बर्बादी है यहां वहां !
बर्बादी है यहां वहां !
" तुम्हें ये फख्र तो हासिल है ,
कि तुम्हें चाहा गया ,
हमारे पास तो
ये एहसास भी अधूरा है ! "
सचमुच यह भी कुदरत का कुछ अजीब सा आलम है।कभी कभी दो लोगों के बीच जो वस्तु आकर्षक हुआ करती है वही वस्तु कभी कभी उनके अलग होने का कारण भी बना करती है।अमिता का जो व्यक्तित्व ( या सेक्स, आकर्षण ) सैयद को सारे बन्धन तोड़कर पास लाने का कारण बना था वही उनकी बर्बाद का सबब बन बैठा ।क्या यही प्यार है ?
ऐसे एक नहीं अनेक किस्से देखने सुनने को मिलते हैं।कभी सायास यह सब हुआ करता है तो कभी अनायास !
देखने में साँपों के बच्चे बिलकुल केंचुओंं जैसे लगते हैं. निरीह..दयनीय.. बेसहारा.. बेचारे.. और अंत में शरणार्थी । लेकिन वे जब किसी आँगन में शरण लेते हैं तो तुलसी का बिरवा बनने के लिए नहीं, नाग बनने के लिए ही लेते हैं. फिर करते भी वही हैं, जो नाग करते हैं । पांडेगंज के पांडेय जी के परिवार में भी यही सब तो हुआ है ..होता रहा है..होता जा रहा है।
भई ! अब ये पांडेय जी कौन हैं?आपकी जिज्ञासा स्वाभाविक है।मुम्बई के स्ट्रगलर स्क्रिप्ट राइटर अतुल के मुहल्ले के नामी गिरामी शख्सियत हैं पांडेय जी ।कहा जाता है कि अंग्रेजों के ज़माने में उनकी पढ़ी लिखी उन दिनों के हिसाब से स्मार्ट माताजी ने बड़ों बड़ों से निकटता बनाकर अपने आगे की पीढियों के लिए एक हवेली तो खड़ी कर ली।लेकिन वे जिस रास्ते को चुनकर भौतिक संसाधन जुटाईं वही उनके आगे की पीढ़ियों के विनाश का कारण बनता गया।पांडेय जी ने एम.एस.सी.किया नहीं कि उनकी एक डिग्री कालेज में नौकरी लगवा दीं।बहुधंधी पांडेय जी छात्रों को पढ़ाने के अलावे सब कुछ बताया समझाया करते थे।लेकिन फिर भी कालेज में सिरमौर बने थे।और उनके बाल बच्चे ?..वही जुगाड़ू फ़ार्मूले से अपने अपने हाथ पांव मारते ऊपर और ऊपर चढ़ते रहने की छिपकलिया कोशिशों में जुटे हुए..।..एक लड़की ने किसी प्रोफेसर की बेल बनकर अपनी नेय्या पार लगानी शुरु की तो दूसरे ने एक इंजीनियर को पकड़ा।लेकिन लड़के ?...अरे मत पूछिये..यहीं तो गच्चा खा गये पांडेय जी ।
उनका एक रतन तो हाईस्कूल तक जाते जाते सिगरेट,पान,बीड़ी,गांजा,देशी विदेशी शराब और एल.एस.डी.की गिरफ़्त में कुछ यूं आया कि पूछिए मत। उसने ड्रग्स सहित ये सब नशे के आनंद के लिए ही लेना शुरु किया जो उसकी आदत बनती चली गईं।वह मुहल्ले में कभी यहां तो कभी वहां ढुलका मिलता ।
"कऊन हवे रे?" कोई राहगीर उससे पूछ रहा था।
अब भला वह होश मे हो तब तो अपना परिचय देता कि मैं पांडेय परिवार का कुलभूषण रतन धन हूं... शराब, भांग, चरस और गांजा जैसे नशीले पदार्थ और उनके ना मिलने पर ड्रग्स लेने वाला युवा ..देश का तथाकथित नौनिहाल.. जिसके लिए गीत गाए जाते हैं 'इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के..'
और,और अन्ततः इन कुलभूषण की सदगति मिल ही गई।उधर उन्हीं की एक कुल लक्ष्मी की शादी एक धन पशु सिंचाई विभाग के इंजीनियर से हो गई थी जिसके पास अकूत पैसा आ रहा था।उन दिनों पूर्वी उ.प्र.में जब भयंकर बाढ़ आती थी तो उन इंजीनियर साहब की बांछें खिल जाया करती थीं। कुछ ही दिनों में करोड़ों का वारा न्यारा हो जाया करता था..हालांकि ऊपर तक हिस्सा पहुंचाना पड़ता था।कभी कभार पेंच फंसा तो फिर अधिक से अधिक मुख्यालय से अटैचमेंट या सस्पेंशन..यही तो ?वे अपना अपना शेयर लेनेवाले आका मददगार हुआ करते,कोर्ट कचहरी और मंहगे वकील काम आया करते थे..मामला जल्दी ही सुलट जाया करता था।लेकिन उनके यहां भी यह अंगूर की बेटी अपना चमत्कार दिखाने लगी थी और..इतना चढ़कर चमत्कार दिखाने लगी कि घरवाली ही दूसरे की बाहों में झूलने लगी ! परिवार की तबाही का समापन हुआ इंजीनियर साहब के असमय काल के गाल में चले जाने से..!
