बहु की विदाई
बहु की विदाई
आज गुप्ता जी का घर मेहमानों से भरा हुआ था। गुप्ता जी साठ साल की उमर में भी किसी गबरू जवान की भांति सारे काम बड़ी जिम्मेदारी और मुस्कान के साथ कर रहे थे । चेहरे से सुकून और संतुष्टि के भाव छलक रहे थे और उनकी धर्मपत्नि कोकिला भी बड़ी गर्मजोशी से मेहमानों की आवभगत कर रहीं थीं। यह सब देखकर कुछ दकियानूस लोग मुँह बिचका रहे थे, वहीं कुछ गुप्ता जी के बड़े दिल का बखान करते नहीं थक रहे थे।
यह सब देखकर सुलेखा की आंखें भर आईं और वह कोकिला से लिपटकर रोने लगी उसकी घिग्गी बँध गयी ।
''मेरी बेटी की आँखों में आज आँसू शोभा नहीं दे रहे --अरी पगली तू आज मत रुला मुझे आज मुझे मेरा कर्तव्य पूरा करने दे।''कोकिला ने सुलेखा के आँसू पोंछते हुए कहा ।
''चलो बेटा फेरों का समय हो गया है --।''गुप्ता जी कमरे में आकर कहने लगे तो सुलेखा उनसे लिपटकर बहुत रोई ।
''न बेटा अब इन आँखों में आँसू नहीं सुहाने सपने सजाओ तभी हम दोनो को सुकून मिलेगा ---।''गुप्ता जी ने अपनी पत्नि की तरफ़ देखकर कहा तो उनकी पत्नि ने खुश होकर सुलेखा के सिर पर हाथ फेरा। इस अनोखी शादी में हर कोई आश्चर्यचकित था गुप्ता जी ने कन्यादान से लेकर विदाई तक की सारी रस्में निभाई और भारी दिल से अपनी बहू को बिदा किया, जिसे देखकर स्वर्गवासी उनका बेटा भी मुस्करा दिया ।