Prabodh Govil

Fantasy

3.4  

Prabodh Govil

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भूत का ज़ुनून-8

भूत का ज़ुनून-8

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भटनागर जी प्यार से बेटे की पीठ थपथपा कर, जल्दी- जल्दी ऑफिस चले तो आए मगर ऑफिस में उनका जी नहीं लग रहा था।उनकी बेचैनी कई बातों को लेकर थी।

एक तो उन्हें यही लग रहा था कि वो तो चले आए पर उनकी पत्नी अब दिन भर बेटे के साथ रहेगी। उसे सुबह की घटना के बारे में न जाने क्या - क्या, किस तरह से बता देगी और फ़िर शाम को घर पहुंचते ही दोनों मां- बेटे उनकी मज़ाक उड़ाएंगे। वो वहां होते तो पत्नी बेटे को सब कुछ बताने में उनका कुछ तो लिहाज़ रखती।

दूसरे, उन्हें ये भी लग रहा था कि सुबह तो मीटिंग के कारण वो जल्दी से दौड़ते- भागते चले आए इसलिए रास्ते में रबड़ी भंडार का भी पता नहीं कर पाए। अब शाम को भी बेटे के कारण उन्हें जल्दी ही पहुंचना होगा, ऐसे में वो रबड़ी की दुकान कैसे ढूंढ पाएंगे।

तीसरे, यदि वास्तव में उनकी पत्नी पर कोई भूत- प्रेत का साया या ऊपरी हवा का असर हुआ तो वो बेटे को भी पता चल जाएगा और वो बेचारा कहीं डर न जाए।

इसी सब उधेड़ बुन में उनका दिल काम में नहीं लगा जबकि सुबह की मीटिंग हो जाने के बाद काम रोजाना से भी अधिक था।उनका मन हुआ कि एक बार घर पर फ़ोन कर के देख लें। लेकिन तभी विचार आया कि बेटा रातभर का सफ़र करके घर आया है तो अब सो रहा होगा और पत्नी की व्यस्तता और भी ज़्यादा होगी बेटे की तीमारदारी करते रहने में। फ़िर अगर फ़ोन पर लंबी बातचीत हो गई तो काम पूरा होने व घर जाने में और भी देरी होगी।वो फ़िर से अपनी एक फाइल में उलझ गए।

लेकिन आज शायद भटनागर जी की किस्मत अच्छी थी। शाम को घर जाते हुए उन्हें चौराहे के पास एक रबड़ी की दुकान सामने दिख ही गई। उन्होंने झट गाड़ी रोकी। दुकान का नाम चंपा रबड़ी भंडार नहीं था और न ही वो देखने में कल सपने में देखी दुकान की तरह दिखाई देती थी। वहां काम करने वाले लोग भी कुछ अलग ही थे। मगर भटनागर जी ने सोचा बेटे के लिए थोड़ी रबड़ी ले ही जानी चाहिए।

कहते हैं दूध का जला छाछ भी फूंक- फूंक कर पीता है। भटनागर जी ने आज गाड़ी को सड़क के किनारे अकेला छोड़ने की ग़लती नहीं की। वो गाड़ी में ही बैठे रहे और उन्होंने वहीं से आवाज़ लगा कर दुकान में काम करने वाले एक लड़के को बुला लिया। उन्होंने उसे दो सौ रुपए का एक नोट देते हुए आधा किलो रबड़ी लाने का ऑर्डर दे दिया।

उन्हें मन ही मन अपनी सतर्कता पर कुछ रश्क सा हुआ। लड़का एक कुल्हड़ में रबड़ी तुलवा कर ले आया। उन्होंने लड़के के हाथ से कुल्हड़ लेकर भीतर डैशबोर्ड पर रखा और उससे बाक़ी बचे हुए पैसे वापस लेने लगे। कुछ रुपए और साथ में थोड़ी चिल्लर थी।

अभी वो खुले पैसे पकड़ ही रहे थे कि बगल से एक बूढ़ी औरत भीख मांगते हुए उनकी कार के समीप चली आई और झट से हाथ फ़ैला दिया।भटनागर जी हक्के- बक्के रह गए। ये बूढ़ी औरत हूबहू वैसी ही थी जो उन्होंने रात को सपने में देखी थी और जिसने उनकी जूठी रबड़ी खाई थी।उन्होंने बूढ़ी औरत से आंखें भी नहीं मिलाईं और झटके से कार स्टार्ट कर दी।

बेटे के लिए रबड़ी ले जाने का उनका सारा उत्साह ठंडा पड़ गया। वो जैसे- तैसे अपने भय पर काबू पाते हुए घर पहुंचे।घर पर मां- बेटा दोनों बाहर के बग़ीचे की क्यारी में पौधों को खाद पानी देने में व्यस्त थे। हॉर्न सुनते ही बेटे ने लपक कर गेट खोला और उनके हाथ से ब्रीफकेस पकड़ा। तभी भटनागर जी को कार में रखी रबड़ी की याद आई और उन्होंने रबड़ी का कुल्हड़ निकाल कर नज़दीक आती पत्नी की ओर बढ़ाया। जब पत्नी ने हाथ आगे बढ़ा कर कुल्हड़ पकड़ा तो भटनागर जी बुरी तरह डर गए। पत्नी की आंखें लाल सुर्ख हो रही थीं।

( क्रमशः )



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