भारत की गंगा जमुना संस्कृति

भारत की गंगा जमुना संस्कृति

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"अहा,आज तो दोस्तों की महफ़िल जमी है, क्या बात है !" 

"आओ ,आओ श्रेय,तुम्हारा ही इंतजार था।आज हम सब काव्य पाठ पर चर्चा करेंगे,वह भी ऐसा जो हमारी सांस्कृतिक अनेकता में एकता का उदाहरण हो ।" 

"बहुत अच्छे,तो प्रारम्भ कौन कर रहा है ?"

"क्यों न तुम ही करो ?"

"जैसी मित्रों की इच्छा।प्रस्तुत है फारसी और ब्रज भाषा में मिली-जुली रूप में लिखी गयी ऐसी कविता जो शायद आप ने पहले नहीं पढ़ी होगी जिसकी एक पंक्ति फारसी में तो एक ब्रज भाषा में है, ज़िहाल-ए मिस्कीं मकुन तगाफ़ुल, दुराये नैना बनाये बतियां ।

कि ताब-ए-हिजरां नदारम ऐ जान,

न लेहो काहे लगाये छतियां।

"वाह,वाह,क्या कहने !क्या ही अच्छा हो कि हम इसका अर्थ भी जाने !"

"तो मित्रों,इसका अर्थ है,

मुझ गरीब की बदहाली को नज़रंदाज़ न करो - नयना चुरा के और बातें बना कअब जुदा रहने की सहन शक्ति नहीं है ( नदारम ) मेरी जान , मुझे अपने सीने से लगा क्यों नहीं लेते हो।"

"ये किसकी लिखी है, मेरा मतलब है यह किस स्रोत से ली गई है ?"

"यह अमीर खुसरो ने लिखी है और स्रोत है: जिहाले मिस्किन मकुन तग़ाफ़ुल।अब आगे सुनिए,

शबां-ए-हिजरां दरज़ चूं ज़ुल्फ़

वा रोज़-ए-वस्लत चो उम्र कोताह,

सखि पिया को जो मैं न देखूं

तो कैसे काटूं अंधेरी रतियां।

जुदाई की रातें लम्बी जुल्फों की तरह लम्बी हैं और मिलन का दिन उम्र की तरह छोटी

सखी , प्रियतम को न देखूं तो कैसे अँधेरी रातें काटूं ( अर्थात मेरी जिंदगी उसी से रोशन है।"

"लाजवाब,भाई, जारी रखें !"

"यकायक अज़ दिल, दो चश्म-ए-जादू

ब सद फ़रेबम बाबुर्द तस्कीं,

किसे पडी है जो जा सुनावे

पियारे पी को हमारी बतियां।

यकायक , दो जादू भरी आँखें सैकड़ों ( बसद ) तिलिस्म ( फरेबम ) करके दिल से (अज ) सुख चैन ( तस्कीं ) ले उड़ीं ( बाबुर्द

किसे इस बात की फ़िक्र पड़ी है कि प्यारे पिया को हमारी ये बातें ( चैन उड़ा लेने वाली ) जा के सुनाए ( ताकि उन्हें पता तो चले )

"बेहतरीन,भई क्या बात हचो शमा सोज़ान, चो ज़र्रा हैरान

हमेशा गिरयान, बे इश्क़ आं मेह ।

न नींद नैना, ना अंग चैना

ना आप आवें, न भेजें पतियां।

जैसे शमा जलती है जैसे हर ज़र्रा विस्मित है वैसे ही चाँद के प्रेम में - मैं हमेशा डूबा रहता हूँ ( रोता - गिरियाँ )

 "बहुत खूब,क्या बात है !,वाह,वाह !बहक्क-ए-रोज़े, विसाल-ए-दिलबर

कि दाद मारा, फरेब खुसरौ ।

सपेत मन के, दराये राखूं

जो जाये पांव, पिया के खतियां।

"खुसरो कहते हैं -उसे ही हक है कि मिलन ( विसाल ) का दिन तय करे या फरेब करे , तब तक तक मन के भेद अन्दर ही रखूँ ( दो तरफ़ा -प्यार का या नहीं ) जब तक की दिलबर का पता नहीं मिल जाता ( खतियाँ )। 

"भाई,दिल जीत लिया,अमीर खुसरो ने और तुमने !"चो शमा सोज़ान, चो ज़र्रा हैरान

ज़े मेहर-ए-आँ-मह बगश्तम आख़िर।

न नींद नैना, ना अंग चैना

ना आप आवें, न भेजें पतियां।

जैसे शमा जलती है जैसे हर ज़र्रा विस्मित है वैसे ही मैं भी इस चाँद मह ) का सूरज (मेहर) आखिर बन ही गया (बगश्तम) अर्थात जैसे शमा जलती है हर जर्रा विस्मित व बेचैन है वैसी ही खुद को जला देने वाली अत्यंत तेज़ आग मुझे भी आखिर ( प्यार की ) लग ही गई।

न आँखों में नींद है न अंगों को चैन , न आप आते हैं न ही आप के पत्र आते हैं।सपीत मन के, दराये राखूं

जो जाये पांव, पिया के खतियां

जिसका अर्थ दिया हुआ है - मन के सफ़ेद मोती , बचा के रखूं ,जब तक की दिलबर का पता नहीं मिल जाता ( खतियाँ ) ।एक फिल्मी गीत भी बना है,'जिहाल-ए -मिस्कीन मकुन बरंजिश , बेहाल-ए -हिजरा बेचारा दिल है

सुनाई देती है जिसकी धड़कन , तुम्हारा दिल या हमारा दिल है।'जिहाल-ए -मिस्कीन मकुन बरंजिश

का मतलब हुआगरीब की बदहाली पर रंजिश न करें। धन्यवाद मित्रों।"

"धन्यवाद तो हमें करना चाहिए, भाई आज की शाम हमेशा याद रहेगी। जिहाल-ए -मिस्कीन मकुन बरंजिश......"


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