बस एक मौका और !
बस एक मौका और !
इतनी देर कहां थी ? जब भी घर आता हूं ,मिलती ही नहीं हो, रोज़-रोज़ कहां चली जाती हो , किस-किस आशिक से मिलने जाती है ? कितने पाल रखे हैं ? कितनी देर से तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूं और तुम हो कि...
आप ऐसा क्यों कहते हैं जी, मैं तो अभी दस मिनट पहले ही तो पड़ोस वाली रुखमा चाची के यहां गई थी उन्होंने बुलाया था इसलिए। सब जानता हूं मैं रुखमा चाची का तो बहाना है, पता नहीं कहां-कहां मुंह मारने जाती हो। आप इतना शक क्यों करते हैं ? हमने प्यार किया था तभी तो शादी की फिर भी ये सब ? ओह, गाॅड ।
गौरी, मैं सब जानता हूं, प्यार किया था इसलिए अब तक तुम्हारी इन बेहूदा हरकतों को झेल रहा हूं, अभी ये लोग बात ही कर रहे थे कि रुक्मा चाची आ गई, क्या है रे लछमन, काहे इतना चिल्ला रहे हो ? कबसे सुन रही हूं तुम्हारे जोर-जोर से चिल्लाने की आवाज़ ।
चाची, तुमको कुछ पता भी है, ये क्या-क्या करती है ? कहां - कहां जाती है ? आँफिस से आता हूं, कभी घर पे नहीं मिलती, पता नहीं क्या-क्या...
अरे नासपीटे, कुछ सरम कर, मैं सब जानती हूं तेरी नौटंकी, तेरा बाप भी यही तो करता था...कितना सकी था बिमला को जान गंवानी पड़ी उसके सक के चलते, मर्दुए तू भी तो यही कर रहा है।
चाची, तुमको कुछ मालूम नहीं इसलिए ऐसी बातें कर रही हो वरना
वरना क्या रे करमजले मुझे नहीं मालूम, तो भला किसे मालूम, तुझे ?
अभी भी ये कहां थी ? पूछो इसे
क्या पूछूं... कहां क्या, मेरे घर थी मैंने बुलाया था, चावल बीनने थे, मुझ मरी को दिखता नहीं, गोमती मायके गई हुई है। लछिया, तू ऐसा कैसे हो गया ? हीरे जैसी भगवान ने पत्नी दी पर कदर नहीं।
चाची, कहीं तुमने ही तो शह नहीं दे रखी है ?
अरे निगोड़े, तुझे यह सब कहते हुए कुछ लाजसरम है कि नहीं ? कुछ भी अंट-संट बकता रहता है, अरे मुए, उसकी लाठी से डर।
उसकी क्या, मैं तो तेरी लाठी से भी डरता हूं, चल आज तुमने बुलाया था इसलिए तेरे घर पर थी लेकिन इसका तो रोज का ही फंडा है, कभी घर पे नहीं मिलती, पूछ इसे।
मैं सच्ची कह रही हूं आपके घर के अलावा मैं कहीं नहीं जाती अगर कहीं जाती हूं तो आपके साथ ही तो जाती हूं, इनको पता नहीं किस बात का वहम है ? और तो छोड़िए - कचरे वाला आता है, उसे डब्बा देने और लेने तक में एकाध मिनट लग जाता है, उसके लिए भी गुस्सा, उस दिन तो बेचारे को थप्पड़ मारकर भगा दिया सोसायटी ने वार्निंग दी और माफ़ी मांगने को कहा वो भी लिखित में, वो तो मैंने लिख दिया इनके नाम से, उसने तो कचरा ले जाना भी बंद कर दिया था। आप ही बताओ, मैं क्या करती ? ये हैं कि उसपे भी शक तो करते हैं ही, गुस्सा भी करते हैं। इनके रोज़ के इस तरह के रवैए से परेशान हो गई हूं, शादी को दो साल हो गए हैं मैंने एक भी ऐसा दिन नहीं देखा जिस दिन किसी न किसी को लेकर इल्ज़ाम न लगाए हों। चाचीजी, मुझे तो कहते हुए भी पता नहीं कैसा लगता है...किसी और की बात तो छोड़ दीजिए,अपने सगे भाई और मेरे चचेरे भाई के लिए भी कितना जहर उगलते है किसी के बारे में इल्ज़ाम लगाते नहीं चूकते। यह तो फिर भी बर्दाश्त कर लेती हूं लेकिन इनके शक करने की कोई सीमा नहीं, इन दोनों को डांटा, झगड़ा भी कर लिया...पता है क्या कहा था अपने ही भाई को, तू मेरी एब्सेंस में ही आता है ताकि तुम दोनों मज़े कर सको, तुम दोनों कैसे देखते हो एक-दूसरे को... छि: मेरे चचेरे भाई को भी कितना गंदा बोला - अरे भाई, भैया की आड़ में सैंया..मज़ा तो बहुत आता होगा, ओह, इतना सब होने के बावजूद मैं इस आदमी के साथ हूं...लेकिन अब बस, बहुत संभाला, एक मानसिक बीमार समझकर हर तरह से इनकी मदद करनी चाही, जितना दबती हूं। इस आदमी को लगता है मेरी न तो कोई डिग्निटी है और ना ही कोई करेक्टर,आप गवाह हैं जो भी काम होता है या कहीं जाना होता है तो आपके साथ है तो जाती हूं लेकिन इस शक्की आदमी को को कैसे समझाऊं और कैसे बर्दाश्त करूं। अब तो सब मेरे बूते के बाहर की बात है, आपके कहने पर मैंने बहुत कोशिश की लेकिन मेरी तो वो लिमिट भी खत्म हो गई है। बस..अब बिल्कुल बस, मुझे अब तलाक चाहिए...अरे यार, अपनी लव मैरिज थी..शादी से पहले एक साल भर साथ घूमे हो तब मेरा करेक्टर समझ में नहीं आया था तो शादी के बाद एक ही दिन में सब समझ में आ गया। जो पहले दिन से ही तुम्हारे नाटक शुरू हो गए थे क्या गुजरी होगी मुझ पर...कभी सोचा ?
