Neena Ghai

Drama

5.0  

Neena Ghai

Drama

सफर

सफर

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आज लाला जी की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था, घर में रिश्तेदारों और जानकारों की चहल पहल, सारी तरफ़ ख़ुशी का माहौल एक तरफ़ टेंट लग रहे थे तो दूसरी तरफ़ हलवाई बैठा शादी की मिठाई बना रहा था। हर कोई अपना अपना काम कर रहा था l घर में जैसे खुशियों का जैसे सैलाब आया हुआ था l सब कुछ लाला बिहारी लाल की देख रेख में ही हो रहा था l अपनी इकलौती बेटी पूनम की शादी कर रहे थे l यह वह सन्तान थी जिसे न जाने कितनी मन्नतें मांग कर माता रानी से मिली थी पूनम --- बेटी थी l पराया धन सुन सुन कर बचपन की दहलीज़ पार कर आज अपने बाबुल का घर छोड़ एक अनजान सफर की तैयारी कर जा रही थी अपना नया संसार बसाने l सब खुश थे l

पूनम को हर रस्मों रिवाज निभाते हुए अपने घर जाना था l अपना घर सोच कर पूनम खामोश नज़रों से आज उस दरो दीवार को देख रही थी जहाँ उसने होश सम्भाला था, जिस घर से कभी अकेले उसने दहलीज़ पार नहीं की थी आज उसे हमेशा के लिए अनजान राहों पर चलने के लिए छोड़ कर जा रही थी l सोच कर ही पूनम ने बदन में अजीब कंपकपी के साथ गुदगुदी सी महसूस की l

बारात आई सब रस्में बड़े शौक से निभाई गयीं, फिर वह घड़ी भी आ गई जब उसे उन अपनों को छोड़ कर जाना था एक ऐसी राह पर जहाँ राहगीर भी अनजान थे l अपने ही माता पिता ने उसका हाथ एक अनजान शख्स के हाथ में दे कह दिया, “ जा बेटा अपना घर इसके साथ बसा “ l यह वही माँ थी जिसकी रसोई उसी पूनम से चलती थी l पिता के आंगन की रौनक थी पूनम ! और तो और, तबेले में बंधी गौरी उसकी गाय भी उसी के हाथ का चारा खाती, किसी और के हाथ से खाना उसे गवारा ही न था l यही नहीं उसकी अपनी गुड़ियां भी उसका साथ न दे,एक तरफ़ आले में खामोशी साधे बैठी थीं l

तारों की छांव में पूनम की विदाई होने वाली थी l पूनम एक अनजान सफ़र करने जा रही थी, सब अजनबी थे, कोई भी अपना न। एक अनजान सफ़र, हमसफ़रभी अजनबी जाना था दूर, यह भी नहीं पता था किदिल कहाँ और कैसे लगाना था l वापिस आने का कोई रास्ता भी न था l यह नया रास्ता काँटों भरा होगा या फूलों की तरह नर्म, इसी कशमकश में पूनम को मालूम भी नहीं हुआ और उसने अपने पिता की दहलीज़ लाँघ एक नये और अनजान सफ़र की डगर पकड़ ली l

नई जगह, नया घर, नये लोग, अजनबी हमसफ़र l कुछ डरी, कुछ सहमी पूनम ने नये घर में कदम रखा, नये घर में भी पूनम की रस्मों रिवाजों के साथ आगमन हुआ l जैसे ही नये घर की चौखट लांघ पूनम अंदर आई उसके कानों में बात पड़ी,” अभी दूसरे घर से आई है, समय तो लगेगा इस घर की बनने में “ l पूनम के मन और ज़हन में बिजली कौंध गई,माँ की आवाज़ कानों में गूंजने लगी,” जा पूनम बेटी अब तूं अपने घर जा।“

अब पूनम सोचने पर मजबूर है उसका अपना घर कौन सा है ? जहाँ बचपन बीता या जहाँ से अनजान सफ़र शुरू करना है l      


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