बुढापे की सनक

बुढापे की सनक

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कहानी ____


   

         उनको अचानक माफी मांगने का रोग लग गया 

। जब तक नौकरी में रहे न माफी मांगते थे न माफ करते थे। पत्नी जीवन भर बात-बात पर माफी मंगती रही पर इनने कभी माफ नहीं किया। 

        जब रिटायर हो गए और घरवाली को भगवान ने उठा लिया तब माफी का मतलब समझ आया। जीवन भर से सुबह जल्दी उठने की आदत थी, उठकर गिलास भर कुनकुना पानी और लोटा भर गरमा - गरम चाय के आदी हो चुके थे.... जब तक नौकरी रही और जब तक घरवाली जिंदा रही तब तक सब समय पर होता था....... जब से रिटायर होकर घर लौटे हैं तो अजीब अनपनापन और अपराधबोध के शिकार हो गए हैं बात-बात में माफी मांगने लगते हैं अब उनको ऐसा लगने लगा है कि माफी मांगने से अपने आप बहुत से काम आसानी से बन जाते हैं तो वे माफी मांगने को कहीं कहीं हथियार के रूप में इस्तेमाल करते हैं। अब उनको भली-भांति समझ में आ गया है कि माफी मांगने की कला वाकई गजब की है इसलिए लोग 'साॅरी - साॅरी और सो साॅरी कह के बड़े बड़ों को चूना लगा देते हैं। 

       उनके माफी मांगने की आदत से मोहल्ले वाले भी परेशान होने लगे थे पर सबसे ज्यादा परेशानी वे झेल रहे थे क्योंकि सुबह पांच बजे नींद खुल जाती और जीवन भर सुबह छै बजे तक एक दो गिलास गुनगुना पानी और लोटा भर गरमा गरम चाय जब पेट में जाकर प्रेशर मारती तो कमोड खुश हो जाता। रिटायर होने के बाद वे दिन अब नहीं रहे...... प्रेशर माफी मांगता, पेट भूखा प्यासा कुनमुनाता और कमोड आंख दिखाता....... 

   बेटा बहू की देर से सोकर उठने की आदत थी और बहू रात को ही किचन में ताला डाल देती थी तब माफी मांगने की कला सुबह सुबह काम आती थी और झटका मारकर चाय कहीं न कहीं मिल ही जाती थी। वे सुबह छै बजे के बाद मोहल्ले के घरों की तरफ तांकने लगते कई बार सफल भी हो जाते। 

     एक दिन बंसल साब के घर की घंटी बजा दी मिसेज बंसल गेट खोलने बाहर निकलीं तो हंसके बोले - भाभी जी मैं आपसे माफी मांगने आया था....... ।

मिसेज बंसल हैरान, परेशान कि ये कहां की माफी सुबह सुबह आ गई बोलीं- किस बात की माफी ? 

इनको तो गरमा गरम चाय पीना था तो कहने लगे - प्यास लगी थी यहां से निकला तो सोचा प्यास भी बुझा लूं और पुरानी माफी भी मांग लूं। जुगाड़ बन गया था पानी आया तो थोड़ा कुनकुना पानी की डिमांड हुई फिर चाय तो आनी ही थी हालांकि मिसेज बंसल ने टरकाने की बहुत कोशिश की पर माफी मांगने की बात मिसेज बंसल के दिल पर लग गई, रहस्य खड़ा हो गया...... रोमांचित हो गई और सुबह से कोई रोमांचित कर दे तो सब कुछ लुटाने में मजा आ जाता है। सो उनने मज़े से चाय भी पी, अखबार भी मुफ्त में पी गए पर मिसेज बंसल के अंदर माफी मांगने की वजह जानने की इच्छा तीव्र हो गई कहने लगी - भाई साब आपने ऐसा क्या कर दिया जो इतने सुबह माफी मांगने आ गये ?  आपको बताना ही पड़ेगा नहीं तो हम दिन भर सोच सोच के परेशान हो जाएंगे। 

