"भाई-बहन की यारी सबसे प्यारी"
"भाई-बहन की यारी सबसे प्यारी"


कहने को तो कोई भी रिश्ता बड़ा अनमोल होता है पर सारे रिश्तो से बड़ा भाई बहन का रिश्ता अलग एवं बड़ा ही खास होता है।
एक बार की बात है रामपुर के एक छोटे से गांव में एक छोटा सा परिवार रहता था। इस परिवार में भाई बहन एवं एक पिता रहता था। भाई बहन यानी मोहन और मीरा में बहुत ही प्रेम था। दोनों एक साथ खेलते कूदते, पढ़ते लिखते और स्कूल भी साल जाते। कुछ सालों बाद मोहन कक्षा सातवीं में चला गया और उसकी बहन मीरा कक्षा छठी में। धीरे-धीरे उसके घर की आर्थिक स्थिति खराब होती गई घर में केवल एक पिता ही था जो दिनभर खेतों में काम करने के बाद घर आता था। एक दिन मिनी पिता की तबीयत खूब खराब थी। मोहन मीरा दोनों काफी डर गए क्योंकि उनके पास इलाज का भी पैसा ना था। कैसे-कैसे करके मोहन ने कुछ पैसे इकट्ठे किए और पिता को गांव के अस्पताल में चिकित्सा करवाया। दो-चार दिनों में पिता की तबीयत में सुधार हुई पर वह पहले जैसे काम ना कर पा रहे थे।
मोहन काफी परेशान था पैसे सारे खर्च हो चुके थे और मोहन के पिता भी पहले झांसा काम नहीं कर पा रहे थे। मोहन ने फिर सोचा और उसे पढ़ाई छोड़ कर अपने पिता के साथ खेतों में काम करना चाहिए ताकि घर का खर्च चल सके और अपनी बहन को पढ़ा सके।
मोहनिया बात अपने पिता को बताई……पिता की आंखों में आंसू थे अभी कुछ नहीं कह पा रहे थे। इधर मोहन की आंखें भी आंसुओं से भर आए। कुछ देर बाद पिता ने कहा मोहन तुम पढ़ाई करने स्कूल जाओगे और मैं कुछ दिनों में पूरी तरह ठीक हो जाऊंगा और फिर खेतों में काम करने जाऊंगा पर मोहन अपनी जिद पर अड़ गया और कहा पिता आपकी तबीयत बहुत खराब है और बिगड़ जाएगी इसलिए मैं भी आपके साथ कल से खेतों में जाऊंगा और आप यह बात मीरा को नहीं बताएंगे नहीं तो वह स्कूल जाने से मना कर देगी।
रात भर मोहन यह बात सोचते था और उसने फैसला किया वह अब राम के साथ शहर काम करने जाएगा। यह बात मोहन ने अपने पिता को सुबह बताई और कहां पिता मैं कल शहर जा रहा हूं राम के साथ और वहां मुझे काम भी अच्छा खासा मिल रहा है और इससे मैं बहुत सारे पैसे कमा लूंगा और आप सभी को कभी तकलीफ नहीं होने दूंगा। पिता ने उसे रोकने की कोशिश की पर वह नहीं माना। मोहन ने कहा आप अपनी तबीयत का ख्याल रखिएगा मैं जल्द ही लौटूंगा और मीरा को भी स्कूल रोज भेजिएगा।
मोहन ने मीरा को बुलाकर कहा मैं कल शहर जा रहा हूं। तुम रोज स्कूल जाना और पिताजी का भी ख्याल रखना मैं कुछ दिनों में वापस आ जाऊंगा।
मीरा की आंखों में आंसू आ गए थे। दोनों एक दूसरे के सामने रोने लगे और फिर गले लगा लिया। फिर मोहन अपना समान लिए शहर की ओर चला गया।
कुछ महीनों बाद रक्षाबंधन का दिन आया मीरा मोहन का इंतजार करते रह गई परंतु मोहन ना आया। मोहन अपने दोस्तों के हाथों घर के लिए कुछ पैसे भिजवा दिए थे। ऐसे ही 3 साल बित गए।
मीरा की शादी उसके पिता ने ठीक कर दी थी यह बात मोहन को पता ना थी। फिर रक्षाबंधन हर साल की तरह इस साल भी आ गया मेरा हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी अपने भाई के इंतजार में थी।
मोहन अपने गांव लौट रहा था उसने दूर से देखा उसके गांव में गाने की आवाज आ रही थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था आज उसके गांव में इतनी चहल-पहल क्यों है फिर वह अपने घर के पास पहुंचा तो उसने देखा कि उसकी बहन मंडप में बैठी थी और उसकी शादी हो रही थी। उसके पिता भी वहीं बैठे थे।
मोहन जोर से मीरा चिल्लाया। मीरा अपने भाई की और देखते हुए भैया बोली और अगर उसके गले लग गई और जोर जोर से रोने लगी। ममता ने कहा मुझे लगा आप आज के दिन भी नहीं आओगे। पिता भी आकर गले लगे और रोने लगे। उन्होंने कहा 4 साल में ना कोई चिट्ठी और ना ही घर आए ऐसा कोई करता है अपने ही घर वाले को भूल जाता है।
फिर तीनों बहुत खुश थे आज रक्षाबंधन भी था मीरा ने मोहन की कलाई पर राखी बांधी और दोनों एक दूसरे को मिठाई खिलाएं फिर मीरा को मंडप पर बैठाया और शादी मोहन ने बड़े ही धूमधाम से करवाई।
मोहन ने अपनी बहन की रक्षा की और उसे सारी खुशियां दी। उसने अपनी राखी के पावन बंधन को निभाया।