भूत का ज़ुनून-6
भूत का ज़ुनून-6
चार लंबे डग भरते हुए वो घर के दरवाज़े तक पहुंचे ही थे, कि सामने दरवाज़े पर उन्हें ताला लटका हुआ दिखा। लो, नई आफत।
अब ये टैक्सी वाला पैसे के लिए झिकझिक करेगा। मुझे चीट समझेगा। भटनागर जी बौखलाए।
उन्हें कुछ गुस्सा पत्नी पर भी आया जो इस समय घर में ताला लगाकर न जाने कहां चली गई।
लेकिन पत्नी का क्या दोष? वह तो ऑफिस गए थे न, उसे क्या मालूम कि वो इस तरह बीच में आ जाएंगे। गई होगी किसी काम से।
क्या करें, क्या पत्नी को फ़ोन करें? पता तो करें कि वो उन्हें फ़ोन करने वाला शख्स कौन था, वह फिर मिलने घर आया या नहीं? क्या काम था उसे? और अब वह अकेली ही किसी काम से गई है या कहीं किसी मुसीबत में तो नहीं है!
उन्हें एक उपाय सूझा। फ़िलहाल पड़ोस के घर से कुछ पैसे लेकर इस टैक्सी वाले को तो दफ़ा करें।
वो गेट से बाहर निकलने में झिझके। बाहर जाते ही उनका सामना टैक्सी वाले से होगा और वो उन्हें बहानेबाज समझेगा।
वो साइड वाली दीवार से कूद कर बगल में सक्सेना जी के घर जाने लगे। सक्सेना जी कॉलेज गए होंगे तो कम से कम भाभीजी तो होंगी। उन्हीं से पैसे मांगेंगे।
भटनागर जी अभी उछलते हुए दीवार पर चढ़ ही रहे थे कि शायद उस टैक्सी वाले ने भीतर आकर उन्हें पीछे से पकड़ लिया। वो उनकी शर्ट खींच रहा था।
भटनागर जी इस स्थिति के लिए तो बिल्कुल भी तैयार नहीं थे। वो कुछ ज़ोर लगा कर उस पार कूदने को हुए।
लेकिन उस युवक ने भी उनकी शर्ट कस कर पकड़ रखी थी, वह आगे बढ़ ही नहीं सके।
उन्होंने एक बार और झटका और उनकी आंखें खुल गईं।
वह भौंचक्के से सामने खड़ी पत्नी को देखने लगे जो एक हाथ में चाय का प्याला लिए दूसरे से उनका कुर्ता पकड़ कर उन्हें जगाने की कोशिश कर रही थी।
उन्होंने ज़ोर से आंखों को मला और पत्नी को ऐसे देखने लगे जैसे किसी दूसरे लोक में आ गए हों।
- देख क्या रहे हो? ऑफिस नहीं जाना? कल तो घर सिर पर उठाए ले रहे थे कि सुबह ज़रूरी मीटिंग है, जल्दी जाना है...
सारा माजरा समझ में आने के बाद भटनागर जी ने कुछ अधलेटे होते हुए चाय का कप हाथ में पकड़ा और अपनी झेंप मिटाते हुए बोले- असल में कल मूवी देख कर देर से सोए थे न, तो सुबह नींद ही नहीं खुली।
- कौन सी मूवी? कहां की बात कर रहे हो? छह महीने से कहीं बाहर लेकर गए नहीं और ख़ुद मूवी देख आए? कब?
भटनागर जी ने सिर खुजाया।
- मूवी क्या नींद में देख रहे थे? कौन सी देखी? पत्नी हंसी।
भटनागर जी को सब याद आ गया कि कल तो वो सिरदर्द होने से खाना खाते ही जल्दी सो गए थे, और पत्नी टीवी देखती रही थी। उन्हें शायद कोई सपना आया होगा।
उन्होंने चाय का प्याला होंठों से लगा कर अभी चाय पीना शुरू ही किया था कि पत्नी ने उन्हें पांच सौ रुपए के दो नोट देते हुए कहा- ये रख लो जेब में।
- क्यों? चौंके भटनागर जी। बोले- ये किस बात के?
- सत्तर रुपए तो रबड़ी वाले को देकर आना, पचास उस ऑटोरिक्शा वाले को देना जिसके रिक्शा में से बीच में ही कूद कर उतर गए थे और एक सौ तीस रुपए टैक्सी वाले को देना। पत्नी ने कहा।
भटनागर जी थर- थर कांपने लगे। उनके हाथ में पकड़ा प्याला भी ज़ोर- ज़ोर से बजने लगा।
फ़िर भी कुछ साहस बटोर कर वो पत्नी से बोले- और बाक़ी रुपए?
पत्नी बोली- अजीब आदमी हो, ट्रैफिक पुलिस कंट्रोल रूम में जाकर गाड़ी नहीं लानी??? या दान दे आए !
भटनागर जी पायजामा संभालते हुए वाशरूम की ओर भागे। उनके माथे से पसीना टपकने लगा था।
( क्रमशः )