     अब वे अपने दिये झटके से ही फंस चुके थे झूठमूठ की बात बनाते हुए कहने लगे - दरअसल बात ये है कि बीस साल पहले आप मोहल्ले की सबसे ज्यादा खूबसूरत महिला मानी जाती थी बीस साल पहले आप दरवाजे पर सजधज कर खड़ीं थीं तो सड़क से निकलते हुए हमने आपकी खूबसूरती का रस ले लिया था तब से आज तक ये अपराधबोध कुलबुलाता रहा। बंसल जी भी भगवान को प्यारे हो गये, आपका अकेलापन देखकर रोने को जी चाहता है। आज सुबह सुबह अचानक याद आया कि वो पुरानी बात पर हमको माफी मांग लेनी चाहिए इसलिए सुबह सुबह माफी मांगने पहुंच गए पर आपके हाथ की गरमा - गरम चाय पीकर दिल खुश हो गया। सुबह सुबह किसी महिला के सामने उसकी तारीफ करते हुए दिल की बात आ जाए तो माफी - आफी एक तरफ भाड़ में गई बन जाती, बातों-बातों में मजा आने लगता है ऐसई कुछ मिसेज बंसल को महसूस हुआ कहने लगीं - अरे छोड़िए ये माफी - आफी.... ये बताईये कि रिटायर लाईफ कैसी चल रही है ? बस क्या था मिसेज बंसल ने उनकी दुखती रग में हाथ रख दिया था, बांध फूट पड़ा था कहने लगे - जीवन भर न किसी से माफी मांगी और न किसी को माफ किया... ये बुढ़ापा क्या न करा दे, बहू - बेटा सुबह देर तक सोते रहते हैं पर हमारी सुबह जल्दी उठने की आदत रही, नौकरी में खूब नौकर - चाकर मिले घर वाली भी माफी मांग मांग कर खूब सेवा करती रही जब से भगवान उसको अपने साथ ले गए तब से हमें माफी मांगने का रोग लग गया,हांलाकि कि मरना सबको है मौत अवश्यंभावी है लेकिन मौत से आखिरी दम तक युद्ध किया जा सकता है, यह जीवन मधुर है बड़ी मुश्किल से मिलता है ईश्वर ने जब ये जीवन दिया है तो आनंद पूर्वक जीओ और जब मरने का मूड हो तो लगे हाथ हम मरने की कला भी मुफ्त में बता देते हैं क्योंकि आजकल यमराज बदल गया है कितनी भी माफी मांगो ध्यान देता ही नहीं है इसलिए अब लोगों ने मरने का तरीका बदल दिया

 है।रात में सोये और बिना बताए चल दिए. कहीं टूर में गए और वहीं दांत निपोर के टें हो गए. न गंगा जल पीने का आनन्द उठाया न गीता का श्लोक सुना....अरे ऐसा भी क्या मरना!


पहले मरने का नाटक कर लो थोड़ी रिहर्सल हो जाए, नाते-रिस्तेदार सब जुड़ जाएँ, पहले से रोना-धोना सुन लिया जाय. कुछ अतिंम इच्छा पूरी हो जाए, भई मरना तो सभी को है तो तरीके से मरो न यार!


घर वालों को मोहल्ले-पड़ोस से पर्याप्त सहानुभूति वगैरह मिल जाए, अब तुम तो जा ही रहे हो कुछ पडो़स वालों को भी डरा दो कि लफड़ा किया तो भूत बन के निपटा दूंगा. यदि दिल के कोई कोने में कोई बचपन की पुरानी प्रेमिका छुपी रह गई हो तो उसको भी कोई बहाने से बुला लिया जाए, बुलंद इमारत के खण्डहर में भी ताकत होती है. 

जश्न मना के मरने का तरीका होना चाहिए, मरने के पहले अड़ जाओ कि आज ही ५०० लोगों को जलेबी-पोहा मेरे सामने खिलाओ। ऐसे अनेक अविस्मरणीय मजेदार किस्सों के साथ मरोगे तो मरने का अलग मजा आएगा, और माफी-आफी मांगने की जरूरत नहीं पड़ेगी....... 

    

      सुनते-सुनते मिसेज बंसल अंगड़ाई लेने लगीं थीं, उन्होंने 'उनकी' आंखों में झांक कर देखा तो खतरा नजर आया..... माफी-आफी मांगने से अब काम नहीं बनेगा इसलिए वे पेशाब करने के बहाने सड़क तरफ निकल गये। पौरुषग्रंथि की खराबी से लीकेज बढ़ गया था.... उनको लगा कि मिसेज बंसल का सोफा जरूर गीला हो गया होगा...........पर अब वो माफ नहीं करेंगी तब क्या होगा? 



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