प्रणव कुमार

Abstract Tragedy

2.5  

प्रणव कुमार

Abstract Tragedy

बिन हेलमेट का लोकतंत्र

बिन हेलमेट का लोकतंत्र

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दिन का दूसरा प्रहर प्रगति पर था और मैं सड़क पर।

सहसा एक मोटरसाइकिल वाले ने मुझे काफी तेज़ गति से ओवरटेक किया मुझे लगा, होंगे कोई रॉकस्टार टाइप लेकिन पलटकर देखा तो वो देश की अर्थव्यस्था निकली।

कुछ दूर चलने के पश्चात वो मोटरसाइकिल सवार चारो खाने चित होकर जा गिरी ठीक वैसे ही जैसे हमारी मीडिया सरकार के सामने।

फिर कुछ लोग उस मोटर साईकिल सवार के पास जाकर उसे बचाने का नाटक करने लगे और पास खड़े लोगों से कहने लगे "मैं इसे जल्द से जल्द ठीक कर दूंगा,

ह्रष्टपुष्ट बना दूंगा और तो और पहले से भी बेहतर कर दूंगा"। मगर वो होने से रहा वो बेचारी तो दर्द से कराह रही थी चोट भी खूब लगी थी अरे! वो तो लगनी ही थी बेचारी ने हेलमेट जो नहीं पहन रखा था।

जैसे तैसे उन्हें अस्पताल पहुंचाया गया अस्पताल पहुंचते ही एकाएक एक भीड़ सी जमा हो गई भीड़ तो ऐसे लगी थी जैसे डॉक्टरों की टीम ने नेताजी को पहली बार सरकारी अस्पताल में देख लिया हो।

फिर तो उनसे मिलने जुलने का सिलसिला कुछ ऐसे शुरू हुआ जैसे नेताजी पूंजीपतियों से और पूंजीपति नेताजी से।

अब मैं कामना करूंगा की वो जल्दी ठीक हो जाएं पहले से बेहतर न सही कम से कम पहले जैसी ही हो जाएं।

इस पूरे घटनोपरांत कुछ क्षण पश्चात मेरी मुलाकात विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र जो बस किताबों में हीं अच्छा लगता है और हमें उसका धौंस दिखाने में। उनसे भी हुई, मैंने पूछा और भई क्या हालचाल है, उन्होंने भी खिसियाते हुए मन से बोला मत पूछिए भाई साब आजकल मुझे तो बस लंबी लंबी मूर्तियों और जय श्री राम से हीं चलाया जा रहा है जो मुझे कतई पसंद नहीं पर मेरी कोई सुने तो सही। आपके यहां तो विपक्षी भी ऐसे सोए हुए हैं जैसे उनके अस्तबल के सारे घोड़े बिक गए हो। ख़ैर छोड़िए ! आप बताइए आप कैसे हैं ?

मैंने कहा भैया जब आप ही ठीक नहीं हो तो हमारी हालत की क्या कहें।

फिर तेज़ सायरन बजाती एक कार जिसके पीछे नंबर प्लेट की जगह उनकी जाति लिखी थी हम दोनों के पास से गुजरी तभी लोकतंत्र भाई साब ने कहा पक्का ये गाड़ी आपके नेताजी के बेटे या उनके किसी परिजन की या उनकी छाया इन पर होगी ये गाड़ी उन्हीं की होगी। मैंने भी कहा हां उन्हीं लोगों की होगी वरना आम जनता की जेबें इतनी बड़ी नहीं होती जिसमें प्रशासन को रख सके।

हमारी बातों का सिलसिला जारी था ठीक वैसे ही जैसे गोदी मीडिया की भक्ति।

बातों बातों में उन्होंने मुझसे पूछा भाई साब आपके नेताओं को सड़कों में इतनी जल्दी क्यों रहती है जबकि उनका काम अपनी तोंद को सहलाने के अलावा कुछ है नहीं। मैंने भी मुस्कियाते हुए कहा पता नहीं भाई साब।

मैंने उनसे कहा भई आजकल हमारे यहां शहरों के नाम बदले जा रहे हैं, ५२५४ करोड़ के प्रचार प्रसार किए जा रहे हैं, २९८९ करोड़ के मूर्ति बनाए जा रहे हैं, १४० करोड़ का योगा डे मनाया जा रहा है, ४३०० करोड़ का मेला आयोजित किया जा रहा है आप तो बहुत विकसित महसूस करते होंगे तो वो "गैंग्स ऑफ वासेपुर" के इंस्पेक्टर टाइप मुसकीया के चल दिए और कहने लगे आपकी विकास दर तो उतनी ही तेज गति से चल रही है जैसे डॉलर रुपए के मुकाबले आगे लेकिन विकास में पीछे।

उन्होंने मुझे बताया, आपको पता है आपके यहां के नेतागण जरा सा भी झूठ नहीं बोलते बस थोड़ा सा सच बोलने की कोशिश करते हैं।

लोकतंत्र भाई साब से बातचीत करते करते काफी देर हो चुकी थी फिर उन्होंने कहा भई अब मुझे चलना है घर जाकर टीवी के माध्यम से धर्म की रक्षा भी तो करनी है और पाकिस्तान से लड़ना भी तो है।

गाहे बगाहे आज सड़क पर मुलाकात हो गई अन्यथा हमसे मिलना हो तो नेता जी की रैलियों में आया कीजिए शाम को टीवी देखा कीजिए मैं उन्हीं सब जगहों में रहता हूं, गांवों में तो बस पांच साल में एक हीं बार जाता हूं। ख़ैर आप अपना देखिए मुझे भी ढेर सारी समस्याएं हैं। ऐसा कहकर वो ठीक वैसे ही चले गए जैसे घायल अर्थव्यवस्था चल रही है भारत में !


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