आवारा बादल
आवारा बादल
मैं एक आवारा बादल जिसका धरती से कोई लेना देना नहीं , क्योंकि मुझे मालूम है कि न तो धरती का इस आकाश से मिलन होगा और न ही मैं इस धरती पर जाने वाला हूँ l यही सोच अपनी भरपूर जवानी के नशे में मदमस्त और अपने सफ़ेद रंग पर गुमान करते हुए सारे गगन में विचरण करता फिरता l मेरा न कोई मकसद ,न कोई मन्जिल lएक दि लापरवाह बच्चे की तरह मैं अपनी ही धुन में खोया हुआ घूम रहा था ,कि अचानक मेरी नज़र दूर एक काले बादल पर पड़ी l उसे देख मैं दंग रह गया , वह बड़े ही सहज स्वभाव का मालिक प्रतीत हो रहा था l अपने स्वभाव के अनुकूल वह अपनी गति से आगे बढ़ता चला जा रहा था l शायद अपनी मन्जिल तक का रास्ता बड़ी गम्भीरता से तह कर रहा था l उस काले बादल को देख मैं न जाने क्यों अपनेआप को पहली बार छोटा महसूस करने लगा l मैं अपने इस धवल रंग पर बिना किसी मकसद घमण्ड में चूर आवारा घूमता ,और आज मैंने उस श्याम रंग बादल को जो जल से भरा पूरा था ,आज जब उसे मैंने उसे गौर से देखा तो मुझे अपना खालीपन महसूस होने लगा , बिलकुल ठीक उस मुहावरे कि तरह
“ थोथा चना बाजे घना “l
यही नहीं ,उस सफ़ेद चमकती लकीर जो पारे के सामान नज़र आ रही थी ,उसने तो मुझे पूरी तरह से झंझोड़ कर रख दिया l मन ही मन सोचने लगा कि उस परम पिता परमेश्वर ने तो हर चीज़ में सिखाना ही चाहा है l जैसे इस काले बादल के माध्यम से -- कि बुरे दिनों में हमें उम्मीद छोड़नी नहीं चाहिए , काले बादलों के छटने के बाद वो पारे जैसी लकीर रौशनी बन दिखाई देती है वह उम्मीद की किरण बनकर हमारे जीवन में आती है l इसी सोच की उधेड़ बुन में डूबा हुआ मैं आगे बढ़ रहा था, कि उस बादल की गर्जना ने मेरा ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया l बस फिर क्या था l उस काले बादल की इस गर्जन के साथ ज़ोरों से पानी बरसने लगा l मैंने नज़र नीचे झुकाई तो क्या देखता हूँ ,प्यासी धरती तृप्त होती नज़र आई l इंसानों केमन में हर्ष और उल्लास की उमंग दौड़ गई, लेकिन मुझ पर तो जैसे शर्म केमारे घड़ों पानी पड़ गया हो l मेरा वह गोरा रंग अब पीला पड़ गया l
अब मुझ में वहाँ एक क्षण रुकने की हिम्मत न रही l मैं अब उस काले बादल में जा मिलने की तड़प और मकसद लिए उस पार चल पड़ा , ताकि उस की अच्छी संगति से शायद मैं भी जन जाति के किसी काम आ सकूं l