भूत का ज़ुनून-11
भूत का ज़ुनून-11
भटनागर जी मुंह पर हाथ फेरते हुए बेटे के पास जा खड़े हुए और प्यार से देखने लगे कि बेटा लैपटॉप पर क्या कर रहा है। उनके आते ही बेटे ने तत्काल लैपटॉप ऑफ़ किया और चहक कर बोला- पापा, मुझे तो देर रात तक काम करना पड़ता है, भूख भी लग जाती है, मैं अपने लिए पिज़्ज़ा ला रहा हूं, आप लोगे?
भटनागर जी को उस घड़ी बेटा किसी फरिश्ते की तरह नज़र आया। उनकी आंखें भर आईं। वह मन ही मन बोले- नेकी और पूछ पूछ... लेकिन ऊपर से उन्होंने बेटे से कहा- चल तुझे कंपनी दे दूंगा, ले आ!
इधर बेटा दो प्लेटों में पिज़्ज़ा के टुकड़े लेकर फ्रिज में से सॉस निकालने लगा उधर भटनागर जी लपक कर अपनी प्लेट में चार पूड़ियां और डाल लाए।
"तू सॉस से खाता है? मुझे तो दही और अचार से अच्छा लगता है", कहते- कहते भटनागर जी ने अपनी प्लेट चारों ओर से भर ली और खाने पर टूट पड़े।
उधर खटर- पटर सुन कर मम्मी भी बिस्तर से उठ आईं और बाप- बेटे की इस आधी रात की दावत को मुस्कुरा कर देखती रहीं।
पेट भर जाने के बाद भटनागर जी अपने बेडरूम में लंबी तान कर जा सोए। कुछ ही देर में उनके खर्राटे गूंज कर जैसे उनकी जीत का जश्न मनाने लगे।
नींद गहरा जाने के बाद भटनागर जी ने एक सपना देखना शुरू किया।उन्होंने देखा कि बेटा उनसे ताश खेलने की ज़िद कर रहा है। वो ना- नुकर करके बचने की कोशिश कर ही रहे थे कि उनकी पत्नी भी कहने लगीं- "अब कह रहा है तो खेल लीजिए न उसका मन रखने को।"
उनके पड़ोस में रहने वाले सक्सेना दंपत्ति भी आ गए और सब मिल कर ताश खेलने लगे।
सक्सेना जी बताने लगे कि दीवाली की छुट्टियों में जब उनके बच्चे घर आते हैं तो सब लोग पैसे से ही ताश खेलते हैं।
"छी - छी... जुआ? पर ये तो बुरी बात है।" भटनागर जी बोले।
"अरे भाई साहब, बच्चे कौन से रोज़ - रोज़ आते हैं, अब साल में एक बार तो खेलना ही चाहिए। कहते हैं जुआ तो लक्ष्मी जी का हिंडोला है।" श्रीमती सक्सेना ने कहा।
"हिंडोला मतलब?" बेटा बोला।
"हिंडोला मतलब झूला। दीवाली पर लक्ष्मी जी इसी पर बैठ कर तो सबको आशीर्वाद देने घर- घर आती हैं।" सक्सेना आंटी ने कहा।
"अच्छा- अच्छा, चलो खेलें... " भटनागर जी के सहमति देते ही खेल शुरू हो गया। लेकिन भटनागर जी लगातार हारते ही जा रहे थे।सुबह- सुबह जब भटनागर जी की पत्नी चाय का प्याला लेकर उन्हें जगाने के लिए आईं तब भी भटनागर जी चेहरे से मच्छर को उड़ाते हुए बुदबुदा रहे थे... "शो...ब्लाइंड!"
मुंह से चादर खींचते ही उनकी नींद खुल गई।जब उन्होंने पत्नी से पूछा कि बेटा उठ गया है क्या, तो उन्होंने बताया कि वो तो अभी सुबह होते- होते सोया है। देर तक सोएगा।
भटनागर जी को तो दफ़्तर जाना था। चाय पीकर झटपट तैयार होने में जुट गए।आज ऑफिस में कुछ ज़्यादा काम नहीं था। लंच के बाद वो अपनी मेज़ पर बैठे ही थे कि उनके सहकर्मी विलास जी आ गए। बोले- चलो, आपको कॉफी पिलाता हूं।
भटनागर जी झटपट उठ लिए।
दरअसल कॉफी शॉप के पास वाले गिफ्ट एंपोरियम से विलास जी को अपनी बेटी के लिए कोई तोहफ़ा खरीदना था। उसने पिछले टेस्ट में अपनी क्लास में हाइएस्ट स्कोर किया था।
विलास जी के साथ गिफ्ट्स देखते हुए भटनागर जी की निगाह एक बेहद खूबसूरत डायरी पर पड़ी जिसके साथ एक गोल्डन पैन भी था। भटनागर जी ने सोचा, क्यों न बेटे के लिए ले लें, ख़ुश हो जाएगा। पैक करवा लिया।उन्होंने भुगतान करने के लिए जेब से कार्ड निकाल कर दिया। दो मिनिट बाद ही शॉपकीपर ने कहा- "बैलेंस नहीं है सर।"
"अरे, ऐसा कैसे हो सकता है, इसमें तो पच्चीस हजार से ज्यादा रुपए हैं।" भटनागर जी ने कहा तो कैशियर ने फ़िर चैक किया। पर उनका खाता बिल्कुल ख़ाली था।
उनका भुगतान भी विलास जी ने किया। कॉफ़ी पीकर दोनों लौटे तो वो विलास जी के साढ़े तीन सौ रुपए के कर्जदार हो चुके थे।शाम को घर पहुंचते ही पत्नी से बोले- मेरे अकाउंट में कितने रुपए बाक़ी होंगे?पत्नी ने कहा, मुझे क्या पता? जुआ खेलें आप, और हिसाब मैं रखूं?
कहती हुई पत्नी चाय बनाने चली गईं। भटनागर जी का माथा ये सुन कर भन्ना गया, सोचने लगे- कमाल है... खेला तो मैं सपने में था... बैलेंस हकीकत में साफ़? अचकचा कर कभी उन्हें, तो कभी बेटे को देखते रह गए जो ख़ुश होकर अपना गिफ्ट पैकेट खोल रहा था।
( क्रमशः)