बोया पेड़ बबूल का का आम कहाँ से पाये
बोया पेड़ बबूल का का आम कहाँ से पाये
पल्लवी सुबह से रोए ही जा रही थी कि उसका बेटा उसकी बात नहीं सुनता है। वह कुछ भी बोलने की कोशिश करती है तो वह उसे अनसुना कर देता है।
पल्लवी की माँ अनसूया उसे रोते देख कर उसके पास आती है। उसके सर पर हाथ फेरती है। पल्लवी उनके गले से लग कर ख़ूब रोती है माँ ! देखो न क्या हो गया है ? मेरा बेटा मुझे कुछ नहीं समझता अब मैं क्या करूँ ?
अनसूया को वे दिन याद आए जब पल्लवी की शादी हुई थी। दो साल बाद ही उसकी गोद में सुंदर सा मोक्ष आ गया था। कितना सुंदर गोल - मटोल था। पल्लवी कभी भी उसे गोद में नहीं लेती थी। हमेशा वह मेरे पास ही रहता था। जब तक छोटा था तब तक बहुत छोटा है मैं उसे नहीं सँभाल सकती कहकर मेरे पास छोड़ देती थी।जैसे -जैसे मोक्ष बड़ा होता गया उसे सँभालते हुए घर का काम और नौकरी नहीं कर सकती।यह कहते हुए मेरे पास ही छोड़ दिया। मोक्ष यहीं पलने लगा। पल्लवी और विराट दोनों ने मोक्ष की ज़िम्मेदारी से हाथ धो लिया था। उसकी हर इच्छा हर ज़रूरतों को मैंने और राघव ने पूरी की थी। हाँ!!! जब उनके दोस्त आते थे तब दोनों बहुत ही गर्व के साथ मोक्ष का परिचय उनसे कराते थे। उसकी पसंद न पसंद माता-पिता को नहीं नाना नानी को मालूम था। उसकी तबियत ख़राब हो गई तो भी मैं ही उसकी देखभाल करती थी। बचपन में रात को माँ के लिए पूछता था और ख़ूब रोता था अपनी माँ के लिए पर माँ कभी भी उसके पास नहीं आई।उसके पास बैठकर उसके सर पर हाथ नहीं फेरा। दूसरे बच्चों को उनके माता-पिता के साथ देख मोक्ष कई बार मुझसे पूछती था नानी मेरे दोस्त अपने माता-पिता के साथ रहते हैं मैं क्यों नहीं रह सकता ? मैं उस छोटे से बच्चे को क्या जवाब देती। छोटा बच्चा है उसके मन में माता-पिता के प्रति ज़हर तो नहीं घोल सकती हूँ, उसे अपनी ही बेटी के ख़िलाफ़ नहीं भड़का सकती। उस समय बुरा लगता था।जब पड़ोस की पल्लवी की दोस्त अपने बच्चे को गले लगाकर उसे ख़ूब प्यार करती थी और मोक्ष उन्हें आँखों में आँसू बहाते हुए देखता था।
कई बार मैंने राघव से कहा भी था कि पल्लवी अगर बच्चे को नहीं देख सकती तो उसे इस दुनिया में लाई ही क्यों ? उसे वह दिन याद आया जिस दिन आधी रात को मोक्ष उठकर ख़ूब रो रहा था। उसकी सिसकियों की आवाज़ से मेरी नींद खुल गई जैसे ही मैं उसके पास पहुँची।मुझे गले लगा कर रोने लगा नानी मुझे होस्टल नहीं जाना है। मैं आपके साथ रह लूँगा। मैं माँ पापा के साथ रहने की ज़िद नहीं करूँगा। मुझे लगा यह ऐसा क्यों कह रहा है। उसे चुप कराते हुए मैंने कहा नहीं मेरा बच्चा जब तक तुम पढ़ लिख कर बड़े नहीं हो जाओगे नानी आपको कहीं नहीं जाने देगी समझ गया। उस रात वह रोते - रोते ही सो गया था।
मुझे सुबह की बात याद आई। रविवार होने के कारण पल्लवी अपने पति सुहास के साथ मोक्ष से मिलने आई थी। हर रविवार को दोनों सुबह नाश्ते से लेकर डिनर तक हमारे साथ ही करते थे। उसदिन मालूम नहीं क्या हुआ था कि मोक्ष ज़िद पर अड़ गया कि मैं आप लोगों के साथ रहूँगा। मेरे सारे दोस्त अपने माता-पिता के साथ रहते हैं। सब मुझसे पूछते हैं कि एक ही शहर में रहने के बाद भी तुम अपने नानी के घर क्यों रहते हो। मुझे शर्म आती है। मैं आज आपके साथ ही चलूँगा। पल्लवी ने आव देखा न ताव सीधे उसके मुँह पर तमाचा लगा दिया और कहा नहीं मैं तुम्हें अपने साथ नहीं रख सकती। अगर तुम्हें यहाँ रहने में शर्म महसूस होती है तो कल ही तुम्हारे स्कूल जाकर तुम्हारे प्रिन्सपल से बात कर लेती हूँ और अगले महीने से तुम होस्टल में रहना। दिन पर दिन तुम बिगड़ते जा रहे हो।वहाँ रहोगे तो अनुशासन में रहोगे। मुझे बहुत बुरा लग रहा था क्योंकि मोक्ष बहुत ही अच्छा बच्चा था।उसे मालूम था कि हम बड़े हो रहे हैं ज़्यादा उसके पीछे नहीं भाग सकते हैं। इसलिए उसकी कोशिश यही रहती थी कि वह हमें तंग न करते हुए अनुशासन में रहे। ऐसे सुंदर अच्छे बच्चे को छोड़कर अकेले रहने वाले उन दोनों माता-पिता पर मुझे तरस आता था। उसका बचपना तो उन्होंने देखा ही नहीं है। पैसे ही सब कुछ नहीं होता है। पैसे कमाने की धुन में आज को इन दोनों ने जिया ही नहीं। अनसूया ने पल्लवी को गले लगाकर कहा पल्लवी-आज रो रही है कि मेरा बेटा मेरी बात नहीं सुनता है।बचपन में तुमने उसकी बात सुनी। नहीं न !!!कल को किसने देखा है पल्लवी अब मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकती हूँ।
आज तुम्हारे पैसा है ,बड़ा सा महल जैसा घर है ,नौकर चाकर हैं पर क्या फ़ायदा जिसके लिए कमाया वह ही पास नहीं है। रोने से क्या फ़ायदा ?
दोस्तों ज़िंदगी बहुत छोटी होती है। उसे जी भर कर ख़ुशी ख़ुशी जियो क्योंकि ख़ुशियों को ख़रीद नहीं सकते वे कहीं बाज़ार में नहीं मिलते हैं। आप अपने बच्चों की कद्र करेंगे तो वे आपकी कद्र करेंगे। अंत में मैं यही कहूँगी कि बोया पेड़ बबूल के आम कहाँ से पाये !
