बेवजह- भाग १

बेवजह- भाग १

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राजस्थान की जलाने देने वाली गर्मी में, एक लड़का जो महज १४ - १५ साल का होगा, सुनसान रास्ते पर लड़खड़ाते हुए चल रहा है, पिघला देने वाली गर्मी, सामने सब कुछ धुँधला-सा दिख रहा था उसके, लड़खड़ाते हुए कदम मानों रास्ते से कोई जंग लड़ रहे थे, धीरे-धीरे आगे बढ़ता हुआ वो लड़का आखिर थक हार कर गिर पड़ा मगर उसका हौसला ना गिर पाया, पानी पानी कहते हुए पानी की प्यास से जूझते हुए रेंगते रेंगते वो आगे सरकने लगा और बस कुछ ही देर मैं बेहोश हो गया।

दूर खेतो से एक लड़का अपने हाथ में एक लकड़ी लिए अपने ही मस्ती में गुनगुनाते हुए अपने घर की और बढ़ रहा था। मगर यह खुशी बस चंद लम्हों की थी, गुनगुनाते हुए वो लड़का अपने घर पहुँचा, तब उसने देखा कि ? रोज की तरह आज भी चूल्हा जल रहा था मगर चूल्हे के पास माँ नहीं बैठी थी, नाही चूल्हे पर कुछ बन रहा था, रोज की तरह नल से पानी बह रहा था, मगर आज वह बहन काम नहीं कर रही थी, रोज की तरह ही लकड़ियों के ढेर के पास कुल्हाड़ी पड़ी थी मगर बाबा वहां आस-पास नहीं थे, सबकुछ बहुत शांत था, इस शांत माहौल के कारण वह लड़का घबरा रहा था।

मारे घबराहट के वो माँ-माँ चिल्लाते हुए जोर से दरवाजे की ओर भागा, और जैसे ही वो दरवाजे के करीब पहुँचा उसने देखा कि दरवाजा पहले से खुला हुआ था, उसने धीरे से दरवाजा अंदर की ओर धकेला और उसने सामने जो कुछ देखा वह देखकर वो जोर से चीख पड़ा माँ आआआआआ।

जहां कभी लोग पानी को तरसते हैं, उस रेगिस्तान में अचानक से मौसम में बदलाव हुआ मानो भगवान भी उस बच्चे को मौत से जूझता नहीं देख पा रहे थे, आसमान का रंग बदल गया, बादलों से आसमान ढक गया और अचानक से वहां बारिश होने लगी, अपनी आँखों में अपने कुछ ऐसे दिल देहला देने वाली याद से माँ को याद करते हुए वो लड़का तप्ती जमीन पर पड़ा था, तभी बारिश गिरने लगी, तपती ज़मीन पानी के कारण ठंडी हो गयी, और वो लड़का होश में आ गया, पानी की बूंदे उसके मुख पर पड़ते ही उससे कुछ अलग ही आंनद प्राप्त हुआ, वो उठकर फिर से चलने लगा, उस लड़के में अब थोड़ी भी ताकत नहीं बची थी, वो ठीक से चल भी नहीं पा रहा था, कुछ ही दूर चलते ही वह फिर से गिर पड़ा और रेत पर फिसलकर, रेत के टीले से नीचे आ गिर पड़ा।

उसने धीरे से अपनी आँखें खोली सब उससे धुंधला धुंधला दिख रहा था, उसने देखा कि एक औरत काले कपड़े पहने उसके सामने खड़ी थी और बस यह देखते ही उसने अपनी आँखें बंद कर ली।

जब उसकी आँख खुली तो वह एक चार पाई पर एक झोपड़ी में लेटा हुआ था, आँखें खुलते ही उसने चारों ओर नजर घुमायी और उठकर चार पाई पर बैठ गया, जैसे ही वह बैठा वह काले कपड़े वाली औरत उसके सामने आकर खड़ी हो गयी और बेहद प्यार से उसने कहा।

"अरेरे, आराम से बेटा, लेटे रहो कुछ चाहिए तो मुझ से कहो।"

"पानी..." उस लड़के ने झट से जवाब दिया।

"ठेर कोनी मैं अभी थारे वास्ते पाणी लावू हूँ।" वो औरत मटके की और बढ़ी और एक ग्लास में पानी लेकर उसके तरफ आई और उससे पानी दिया।

लड़के ने एक ही घूट में पानी पी लिया मानो वह सालों से प्यासा हो, पानी पीते ही उसे सुकून मिला।

"और कुछ चाहिए थारे को" उस औरत ने कहा।

"नहीं, मगर धन्यवाद आपने मेरी जान बचायी।" बड़े ही प्यार से उस लड़के ने जवाब दिया।

उस औरत ने उस लड़के की बात का जवाब नही दिया, बस उसके सामने देख कर एक प्यारी सी मुस्कान दी....

