बरगद की छांव
बरगद की छांव
“आज गर्मी कुछ ज़्यादा ही लग रही है।“
“ हाँ, “
राम प्रसाद जी ने इधर उधर देखते हुए कहा l“ तो तनिक विश्राम ही कर लो, आओ बैठ जाओ, पथिक मैं बड़ी देर से आपका पथ निहार रहा था l घबराओ नही मैं ही बोल रहा हूँ, तनिक बैठ अपनी थकान तो उतार लो,और कुछ अपनी कहो और कुछ मेरी सुनो।“ गर्मी से थकान और प्यास के मारे राम प्रसाद जी की हालत काफ़ी ख़राब हो रही थी l दो मिनट सोचने के बाद बोले,” चलो भाई दो मिनट तुम्हारे पास बैठ कर ही सुस्ता लेता हूँ।“ कहते हुए सिर से गठरी उतार वहीं बैठ गये और ठण्डी सांस लेते हुए बोले, “ अच्छा अब अपनी कहो, मैं सुन रहा हूँ।“
पथिक आप सोचते होगे मैंने अभी तक अपना परिचय नहीं दिया या देना ही नहीं चाहता, लेकिन ऐसा हरगिज़ नहीं है l मैं तो काफ़ी असमंजस में पड़ गया हूँ क्या कहूँ और क्या न कहूँ हज़ारों साल बीत गयें हैं और मैं आज भी उसी पथ पर खड़ा हूँ l या फिर
राम प्रसाद जी ने सुराही से ठंडा पानी पिया और उसकी बातों में दिलचस्पी लेते हुए बोले, “ अपने बारे में कुछ और बताओ।“
श्रीमान, मैंने उस हिंदुस्तान को बनते और बिगड़ते देखा है l कई सल्तनतें बुलन्दी पर पहुँच ख़ाक होते भी, कई महाराजाओं की ताजपोशियाँ भी देखीं लेकिन साथ
साथ यह भी देखा कि कोई भी इस काल चक्र से बच नहीं पाया l आज मैं बूढ़ा हो चुका हूँ l मेरी कई शाखाएँ समय की धारा के साथ नम हो गयीं हैं गर्मीं के कारण
मेरे कई अंग झुलस चुकें हैं l पर फिर भी मैं अपनी जगह पर अटल २१स्वीं सदी को खड़ा देख रहा हूँ l उस समय और आज की सदी मैं बहुत अंतर है l
जी हाँ, सही पहचाना आपने, मैं ही बरगद का पेड़ हूँ जो आप से बातें कर रहा हूँ l राम प्रसाद जी ने अबकी बार उस बरगद के पेड़ को अच्छे से देखते हुए इस तरह कहा जैसे वह एक इंसान हो,” तो आपने काफ़ी कुछ देखा है, मैं वह सब जानने का इच्छुक हूँ l
श्रीमान तो सुनिए, “ मेरा जन्म उस समय हुआ जब शेर शाह सूरी नामक राजाकी हुकूमत थी l शेर शाह ने पेड़ लगाने का फ़रमान ज़ारी किया था l बस फिर क्या
था l हज़ारों की तादाद में पेड़ दिल्ली और आगरा के बीच लगने शुरू हो गये l उस समय मैं एक नन्ही सी कोपल के रूप में बहुत ही कोमल सा था l और तब तो मैं ठीक से खड़ा भी नहीं हो पा रहा था, राजघराने के माली ने मुझे अपने हाथों में ले बड़े दुलार से देख कहा,
“कभी तो तुम भी बड़े हो बरगद का रूप ले लोगे।“
और फिर प्यार भरी नज़र से देख वहीं रोप दिया,पानी भी पिला दिया l दिन हफ़्ते महीने और फिर साल बीतने शुरू हो गये l समय पैरों में पहिये लगाये आगे बढ़ने
लगा l मुग़लों का राज्य अपनी जड़े मज़बूत करता दिखाई दे रहा था या यूँ कहिये मुग़लों की सल्तनत का सूर्य उदय होने को तत्पर था l इंसान की फितरत देखो, वह
पहले भी और आज भी स्वार्थी रहा है l महत्व आकांक्षी या निपुण प्रशासक न होने के कारण, शौहरत एश्वर्य हासिल करने के लिए अपने खून के रिश्तों को हमेशा खत्म
करता आया है l यही हाल मुग़लोंका भी हुआ l
छ: पीढ़ियों ने हिंदुस्तान पर हुकूमत के झंडे फहराए,और सातवीं पीढ़ी के आते ही मुगलों का राज्य लंगड़ा होते दिखाई
देने लगा l उधर ईस्ट कंपनी ने काफ़ी हद तक अपनी जड़ें मज़बूत कर लीं थीं l चारों दिशाओं में अंग्रेजी हुकूमत के झंडे दिखाई देते थे l अंग्रेजों ने भी हिंदुस्तान
पर २०० साल राज किया l आज़ादी के परवानो ने शहादतें देने के बाद भारत अपने वतन को अंग्रेजों के चंगुल से आज़ाद करवाया l सन १९४७ में देश आज़ाद हुआ ही था
की एक और जंग का ऐलान हो गया,लगता था यहाँ की धरती लहू की प्यासी थीप्यास बुझाने के लिए देश का बटवारा हो गया l वह था हिंदुस्तान और पाकिस्तान
जो आज भी अपने मन में एक दूसरे के लिए नफ़रत की आग सुलगाये बैठें हैं l
राम प्रसाद ने अब आज की सदी के बारे में उसके विचार जानने की इच्छा जताई और बोले,” चलो वह तो बीत गया पर आज की सदी के बारे में क्या ख्याल है “l
अभी इतना ही पाए थे कि बरगद ने झट से कहा,” आज की सदी के लोग दो वक्त की रोटी कमाने में इतने व्यसत हैं कि मेरे पास रुक कर खड़े होने तक का वक्त की
कमी हो गई हो या फिर वक्त वहीं ठहर गया l पर आज जब मैं उस वक्त को याद करता हूँ तो सोचे बिना नहीं रह सकता कि राजा महाराजा बहुत बड़े साम्राज्य को
सम्भालते थे, समय पर खानपान करते थे l पर आज जब इंसान तरक्की के शिखर पर ( चाँद पर ) पहुंच गया है तो भी उसकी लालसा और बढ़ने की वजह से प्रकृति
से खिलवाड़ से नही चूकी l
तकनीकी और आधुनिक युग खूबसूरत तो है पर जब इसके परिणामों के बारे में सोचता हूँ तो रूह कांप उठती है, क्योंकि आनेवाली पीढ़ियों को इस का भुगतान करना पड़ेगा l पर्यावरण बहुत ज़्यादा दूषित हो चुका है मेरे भाई बहनों को काट काट कर मौत के घाट उतार दिया गया है l मैं आक्सीजन देना चाह कर भी उतनी मात्रा में नहीं दे पा रहा हूँ जितना देना चाहता हूँ l मेरे आस पास देखो,मिट्टी भी दूषित हो चुकी है l मेरी निग़ाह जहाँ तक जाती है मुझे ईंट गारे के सिवाय कुछ और नज़र नहीं आता हर तरफ़ हरियाली को काट काट कर बड़ी बड़ी इमारतें बन रहीं हैं और अब तो एक घुटन सी महसूस होने लगी है l घन घन मशीनों की आवाज़ कांपती धरती एक डरावने सपने से भैया कम नहीं लगता l हर वक्त खौफ़ बना रहता है,मैं तो हर वक्त दिल थामें रहता हूँ कहीं मेरा यह वजूद ही न मिटा दें, और बड़ी मशीन के साथ इन ऊँचीं इमरतों के नीचे ही न धस दें l क्यूंकि आज का मानव खुद एक मशीन बन चुका है,इसका दिल पत्थर का हो गया है इसके पास समय का आभाव इतना बढ़ गया है उसे मेरे होने या न होने का कोई फर्क नही पड़ता l मैं तो अपने जीवन के अंतिम चरण मैं हूँ,कोशिश कर रहा हूँ कि अगर कोई भी मेरे पास छाया के
लिए गर्मी से बचने के लिए या घड़ी दो घड़ी सुस्ताने को बैठ जाए तो मैं उसे ठंडक दूँ जिसकी कामना लेकर वह मेरे पास बड़ी आस लगा कर आया है l
जो भी कर सकूं आप लोगों के लिए या अपनी जन्मभूमि के लिए कर सकूं अंत में यही ख़ुशी होगी किमेरा जीवन व्यर्थ नही गया मैं भी किसी के काम आ सका।“
राम प्रसाद जी अपनी आँखें पोंछते हुए बरगद की तरफ़ देखते हुए बोले,” भय्या बरगद आज मैं तुम से कुछ सीख कर जा रहा हूँ और कसम लेता हूँ की गाँव जा
कर वृक्ष लगा अगली पीढ़ी के लिए कुछ छोड़ कर ही जाऊंगा।“