अतुल अभी जानें कब तक यादों की इस अन्धी, सुनसान और लम्बी गली में भटकते रहते अगर उनका दोस्त युगांतर नहीं आ टपका होता।
"क्यों भाई,क्या हो रहा है?"आते ही युगांतर ने सवाल दागा।
"कुछ नहीं यार,यूं ही अपने अतीत की पैमाइश कर रहा था।"अतुल बोल पड़ा था और दोनों ठठाकर हंस पड़े थे ।
"यार,तूं अब सब कुछ छोड़ कर मेरी यह स्क्रिप्ट देख ले..जो मैं टेली सीरियल तेनालीराम के लिए बना रहा हूं।"युगांतर बोले।
"अच्छा?..दिखा तो सही।" अतुल ने जिज्ञासा जताते कहा ।
"नहीं, मैं..मैं इसकी रीडिंग करता हूं..तूं बस ध्यान से सुन ।" युगांतर ने कहा और उसने अपनी स्क्रिप्ट पढ़ना शुरु कर दिया था ।
....उस दिन राज दरबार में नीलकेतु नाम का यात्री राजा कृष्णदेव राय से मिलने आया था । पहरेदारों ने राजा को उसके आने की सूचना दी। राजा ने नीलकेतु को मिलने की अनुमति दे दी।यात्री एकदम दुबला-पतला था। वह राजा के सामने आता है और बोल रहा है - महाराज, मैं नीलदेश का नीलकेतु हूं और इस समय मैं विश्व भ्रमण की यात्रा पर निकला हूं। सभी जगहों का भ्रमण करने के पश्चात आपके दरबार में पहुंचा हूं।
राजा ने उसका स्वागत करते हुए उसे शाही अतिथि घोषित किया। राजा से मिले सम्मान से खुश होकर वह बोला- महाराज! मैं उस जगह को जानता हूं, जहां पर खूब सुंदर- सुंदर परियां रहती हैं। मैं अपनी जादुई शक्ति से उन्हें यहां बुला सकता हूं।
नीलकेतु की बात सुन राजा खुश होकर बोल उठते हैं - "तो इसके लिए मुझे क्या करना चाहिए?"
वह राजा कृष्णदेव को रात्रि में तालाब के पास आने के लिए कहता है और बोल रहा है ...." उस जगह मैं परियों को नृत्य के लिए बुला भी सकता हूं।"
अब नीलकेतु की बात मान कर राजा रात्रि में घोड़े पर बैठकर तालाब की ओर निकल पड़े हैं।
तालाब के किनारे पहुंचने पर पुराने किले के पास नीलकेतु राजा कृष्णदेव का स्वागत कर रहा है और बोल उठता है:
"- महाराज! मैंने सारी व्यवस्था कर दी है। वह सब परियां किले के अंदर हैं।"
राजा अपने घोड़े से उतर नीलकेतु के साथ अंदर जाने लगते हैं...
उसी समय राजा को शोर सुनाई देने लगता है। अरे,यह क्या ? राजा की सेना ने तो नीलकेतु को पकड़ कर बांध दिया था।
राजा ने पूछा- "यह क्या हो रहा है?"
अब किले के अंदर से तेनालीराम बाहर निकलते हुए बोल उठते हैं:
" - महाराज! मैं आपको बताता हूं? "
तेनालीराम ने राजा को बता रहे हैं;
"- यह नीलकेतु एक रक्षा मंत्री है और महाराज...., किले के अंदर कुछ भी नहीं है। यह नीलकेतु तो आपको जान से मारने की तैयारी कर रहा था। "
राजा अब तेनालीराम को अपनी रक्षा के लिए धन्यवाद दे रहे हैं और कह उठते हैं;
"- तेनालीराम यह तो बताओं, तुम्हें यह सब पता कैसे चला ?"
तेनालीराम ने राजा को सच्चाई बताते हुए कहा-
" महाराज आपके दरबार में जब नीलकेतु आया था, तभी मैं समझ गया था। फिर मैंने अपने साथियों से इसका पीछा करने को कहा था, जहां पर नीलकेतु आपको मारने की योजना बना रहा था। "
तेनालीराम की समझदारी पर राजा कृष्णदेव इस बार फिर खुश होते हैं और यहीं पर यह एपिसोड समाप्त हो जाता है। "क्यों ? कैसा लगा ?" युगांतर की उत्सुकता हाई बी.पी.की तरह शूट कर गई है..और उधर अतुल ने जाने क्यों चुप्पी साध ली है।