"ठीक है में जाता हूँ अब।" इतना कह के वह लड़का चारपाई से उतरने गया मगर ज़मीन पर पैर रखते ही दर्द से कराह उठा।

"अरे छोरा रुक।" उस औरत ने झट से उसे पकड़ कर फिर चार पाई पर बिठाया।

छाले पड़ने के वजह से उस लड़के के पैर अधमरे हो चुके थे, उनमें खड़े रहने की भी क्षमता नहीं थी अब।

उस औरत ने उससे प्यार से लेटाया,और फिर पैरों पर गीली मिट्टी का लेप लगाया जिससे उससे कुछ देर के लिये राहत मिली।

कुछ देर बाद उस औरत ने उस लड़के को जगाया, चार पाई पर ही एक परात में उसके हाथ और मुह धुलवाकर उस औरत ने बड़े ही प्यार से अपने पल्लू से उसके मुँह और हाथों को साफ किया, यह सब देखकर उस लड़के की आँखें भर आईं, और अपनी माँ को याद करते हुए वह रोने लगा। तभी उस औरत ने कहा-

"अरे क्या हुआ छोरा, क्यों रो रहा है।"

उस लड़के ने अपनी गर्दन हिलाते हुए कहा "कुछ नहीं बस ऐसे ही।"

फिर वह औरत उसे अपने हाथों से खाना खिलाने लगी।

तभी एकदम से उस लड़के को खासी आने लगी उस औरत ने देखा कि ग्लास में पानी नहीं है तो उस औरत ने अपनी लड़की को आवाज़ लगाई।

"जीविका, पानी ले आ छोरी।"

एक लड़की जिसने काले रंग की चोली पहन रखी थी और घूंघट से जिसका मुँह ढका हुआ था, अपने हाथों में पानी का ग्लास लेकर आई।

उस औरत ने पानी लेकर उसे उस लड़के को पिलाया, और प्यार से पूछा-

"अब ठीक है ?"

वह लड़का उस लड़की के सामने एक टक घूरे जा रहा था, तभी उस औरत ने कहा-

"ये मेरी छोरी है, मेरी लाडो, जीविका।"

"बस हम दोनों ही माँ बेटी यह इस झोपड़ी में रहते हैं, जब तक तुम चाहो यहाँ रह सकते हो।"

उस लड़के ने कहा-

"आप लोग यहाँ सिर्फ काले कपड़े पहनते हैं ?"

"नहीं बेटा ये काले कपड़े सिर्फ कपड़े नहीं, यहाँ की हर औरतों के लिए श्राप है।" बड़ी ही मायूसी के साथ उस औरत ने कहा।

"ऐसा क्यों ?" बहुत ही सरल तरीके से उस लड़के ने पूछा।

"मैं विधवा हूँ, मेरे पति नहीं हैं, और यहाँ हर विधवा जिंदगी भर ऐसे ही काले कपड़े पहनकर अपनी सारी उमर गुजार देती है।"

"पर आपकी बेटी ने काले कपड़े क्यों पहने हैं ?" बहुत ही बेचैन भाव से उस लड़के ने पूछा।

यह सुन वह लड़की वहाँ से चली गई, वो औरत अपनी बच्ची को इस तरह जाते हुए देख अपने आँसुओं को रोक नहीं पाई। मगर अपनी भावनाओं को दबाते हुए उस औरत ने कहा-

"विधवा है वो भी, मेरी तरह।"

उस लड़की की उमर करीब १३ साल की होगी, और यह सुनकर उस लड़के का मन भी भर आया, उसे भी कुछ सूझ नहीं रहा था कि आगे क्या बोले, वह बस चुप रहा।

वो औरत अपनी जगह से उठकर, अपने हाथ धोकर बस कुछ ही देर मैं वापस आई।

तभी उस लड़के ने अपनी गर्दन को झुकाते हुए दबी सी आवाज़ में कहा-

"मुझे माफ़ कर दीजिये, मैं आपका दिल दुखाना नहीं चाहता था।"

"तुम क्यों माफी मांग रहे हो बेटा, हम औरतों की तो किस्मत में ही न जाने कांटे भरे पड़े हैं, उपरवाले ने ऐसे जहां में हमें भेजा है कि वह खुद भी शर्मिंदा होगा, मगर फिर भी शर्म से शायद माफी नहीं मांग पा रहा, तो तुम क्यों माफी मांग रहे हो।" यह सुनते ही वह लड़का शांत हो गया, घर में चारों और एक अजीब सी चुप्पी छा गई।

कुछ लम्हों की चुप्पी के बाद, उस औरत ने पूछा-

"तुम कोन हो बेटा, कहाँ से आए हो ?"

लड़के ने कुछ जवाब नहीं दिया और बस चुप रहा।

"क्या तुम अनाथ हो ?"

"नहीं मैं अनाथ नही हूँ, मेरे बाबा, मेरी माँ, मेरी बहन सब हैं, अनाथ नहीं हूँ मैं।"बस यह कहते-कहते उसकी आँखें भर आई।

उस औरत ने कहा, "तो फिर जल्द ही ठीक होकर अपने परिवार के पास, लौट जाओ बेटा, तुम्हारी माँ तुम्हें बहुत याद करती होगी, राह तकती होगी तुम्हारी।"

"हाँ ठीक कहा आपने।"

"अच्छा कब तक मैं तुम्हे छोरा-छोरा कहूँगी, अपना नाम तो बताओ।"

"मेरा नाम, मेरा नाम कियान है..."


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