भूत का ज़ुनून
भूत का ज़ुनून
उन्हें रात को सोते"सोते एक बज गया।काम ही इतना था। दस बजे तो लौट कर घर आए ही थे। आज इतने दिनों के बाद मॉल में घूमने गए थे तो उनके पति बोले, अब घर जाकर कहां किचन में खाने की तैयारी करती फिरोगी, आज यहीं खाकर चलते हैं।
"ओह, तो पहले बताना चाहिए था न, अगर डिनर यहीं लेना था तो फ़िर गोलगप्पे नहीं खाते! " उन्होंने कहा।
" अरे यार, चार पानी" पूरी से क्या फ़र्क पड़ गया? और अगर ऐसा ही है तो कौन सी जल्दी है, खाना थोड़ा ठहर कर खा लेंगे।" पतिदेव बोले।
"पर तब तक यहां करेंगे क्या? ज़रूरी काम तो सभी हो ही गए हैं।
पर शायद पति महाशय आज किसी अलग ही मूड में थे, झट बोल पड़े"ओहो, ये भी क्या ज़रूरी है कि हमेशा ज़रूरी काम ही किए जाएं... कभी"कभी गैर ज़रूरी टाइम"पास का भी लुत्फ़ लिया कीजिए।
"तो आप ही बता दीजिए कि गैर ज़रूरी टाइम"पास भला क्या होता है? अब क्या हम यहां बच्चों की तरह कोई झूला झूलें या फिर ये छोटी सी इलेक्ट्रॉनिक कार चलाने का मज़ा लें? पत्नी ने कुछ इठला कर कहा।
"चलो, आज मल्टी-प्लेक्स में कोई मूवी देखते हैं।
और बस, पहले पिक्चर, फ़िर डिनर और घर आते"आते हो गई आधी रात।
घर आकर पति महाशय तो कपड़े बदल कर थोड़ी देर सुबह के न्यूजपेपर से मुठभेड़ करते हुए खर्राटे भरने लगे पर उन्हें एक नई बाधा ने आ घेरा।
अभी रसोई का बचा"खुचा काम समेट कर बालों में ऑइल लगाने के लिए बोतल उठाई ही थी कि तपन का फ़ोन आ गया।
"मम्मी प्लीज़! भूल मत जाना, सो मत जाना... बस अभी भेज रहा हूं, जस्ट ए मिनिट...
तपन उनका इकलौता बेटा था जो इसी साल इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश लेकर हॉस्टल में रहने गया था। बेटा सत्रह साल का हो गया था पर अभी तक वो स्कूल वाली आदतें छूटी नहीं थीं जब स्कूल से आकर अपने होमवर्क को पूरा करने में अपने साथ"साथ मम्मी को भी लगाए रखता था।
कभी " मम्मी प्लीज़ ज़रा एक बार और समझा दो न, टीचर ने ठीक से नहीं बताया"... तो कभी "मम्मी मैंने लिख दिया है आप बस एक बार चैक कर दो... ग्रामर मिस्टेक्स देख लेना, वर्ना टीचर का लंबा बोरिंग लेक्चर सुनना पड़ जाएगा, कहेगी... तुम लोग फ़ालतू हो, कंप्यूटर, मोबाइल, गूगल सबने मिल कर तुम्हारा काम इतना आसान कर दिया है मगर फ़िर भी जहां ज़रा सा दिमाग़ का काम आया कि गच्चा खा जाते हो। अरे, स्पेल चैक भी नहीं कर सकते? ग्रामर की टांग तोड़ कर रख दी..."
और फिर मम्मी हंसती रहतीं तथा वो टीचर की हूबहू नकल उतार कर बताता।आज उसे कॉलेज की कोई प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार कर के अगले दिन सब्मिट करनी थी, उसी को मम्मी से चैक करवाने के लिए गिड़गिड़ा रहा था।बार"बार कहता"बस एक मिनिट...बस, भेज रहा हूं...और साढ़े ग्यारह बजे तक भी मम्मी को टेबल पर एलर्ट करके बैठाए हुए था। बेटा जानता था कि मम्मी ख़ुद साइंस की विद्यार्थी रही हैं, वो कोई कोताही नहीं बरतने वालीं। एक बार उनके पास भेज दी तो परफेक्ट करके ही वापस भेजेंगी, चाहे रात के दो ही क्यों न बज जाएं...
इसी इंतजार में आराम से खर्राटे लेते हुए पतिदेव को देखती हुई मम्मी अपनी उबासियां रोके बैठी थीं।
( क्रमशः)
