बेवजह... भाग ६

बेवजह... भाग ६

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अब तक...

("विक्रम ठाकुर ने तन्ने हवेली पर बुलाया है, आज जो कुछ भी हवा उसके लिए ठाकुर साहब ने शमा मांगी है और तुझे नौकरी पर भी वापस बुलाया है"...

"माँ, बापू को हवेली नही भेजना चाहती थी, लेकिन बापू फिर भी हवेली पर गए... और फिर लौट कर कभी वापस नही आये"...

"तब मे सिर्फ एक साल की थी, माँ ने मुझे दूध पिलाकर सुला दिया, और बापू की राह तकते तकते खुद भी सो गई, तभी दरवाजे पर हुई दस्तक से माँ उठ गई"...

"दस्तक सुनते ही माँ ने जल्दी से दरवाजा खोला, मगर दरवाजा खोलते ही माँ चौक गयी"....

दरवाजे पर ठाकुर खड़ा था,माँ ठाकुर को देख कर घबरागयीं, घबराहट के चलते माँ ने ठाकुर से बड़ी ही धीमी आवाज़ मे पूछ....

"वो कहा है... जीविका के बापू बोलते वक़्त माँ की जुबान लड़खड़ा रही थी"....

ठाकुर ने बड़ी क्रुरत भरी आवाज़ मै कहां...

"अब वो लौट के कभी नही आएगा"...)

अब आगे....

"माँ यह बात सुन कर चौक गयी"...

"बहोत ही खूबसूरत है तू, तेरे पति ने घना मज्जा लिया अब कुछ मजा हमे भी दे दे".... ठाकुर

माँ अपनी इज्जत को बचाने के लिए चिल्लाती रही, मगर कोई नही आया और उस ठाकुर ने बड़ी बेहरहमी से मेरी माँ के साथ बलातकार किया...

मेरी माँ को अपने पति का चेहरा देखना भी नसीब नही हुआ आखरी बार...

उस दिन के बाद ठाकुर का जब मन हो वह रात बेरात चला आता था और मेरी माँ को नोच नोच के....

जीविका बोलते बोलते रो पड़ी... कियान यह सब सुनकर दंग रह गया और जीविका के करीब आकर बैठ गया...

कियान ने अपना सहारा जताते हुए जीविका का हाथ थामना चाहा, लेकिन जीविका ने अपना हाथ पीछे ले लिया... और फिर कहा...

माँ थक चुकी थी, तभी माँ ने आत्महत्या करने का प्रयत्न किया लेकिन मेरे रोने की आवाज़ सुनकर माँ ने मुझे जमीन से उठाकर गले लगा लिया...

सिर्फ और सिर्फ मेरी खातिर माँ जिंदा लाश बनकर जीती रही, ताकि मै जी सकू...

जहर के घुट पी पी कर माँ ने दिन बिताए...

फिर मे बड़ी होगयी, और माँ ने मेरे लिए एक छोरा पसंद कर मेरा उसके साथ विवाह करवा दिया...

सिर्फ बारह साल की उम्र मै, जहां बचपन का पल्लू अभी तक सर से सरका नही था वही पति का आँचल, उसके मान,मर्यादा का बीड़ा मेरे सर झोंक दिया गया...

माँ ने सोचा कि अब वो चैन से जी सकेगी लेकिन नही, यहा भी मेरी बदकिस्मती उसके रास्ते का रोड़ा बन गयी...

शादी के सिर्फ चार महीने बाद एक दिन खबर आई के, मेरे पति का देहांत होगया.. और मेरे सर से पानेतार को निकाल कर सदा के लिए ये काली ओढ़नी डाल्दी गई...

मेरे ससुराल वालों ने मेरे पति के देहांत के बाद मुझे म्हणूस और पनोती कह कर घर से धक्के मार कर बाहर निकाल दिया...

लेकिन मेरी माँ ने तब भी मेरा साथ नही छोड़ा, मुझे वापस घर ले आई, माँ ने काफी दिन मुझे घर मै ही कैद कर रखा, लेकिन फिर भी उस ठाकुर की नजर मुझपर न जाने कैसे पड़ गई और एक दिन रात को वह घर पर आया...

मे सो रही थी... माँ ने मुझे जगाया नही , जब मेरी नींद खुली तो मैंने कुछ आवाज़ें सुन्नी...

"आप मेरे साथ जो करना चाहते हो वो करो, म्हारी छोरी ने बक्श दो सरकार... बच्ची है वो उसने कुछ नही पता नादान है वो"... सरला, जीविका की माँ...

"बूढ़ी हो चुकी है तू, और हम कलियों का शोक रखते है, तेरी फूल सी बैठी को मसलने मै जो मज्जा आएगा वो तूझमे अब कहा"... ठाकुर

"कुछ दिनों की मोहलत देता हूं, उसे सब समझा, तैयार कर उसे... याद रखना ज्यादा दिन इंतज़ार नही करूँगा मै".... ठाकुर

माँ रोती रही, कुछ नही कर पाई... उसदिन माँ ने मुझे अपने अतीत के सारे राज़ बताए, माँ कुछ भी करके मुझे मेहफूज रखना चाहती थी...

तब से मै और माँ हर दिन खौफ मे जी रहे हे थे... की कब क्या होजाए, तभी एक दिन माँ को तुम मिले और माँ तुम्हे घर ले आई....

मैं श्राप हूँ, म्हणूस हूँ... जहा जाती हूँ अपनी इसी म्हणूसयत की वजह से सब कुछ तहस नहस करदेती हु....

जीविका रो रही थी, कियान जीविका के करीब गया और उससे गले लगाना चाहा, जीविका ने कियान को दूर करते हुए कहा...

"मुझसे दूर रहो नही तो मेरे कारण तुम भी"....

कियान तभी एक तरफ बैठ गया और जोर से हँसने लगा...

यह देख जीविका, कियान के सामने देखने लगी...." मेरी बातों पर तुम्हे हँसी आ रही है ना, हँस लो"...

"नही नही, माफ करदो मुझे, हँसी मुझे तुम्हारी बातों पर नही, खुद पर आ रही है"....

"तुम कहती हो कि तुम्हारी म्हणूसयत मुझे तहस नहस कर देगी, लेकिन मे तो पहले से ही तहस नहस हो चुका हूँ"..

"आखिर तुम मेरे बारे मे जानती ही क्या हो... तुम्हे क्या पता कि मै कितना बदनसीब हूँ, इस बंजर रण मै तुम्हारी माँ को मै किस हालात मै मिला, तुम कुछ नही जानती"...

"तुम नही जानती की इस बंजर रण मैं बेवजह आखिर किस वजह को ढूंढते हुए मै आ पहुँचा हूँ"....

....................................................................To Be Continued .....


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