आय ऍम सौरी, पता नहीं मुझे क्या हो जाता है पर यह सच है - मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं इसलिए कोई भी तुम्हारे पास रहे या तुमसे हँसी -मज़ाक करे मुझे सहन नहीं होता, तुम ऐसे लोगों को नहीं जानती तुम्हें आगाह करना, तुम्हारी रक्षा करना मेरा फ़र्ज़ है और तुम बात को कहां की कहां ले जा रही हो। तलाक लेने की बात कर रही हो, तुम्हारे बिना मर जाऊंगा, प्लीज़ अलग होने की बात मत कर। तुम मेरी जिन्दगी हो और तुम ही अलग होने की बात करती हो, कैसे जीऊंगा। चाची तुम ही कुछ समझाओं ना, तुम तो बचपन से मुझे जानती-समझती हो।
जानती-समझती हूं तभी तो तुमसे बात कर रही हूं ,अरे करमजले कुछ तो सुधरने की कोशिश कर। अब तो मैं कुछ ना कर सकूं, जैसा गौरी को करना करे।
नहीं चाची, ऐसे मत करो, तुम्हें गौरी बहुत मानती है इसलिए इसे समझाओ ना...प्लीज़ चाची।
एक बार कह दी ना, खुद ही निपटो छोरी का दोस नाय।
ओओओ,गौरी प्लीज़ , कहते-कहते गला भर आया।
मैंने भी तो प्यार किया है और करती हूं, इस प्यार की ख़ातिर ही तो सब सहती आई हूं वरना...
ठीक है इसी प्यार की ख़ातिर एक मौका और दे दो। सुनकर कुछ न बोली, यूं ही चुप्पी छाई रही फिर गौरी ने कहा - देखो घर तो मुझे भी अपना नहीं तोड़ना है और न ही अपने प्यार को छोड़ना है , बस तुमसे इतनी उम्मीद रखती हूं और गुजारिश करती हूं - शक करना छोड़ दो वरना न चाहते हुए भी तुम्हें छोड़ना पड़ेगा। अब सब तुम्हारे हाथ में है फिर भी सब मंज़ूर है पर अब कभी शक को हमारे बीच में आने न देना कहते-कहते गौरी रो पड़ी लक्ष्मण भी खुद को संभाल नहीं पा रहा था फफकते हुए गौरी को अपनी बाहों में भर लिया ये सब देखकर चाची की आँखें भी गंगा-यमुना हो रही थी और दोनों को एक साथ अपनी बाहों में समेटने की असफल कोशिश करते हुए लक्ष्मण से बोली - रे नासपीटे , निगोड़े , करमजले , माटीमिले , मुए - मर्दुए , कीड़े पड़ेंगे जो अभी फिर कभी सक किया।
चाची, जैसा गौरी चाहेगी, तुम कहोगी वही होगा..बस एक मौका दें दो मुझे ,प्लीज़ माँ। आज पहली बार चाची ने लछिये के मुंह से माँ सुना तो मानो उसकी कोख अब बांझ न रही..रे मेरा बच्चा लछिया ,माटीमिले तू जुग-जुग जीए नासपीटे और फिर फफक-फफक के रोती रही लक्ष्मण और गौरी दोनों उसके आँसू पोंछ रहे थे मगर उन दोनों के आँसू भी थम नहीं रहे थे, ऐसे में भी लक्ष्मण सिसकते-सिसकते बोला - बस माँ ..गौरी से कहो - मुझे एक मौका और दे दे प्लीज़।