेजनें आया था नौ महीने जिसे पेट में रखा था उसके रग रग से वाफ़िक थी वो।

""वो माँ तुम्हारी खाँसी बहुत हो रही है आजकल तो बच्चे ठीक से सो नहीं पा रहे थे, मैं सोच रहा था क्यों ना पीछे वाले कमरे में तुम रह लो वहाँ हवा भी अच्छी आती है और स्नेहा ने बहुत अच्छी सफाई करवा नई चादर भी डाल दी है""।

अपने बेटे के चेहरे को गौर से देखती रही करुणा जी लेकिन कुछ ज़वाब नहीं दिया। चुपचाप अपनी दो साड़ियों और एक थैली हाथों में ले स्टोररूम की तरफ चल दी।

बाहर हॉल में सब बैठे थे स्नेहा, जय और अनन्या। जय बेटा ये ले जय के हाथों थैली पकड़ा करुणा जी ने कहा।

क्या है इसमें दादी? जय ने पूछा।

"नई चादर है बेटा,, जब तेरे माँ बाप बूढ़े हो जाएं और रात रात भर खाँसते रहेंगे तो जाना तो उन्हें भी स्टोररूम में ही होगा बिलकुल मेरी तरह तब काम आयेंगी ये नई चादर। और बहु तू बिलकुल चिंता मत करना, खिड़की से हवा भी बहुत अच्छी आती है अभी रवि ने बताया। एक दिन बुढ़ापा तो सबको आना है ये तो एक चक्र है तो जाना तो तुझे और रवि को भी एक दिन उसी कमरे में होना होगा ना।

इतना कह करुणा जी अपने नये कोने की तरफ बढ़ गई और हाथों में चादर और आँखों में आंसू लिये जय अनन्या, स्नेहा और रवि ठगे से ताकते रह गए करुणा जी को।


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