Arunima Thakur

Inspirational

4.5  

Arunima Thakur

Inspirational

भूला हुआ रिश्ता

भूला हुआ रिश्ता

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आज सविता जी बहुत व्यस्त थी। खुश थी या नहीं यह तो नहीं मालूम I वैसे बात तो खुशी की थी I आज आज बरसों शायद दस या बारह बरस बाद उनके बेटा व बहू घर वापस आ रहे थे । बेटा विदेश जाने के बाद सिर्फ शादी करने के लिए ही वापस आया था । हां लड़की तो अपने देश की थी फिर भी | क्या लड़की को भी अपने परिवार की माया नहीं थी। किसी विदेशिनी से शादी करता तो संतोष होता शायद । विदेशिनी है इस देश क्यों कर आना चाहेंगीं भला। पर यही कि पली-बढ़ी वह भी अपने देश आने को तैयार नहीं ? बेटा हो या बेटी सब निर्मोही हो गए हैं I

सविता जी इस छोटे से शहर में अपने पति के बनायें एक बड़े से घर में अकेले रहती थी। आज बेटे बहू के आने की खबर सुनकर सविता जी बड़ा वाला कमरा मास्टर बेडरूम उनके लिए व्यवस्थित करवा रही थी। कमरा बड़ा है, अटैच बाथरूम भी है और उन्होंने सारी अलमारियां भी खाली करवा दी हैं। पता नहीं कब तक रुकने वाले हैं । आज सुबह ही बेटे का फोन आया था। मां यहां सब लॉकडाउन हो रहा है। नौकरी भी वर्क फ्रॉम होम हो गई है। बच्चों की स्कूल भी बंद है। जिस पहली फ्लाइट में टिकट मिल जाएंगे, आ जाएंगे। बच्चों का तुमसे मिलने का बहुत मन है। व्यथित मन से फोन रखा। सरिता जी की आंखों में आंसू छलक आए । यह वर्क फ्रॉम होम तुम्हें तब नहीं मिल सकता था जब तेरा बाप तुझे आखिरी बार मिलने की, देखने की गुजारिश कर रहा था। या तब जब तुझे उसके अंतिम दर्शन के लिए, उसकी चिता को आग लगाने के लिए, एक बेटे का फर्ज पूरा करने के लिए यहाँ होना चाहिए था I पर नहीं तब तो तू व्यस्त था। बच्चों के स्कूल थे । नौकरी से छुट्टी नहीं मिल रही थी। सविता जी इस जन्म में अपने बेटे को देख पाएंगी यह आशा छोड़ ही दी थी। भला हो कोरोनावायरस का परदेसी घर आ रहे हैं। वह (सविता जी) कब दादी बनी कब बच्चे बड़े भी हो गए उन्हें पता ही नहीं चला I वीडियो कॉलिंग पर बात होती है l पर पति की मृत्यु के बाद उनका मोहभंग हो गया बच्चों से, बेटे से, बहू से, सबसे I पर आज कामवाली रूपा के साथ मिलकर जल्दी-जल्दी हाथ चलाकर सब तैयारी करवा रही है। बिसलेरी की बोतलों के 4 - 5 बॉक्स मंगवा कर रखवा दिए हैं I एक इंडक्शन चूल्हा भी कमरे में रख दिया है l खाने पीने की चीजें जो भी बच्चों को पसंद आ सकती हैं वह सब भी लाकर रख दी है। इतने वर्षों से घर में केबल कनेक्शन भी नहीं था । आज ही टीवी भी उसी कमरे में रखकर टाटा स्काई का सेटअप करवा दिया है।

दोपहर में वापस बेटे का फोन आया "टिकट मिल गई है । अभी निकलेंगे तो कल सुबह तक पहुंच जाएंगे। आप परेशान मत होना I हमें चेकिंग वगैरह में समय लग सकता है तो खुद से टैक्सी करके आ जाएंगे"I सुनीता जी निर्लिप्त भाव से फोन को मेज पर रख कर सोचने लगी क्या यह उनका ही खून है ? एक बार भी नहीं पूछा मां कैसी हो ? खैर अब तो उन्हें इसकी आदत पड़ चुकी है। वह उठी एक बार फिर से सारे इंतजाम देखने जो कुछ कमी लगी वह भी किया और खाना खाकर लेट गई । लेटे-लेटे भी सोच रही थी कि इंतजाम में कुछ कमी तो नहीं है I तभी याद आया दरवाजे पर कुंडी नहीं है। इतने वर्षों से अकेली थी तो कभी जरूरत ही नहीं लगी । पर बेटा बहु साथ है तो शायद. . .l तो मिस्त्री को बुलाकर खिड़की दरवाजे के सब कड़ियां भी चेक कर ली और जो जरूरी बदलाव थे वह सब भी करवा लिए। और संतोष की साँस ली कि हाँ अब सब ठीक है।

