बटवारा(लघुकथा)
बटवारा(लघुकथा)
सीता चुपचाप आंगन में बैठी थी । कुछ सोचती हुई दिखाई पड़ रही थी । चेहरे पर उदासी छाई थी आँखें नम हो रही थीं ।पास ही कमरे में उसका पति घनश्याम सोया था ।वह अक्सर बीमार ही रहता था समय ने उसे बीमार बना दिया था दूसरी तरफ के कमरे में से बातचीत साफ सुनाई दे रही थी तभी सीता का ध्यान बातचीत की तरफ गया। वह अपनी आँखें फटी हुई साड़ी की आँचल से पोंछती हुई उठी तथा कमरे के दीवार से सटकर खड़ी हो गई तथा बातचीत सुनने लगी
"तुम्हारा क्या विचार है,रवि ? यह उचित रहेगा ?" अनिल बोला । अपने भैया अनिल की बात सुनकर रवि बोला "हां, भैया आपका कहना सही ह
ै माँ-बाबूजी को अलग कमरा दे देंगे और प्रत्येक महीना 1000 रुपये लाकर दे देंगे तो माँ बनाकर खा लेंगी"अपने छोटे भाई रवि की बातें सुनकर अनिल बोला" तब ठीक है, अब ऐसा ही होगा" । इसके बाद कमरें में थोड़ी देर तक खामोशी रही फिर रवि बोला "भैया,माँ से पूछ लें?" अपने छोटे भाई की बात सुनकर अनिल बोला "माँ से क्या पूछना ? वो तो इंकार ही नहीं कर सकती।" अपने बेटों की बात सुनकर सीता को धक्का लगा, क्योंकि आज वह अपने बेटों की नजर में अपनी अहमियत खो चुकी थी, और इसका कारण था बंटवारा और घर के बंटवारे के साथ ममता का भी बंटवारा हो चुका था।