बंदिनी
बंदिनी


अरे नहीं बंदिनी नहीं है वो
ना ही पैरों मैं उसके बेड़ियाँ पड़ी हैँ।
भला अपने घर मैं भी कोई बंदिनी होती है क्या ?
उसे तो बस उसके बच्चों के टिफ़िन बॉक्स ने बाँध रखा है,
और उन कहानियों ने भी जो वह उनको हर रात सुनाती है।
उसे तो बस अपने पति के लंच वाले डब्बे ने बाँध रखा है,
और उस गीले तौलिये ने भी,
जिसको वो रोज़ नहाने के बाद बिस्तर पे छोड़ जाता है।
उसे तो बाँध रखा है उसके ससुर के दवाईओं ने,
और उसके सास के चश्मे ने भी जो रोज़ रोज़ कहीं खो जाता है।
उसे बाँध रखा है सुबह और शाम की इलाइची वाली चाय ने,
जो सिर्फ उसी के हाथ की ही सबको पसंद आती है,
घर के मंदिर मैं सजी मूर्तियों ने जिन्हे वो सुबह शाम पूजती है,
उस रसोई घर ने जहां से उसके दिन जगते हैं और रातें सोती हैं।
उसे तो बाँध रखा है गर्मी की लस्सी,
बारिश के पकोड़े और सर्दी के तिल के लड्डुओं ने।
अरे बंदिनी नहीं है वो,
भला अपने घर मैं भी कोई बंदिनी होती है क्या ?