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भिखारी

भिखारी

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"बाबू जी, मुझे कुछ खाने को दे, दो बहुत ही तेज भूख लगी है"दस साल का एक बच्चा भीख मांग रहा था इतनी तेज धूप में भी वह बालक बिना सेहत की परवाह किए हर आने-जाने वाले यात्रियों से यही कहता रहता था शायद, यही उसकी नियति भी बन गई थी कभी-कभी कुछ सज्जन लोग दया करके उसकी भूख को शांत करा देते थे रुपये देकर, लेकिन समाज में हर कोई एक जैसा नहीं होता है और शायद यही कारण है की आज उसकी झोली में कुछ भी नहीं आया था सिवा लोगों की फटकार के तभी शहर के नामी होटल के सामने एक चमकती महंगी कार आकर रुकी उसमे से एक महाशय उतरे और उस भिखारी बालक को लगा शायद कुछ खाने को मिल जाए अतः वह दौड़कर गया और पास आकर बोला"बाबूजी, कुछ खाने को दे दो, बहुत तेज भूख लगी है"इतना सुनकर वह महाशय उसे डांटते हुए बोले-

"चल हट, भिखारी कही का, ना जाने कहाँ-कहाँ से आ जाते हैं"लेकिन वह बालक उनका पैर पकड़कर रोने लगा और बोला", बाबूजी, सुबह से कुछ नहीं खाया है पेट में दर्द हो रहा है, कुछ भी खिला दो"लेकिन इतने पर भी उनका हृदय नहीं पिघला और वह उसे धक्का देकर चले गए

तभी उस बालक की नजर बासी फेकी हुई दो रोटी पर गई वह प्रसन्न हो गया और उसे उठाकर जैसे ही उसे खाने वाला था तभी एक कुत्ता आकर उसके पास बैठ गया, जो

भूखा था और उसकी आँखों से आसूँ

टपक रहे थे उस बालक की नजर जैसे ही उस पर गई दो भूखे प्राणी एक-दूसरे की भावनाओं को समझ गए

अतः उस भिखारी बालक ने दोनों रोटी उसे दे दी तभी वो महाशय बाहर निकले, तो उन्होंने देखा की उनकी गाड़ी के पास बैठा वह भिखारी बालक उस कुते से बोल रहा था"खा ले, तू भी तो भूखा ही होगा ना ?मेरी तरह, और मेरा कौन है ?कोई तो नहीं है मैं भूखा भी तो रह सकता हूँ और जिसने मुझे सड़क से उठाकर पाला-पोसा है वह तो गुजर गया है और वैसे भी भूखा रहना और आधी पेट खाना मेरे लिए कोई नहीं बात नहीं है"इतना कहकर उस भिखारी बालक के नयन सजल हो उठे और दो बूंद टपक पड़े।

इतना देखकर वह महाशय बहुत ही शर्मिंदा हो गए

यह उन्होंने क्या कर डाला ?पैसा और शोहरत की अहंकार में मानवता और भावनाओं को भी कुचल डाला

और वह उस भिखारी के सामने खुद को भिखारी समझ रहे थे जो स्वयं भूख से पीड़ित होकर भी दूसरे प्राणी को अन्न दे रहा था अतः वह उसके पास जाकर बोले"बेटा, मुझे माफ कर दो तुम्हें भूख लगी है ना ?यह लो कुछ रुपये और आराम से खाना खा लो और मुझे माफ कर देना"इतना कहकर उन्होंने उस भिखारी के माथे पर प्यार से हाथ रखा और गाड़ी में बैठकर चले गए और वह भिखारी बालक हैरानी के साथ उस गाड़ी को तब तक देखता रहा जब तक वह गाड़ी उसकी आँखों से ओझल ना हो गई।


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