दूसरे दिन बेटे का फोन आया हम लैंड कर चुके हैं चेकिंग वगैरह से गुजर कर अब टैक्सी लेकर निकल रहे हैं । मुख्य दरवाजा उन्होंने खुला ही छोड़ दिया | दरवाजे पर पानी भरी बाल्टी रखी। टैक्सी के हार्न की आवाज आई तो वह बाहर गई बेटा टैक्सी से सामान उतार कर रख रहा था। बच्चे व बहु अंदर आए। उन्होंने पानी की बाल्टी कि तरफ इशारा किया कि पहले हाथ पैर धो फिर अंदर आओ I बेटा मुस्कुराते हुए बोला मां आपकी आदत नहीं बदली l बहू ने शायद थोड़ा मुंह बनाया पर चारों ने वही बाहर हाथ पैर मुंह धोए l सविता जी ने तौलिया दिया। पोछने के बाद सैनिटाइजर दिया हाथों में लगाने के लिए I बेटा अंदर आते आते पूछा, "अरे माँ यह छत पर इतने सारे कपड़े किसके सूख रहे हैं ? क्या लॉन्ड्री खोल रखी है ? और मां कोरोना का क्या हाल-चाल है ? यहां क्या इंतजाम है? सविता जी मन ही मन में हंसी ऐसे पूछ रहा हैं जैसे समाचार देखता ही नहीं है । फिर भी बोली छोटा शहर है I यहां अभी एक भी केस नहीं है । बेटा खुश होते हुए बोला, "अरे वाह चाय नाश्ता कर लू फिर जाकर सब से मिलकर आता हूँ। चाचा जी तो अभी भी पड़ोस में ही रहते होंगे ना । मेरा दोस्त संजू याद है ना वह भी यहीं पर है ना Iसविता जी ने ठण्डे स्वर ने कहा, "हां हां पहले तुम लोग अंदर तो चलो I तुम लोगों के लिए वह बड़ा वाला कमरा तैयार करवा दिया है। सब जाकर नहा धो लो । सफ़र की थकान होगी और तुम लोगों को जेटलॉग के कारण नींद भी आ रही होगी। बेटे बहू ने हामी में सिर हिलाया । सारा सामान कमरे में रखा l बच्चे कमरा देख कर खुश हो गए और टीवी चला कर बैठ गए । बहु नहाने चली गई । सरिता जी ने कमरे के बाहर आकर कमरा बाहर से बंद कर दिया । सीधा अपने बाथरूम में जाकर कपड़े धोकर नहा ली ।एक की लापरवाही से मैं सारे बच्चों को संक्रमित नहीं कर सकती। तबसे बेटे की जोर जोर से दरवाजा खटखटाने की आवाज आई । उन्होंने पूछा, "क्या है बेटा? नहा लिया? नाश्ता भेजती हूं" I बेटा चिल्लाया गलती से शायद दरवाजे की बाहर की कड़ी लग गई है l सविता जी बोली, "गलती से नहीं लगी। लगाई है मैंने l जब तुम एयरपोर्ट से निकले थे तो तुमसे शपथ पत्र भरवाया गया होगा ना कि तुम चौदह दिन तक ना कहीं बाहर जाओगे ना किसी से मिलोगे । फिर . . . ? इतना पढ़े-लिखे होने के बाद भी तुम्हें इस महामारी की भयावहता का कोई अंदाजा ही नहीं है I अब चौदह दिन तक के लिए तुम सब कमरे में ही बंद रहो। तुम्हारी जरूरत का सारा सामान कमरे में है । नेट का पासवर्ड भी दीवार पर लिखा हुआ है। टीवी है, वाशिंग मशीन है, मैंने सब इंतजाम कर दिया है । मैं तुम लोगों के कारण मेरे बच्चों का जीवन खतरे में नहीं डाल सकती l बेटा चिल्लाया कैसे बच्चे ? कौन से बच्चे ? वह बोली, "तुम्हारा तो पता नहीं पर अब मैं तेईस बच्चों की मां हूँ। सड़क पर भीख मांग रहे लावारिस बच्चों को घर लाती हूँ। उनको पालती हूँ। उनको शिक्षा दिलाती हूँ। उनके लिए एक काम वाली और एक खाना पकाने वाली रखी है । बाकी काम वो बच्चे खुद ही कर लेते हैं। तुमने इतने वर्षों में कभी सोचा भी नहीं कि मैं अकेले कैसे रहती होगी। मैंने अपने जीने का रास्ता चुन लिया है, सहारा ढूंढ लिया है I तुम्हारे पिता की पेंशन काफी है मेरे बच्चों को पालने के लिए I अब इन बच्चों की सुरक्षा मेरे हाथों में है । मैं तुमको आने से मना तो नहीं कर सकती थी। अब तुम प्रोटोकॉल का पालन करते हुए अंदर ही रहो । वही तुम्हारे, मेरे बच्चों और समाज के लिए अच्छा है। बेटा चिल्लाया बच्चे अपनी दादी से मिलना चाहते हैं l कहानियां सुनना चाहते हैं । तुम उनसे ऐसी बेरुखी कैसे दिखा सकती हो ? सविता जी बोली, "वीडियो कॉलिंग है ना हम करेंगे। तुम चाहो तो मैं सारा दिन यही से फोन पर तुम्हारे बच्चों को कहाँनियाँ भी सुना सकती हूँ। जहां दस बरस दादी के बिना काम चल गया यह तो फिर सिर्फ चौदह दिनों की बात है I बेटा आराम करो । तुम्हारा खाना, नाश्ता, चाय, कॉफी सब मैं दरवाजे के नीचे बने फिल्पफ्लॉप से समय समय पर पहुंचाती रहूंगी। कुछ चाहिए तो फोन कर देना । तुम तो फोन करने पर कभी नहीं पहुंच सके पर तुम्हारे फोन करने पर मैं पहुंच जाऊंगी ।

सविता जी सोच रही थी कि वह बोले कि तुम आज भी अपनी मां से मिलने नहीं आए हो। ना ही तुम्हें अपने वतन की मिट्टी खींचकर लाई है। यह तो डर है जो चूहों को जंगल में आग लगने पर बिलों में छुपने को मजबूर करता है। आज अपने परिवार अपने समाज को उस आग से बचाने के लिए तुम्हारा बंद रहना ही ठीक है। 


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