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बेवजह... भाग ४

बेवजह... भाग ४

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अब तक....

देखते ही देखते नौ महीने बीत गए... सरला को बहुत तेज़ दर्द हो रहा था, किसी भी वक़्त प्रसव हो सकता था, सभी लोग बहुत उत्सुक थे... सरला को बार-बार विक्रम से हुई वह बातें याद आ रही थी, विक्रम शहर गया था, यह बहुत ही सोचा समझा नुस्खा था, विक्रम की माँ ने कुछ दिनों के लिए विक्रम को शहर भेज दिया ताकि प्रसव के वक़्त वह यहाँ मौजूद ना हो और जो लड़की पैदा हो तो उसे आसानी से रास्ते से हटाया जाए....

अब आगे....

इंतज़ार खत्म हुआ, दाई माँ कमरे से बाहर आई..और उन्होंने धीमे शब्दों में उदासी भरे स्वर में कहा....

"छोरी हुई है।"....

यह सुनकर सरला की सास का चेहरा उतर गया। साथ ही घर के बाकी सदस्य भी यह बात सुनकर ना खुश हुए...

"अरे बींदणी जा उस छोरी ने ले आ।"... सासू ने सरला की जेठानी से कहा...

सरला की जेठानी कमरे मे आयी, सरला अपनी बच्ची को निहार रही थी, उसकी आँखों से खुशी झलक रही थी, मगर यह खुशी मानों सिर्फ दो पल की थी, सरला ने जैसे ही अपनी जेठानी को सामने देखा वह समझ गयी...

सरला की जेठानी चुपचाप सरल से नजरें चुराते हुए सरला के करीब आयी और उसके पास से बच्चे को अपने हाथों में ले लिया....

ये देखकर सरला चिल्ला उठी और उसकी जेठानी से बच्ची को वापस लेने लगी...

सरला की जेठानी बच्ची को लेकर बाहर के कमरे में आई और सरला रोती हुई उनके पीछे-पीछे...

"बींदणी रोने-धोने का तमाशा करने की कोई जरूरत नहीं है, थारी यह छोरी म्हारा वंश आगे नहीं बढ़ा सकती, एक दिन थारे ही कांडे पर बोझ बनकर रे जावेगी ये।"

"ना म्हारी छोरी म्हारे लिए बोझ ना है, मैं उससे कुछ नहीं होने दूँगी"

"देख बींदणी ज़िद ना कर।"

"अगर आप ने म्हारी छोरी को कुछ किया तो मैं भी जिंदा नहीं रहूँगी, मर जाऊँगी मैं।"

यह बात सुनकर सरला की सास ने गुस्से में आगबबूला होकर कहा-

"बाहर फेंकदो इसको, इसकी बच्ची के साथ, आज के बाद मुझे इसकी शक्ल भी नहीं देखनी, म्हारे विक्रम के लिए में इससे घनी अच्छी लड़की लाऊँगी।"

और घर के नौकरों ने सरला को घसीटते हुए घर से बाहर निकाल दिया और सरला की जेठानी ने बाहर आकर सरला के हाथ में रोते हुए उसकी बच्ची को रख दिया और मुड़के घर के अंदर चली आयी....

घर का दरवाजा बंद हो गया, सरला वही पड़ी-पड़ी रो रही थी, अपनी बच्ची को सीने से लगाकार सरला जोर जोर से रोये जा रही थी, मगर वहाँ उसकी पुकार सुनने वाला कोई नहीं था...

तभी आँसुओं से झीनी आँखों को एक धुंधली सी परछाई आपने करीब आती हुई दिखी...

विक्रम खेतों से काम करके लौट रहा था, दूरसे उसने सरला को घर के बाहर इस हालत में देखा और देखते ही... वह दौड़ के सरला के पास आकर बैठ गया...

सरला कुछ बोले उसके पहले विक्रम ने सरला को एक तरफ से अपने सीने से लगा लिया... और फिर सरला के आँसू पोंछकर उससे चुप करवाया...

"कुछ कहने की जरूरत नहीं है... बस चुप हो जा, जितना रोना था रोलिया, बस अब और नहीं।"

विक्रम ने अपनी बच्ची को गोद में लिया और प्यार से देखते हुए कहा...

"जीविका म्हारी लाडो"....

विक्रम ने अपनी बच्ची को गोद में लिया और अपनी पत्नी के साथ वहाँ से चलने लगा... तभी सरला ने कहा

"माँ से".....

विक्रम ने सरला को बीच में ही टोक दिया और कहा....

"जिस घर मे मेरी बच्ची के लिए जगह नहीं उस घर की दहलीज पर मुझे पाँव भी नहीं रखना"...

और विक्रम अपने परिवार को लेके वहाँ से चल निकला...

ठक ठक की आवाज़ से सरला जाग गयी, सरला समझ गयी कि दरवाज़े पर ठाकुर होगा... मारे घबराहट के सरला पसीने मैं लटपट हो चुकी थी, सरला वही घबराहट के मारे बैठी रही, सरला की हिम्मत ही नहीं हो रही थी की दरवाजे को खोल सके...

ठाकुर के आदमियों ने दरवाजा तोड़ दिया... सरला वहीं सामने बैठी हुई थी, ठाकुर दरवाजा टूटते ही अंदर आया और सरला के करीब आकर उसने कहा...

"किधर है थारी छोरी।"

सरला ने उस पर हँसकर जवाब दिया... "दूर इस पाप की नगरी से बहुत दूर चली गई वो।"

यह सुनते ही ठाकुर ने सरला को कसके तमाचा मारा और सरला नीचे गिर गयी...

मगर सरला की आवाज़ बंद नही हुई, सरला चीख-चीख कर कह रही थी...

"तुझे वह कभी नहीं मिल पाएगी, नीच है तू सड़ सड़ करके मरेगा तू।"

ठाकुर गुस्से मे लाल हुआ जा रहा था.और गुस्से में ठाकुर ने कहा-

"बहोत जुबान चल रही है तेरी... इससे हमेशा के लिए खामोश कर दो।"

ठाकुर यह कहकर वहाँ से निकल गया और ठाकुर के आदमियों ने सरला को उसके घर के अंदर ही बंद करके घर को आग लगा दी।

सरला की चीखें आसमान छू रही थी मगर उसकी जान बचाने वाला वहाँ कोई नहीं था और कुछ ही देर मैं सरला की चीखें खामोश हो गयी, आग की लपटों में वो चीखें कहीं खो गयीं....

क्रमशः


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