Prabodh Govil

Drama

4  

Prabodh Govil

Drama

बसंती की बसंत पंचमी - 4

बसंती की बसंत पंचमी - 4

2 mins
245


श्रीमती कुनकुनवाला सुस्ती को दूर भगा कर किचन में घुसने का साहस बटोर ही रही थीं कि फ़ोन की घंटी बजी।

उनका मन हुआ कि फ़ोन न उठाएं। कोई न कोई सहेली होगी, और बेकार की बातों में उलझा कर उनका सुबह- सुबह काम का सारा टाइम खराब कर देगी।

लेकिन जब रिंग एक बार बज कर दोबारा भी उसी मुस्तैदी से बजनी शुरू हो गई तो उन्हें फ़ोन उठाना ही पड़ा।

उधर से उनकी सहेली श्रीमती वीर बोल रही थीं। तुरंत बोल पड़ीं- बस- बस, आपका ज़्यादा समय नहीं लूंगी, केवल इतना कहना था कि आपकी काम वाली बाई आए तो उसे मेरे यहां भी भेज देना।

श्रीमती वीर का फ़ोन हमेशा इसी वाक्य से शुरू होता था कि आपका ज़्यादा समय नहीं लूंगी, और फ़िर आधा घंटा आराम से बात करते- करते गुज़र जाता था।

मगर आज तो बात दूसरी ही थी, श्रीमती कुनकुनवाला ने जैसे ही बताया कि उनकी बाई ने काम छोड़ दिया है तो

दोनों में ही मानो बोलने की स्पर्धा शुरू हो गई। दोनों अपनी- अपनी बाई की यादों में ऐसी खो गईं कि समय का पता ही नहीं चला।

श्रीमती वीर की बाई ने भी काम छोड़ दिया था। और कोई दिन होता तो शायद श्रीमती कुनकुनवाला उनसे ये कहतीं कि अपनी बाई को मेरे घर भी भेज देना, पर अब तो इसका कोई अर्थ ही नहीं था। दोनों ही बाई विहीन हो गई थीं।

दुख यदि केवल अपना हो तो बड़ा दिखता है पर यदि अपना जैसा कोई और दुःखी दिख जाए तो भारी तसल्ली मिलती है।

...लो, उन पर जैसे गाज गिरी। ...(जारी)


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama