STORYMIRROR

Vijay Vibhor

Drama

2  

Vijay Vibhor

Drama

बंधन रक्षा सूत्र

बंधन रक्षा सूत्र

2 mins
190


"कैसे उदास-सी बैठी हो.... समझा..... अरे पगली! क़ुदरत की मार के आगे किसी की नहीं चलती। उनकी इतनी ही साँसे लिखी थी। मन उदास करो या फ़िर परमात्मा के विधान......।" रामचंद्र ने पत्नी विमलेश को ढाढ़स बढ़ाने का प्रयास किया। पिछले वर्ष रक्षाबंधन के दिन विमलेश के भाइयों की मोटरसाइकिल एक्सीडेंट हो गया था, जब वे उससे राखी बंधवाने आ रहे थे।

"काश वे हैलमेट पहने होते तो शायद हैलमेट उनके जीवन की रक्षा कर लेता और कल रक्षाबंधन पर मैं उनको राखी बांध सकती।..... कल मैं राखी......" कहते-कहते विमलेश की आँखें बहने लगी।

"बस इतनी-सी बात। पगली..... राखी नहीं बांध सकने के ग़म में उदास हो गयी।..... मेरे होते हुए तुम्हें कोई छोटा-मोटा ग़म कैसे छू सकता है। मैंने हर संकट से तुम्हारी रक्षा करने का वचन दिया हुआ है.... तुम मुझे राखी बांध सकती हो।"

"हे राम-राम-राम-राम। यह क्या अनर्थ कह रहे हो। राखी तो सिर्फ़ भाई को ही बाँधी जाती है।" विमलेश ने अपने दोनों कानों पर हाथ लगाते हुए कहा।

"क्या अंधविश्वास-सी अनलॉजिकली बात करती हो। रक्षा बंधन का अर्थ मालूम है ना?"

"अच्छी तरह मालूम है।...... लेकिन राखी भाई को बाँधी जाती है ताकि संकट के समय वह अपनी बहन की रक्षा करे।"

"मेरी प्यारी विमु! थोड़ा लॉजिकली सोचो..... शादी के बाद मैं ही तुम्हारे सबसे नज़दीक हूँ, कोई संकट आया तो सबसे पहले मैं ही ढाल बनूँगा... तो तुम मुझे रक्षासूत्र क्यों नहीं बांध सकती।.... मैं तो कहता हूँ शादी के बाद स्त्री को अपने पति को ही रक्षासूत्र बांधना चाहिए।"

विमलेश सोच में पड़ गयी, 'लॉजिकली तो शादी के बाद पति ही हर संकट में ढाल बनता है.... लेक़िन सामाजिक रिवाज़......."



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama