बसंत पंचमी
बसंत पंचमी
आज बसंत पंचमी थी। मेरे मोहल्ले मे एक छोटा सा प्राइमरी स्कूल हैं जिसमें सभी जाती के बच्चें पढ़ते हैं
मौसम ठण्ड था
ठंडी हवाएं चल रही थी। हवा के चलने पर कनकनी महसूस हो रही थी। स्कूल के अगल बगल में चौर था जिसमे खेसारी सरसों मटर की फसलें थी। बसंत के आगमन की खुशी फसलों मे भी दिख रही थी। उनके फूल बड़े मनमोहक लग रहे थे। चलता हुआ मुसाफिर भी उसमें रुक कर एक सेल्फी लेना ना भूलता। आज बसंत पचमी में स्कूल को सजाया गया था। स्कूल के मेन गेट पर केले के दो थंब लगे थे एक छोटे-मोटे स्टेज पर मूर्तिया रखी हुई थी।
प्रसाद कट रहे थे लड़कियाँ बड़ी फुर्ती से प्रसाद काट रही थी। कोई गाजर तो कोई किसोर तो कोई बुनिया डाल कर पैकेट बना रहा था।
छोटे छोटे बच्चों में बड़ा उत्साह था।
मैंने देखा प्रसाद के लाइन में छोटे-छोटे सभी जाति के बच्चे प्रसाद लेने के लिए खड़े थे। बच्चों में प्रसाद को लेकर अजीब सा कौतुहल था। इन सब बातों में जो बात मेरी आँखों को ठण्ड दे गई वो यह बात थी, यहाँ पर ना कोई मुस्लिम था ना कोई हिन्दू। सब में भक्ति भाव था, भले वो प्रसाद के लालच में ही क्यों ना हो, पर सब एक थे। सब में भाईचारा था क्योंकि वो एक स्कूल के छात्र छात्रा थे।
हम भी तो एक देश के वासी है। क्या हम भी भाई चारा क़ायम नहीं रख सकते उन बच्चों की तरह।
