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Sangeeta Aggarwal

Inspirational

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Sangeeta Aggarwal

Inspirational

बेटी की खुशियां या बिरादरी?

बेटी की खुशियां या बिरादरी?

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" क्या बात है बेटा सब ठीक तो है ना ?" शालिनी जी अपनी बेटी कुहू को उदास देख बोली।


" हां मम्मी बस ठीक ही है !" कुहू ने अनमना सा जवाब दिया।


" सार्थक ( कुहू का मंगेतर) ने कुछ कहा क्या ?" शालिनी जी ने फिर पूछा।


" मम्मी वो वैसे भी कहता ही है सुनता तो कुछ वैसे भी नहीं !" कुहू उदासी में बोली।


" ओह..!" शालिनी जी के मुंह से केवल इतना निकला पर बेटी की उदासी बहुत कुछ बयां कर रही थी। पर उस वक़्त बात आईं गई हो गई।


अभी एक महीना पहले ही उसका रिश्ता सार्थक से तय किया था कुहू के पापा सिद्धांत जी ने। हालांकि कुहू कॉलेज के समय से ही अभिषेक को पसंद करती थी ये बात जब घर में सबको पता लगी तो भूचाल आ गया।


" गैर बिरादरी के लड़के से बेटी ब्याह कर हमे अपनी नाक नहीं कटवानी लोग क्या कहेंगे कि लड़की में कमी होगी तभी अपनी बिरादरी का लड़का नहीं मिला !" कुहू की दादी शांति देवी ने गुस्से में कहा।


" और नहीं तो क्या कुहू तुम्हे पढ़ने , नौकरी करने की इजाजत इसलिए नहीं दी गई थी कि तुम अपनी मनमानी करो तुम्हारी शादी वहीं होगी जहां मैं चाहूंगा और मैने तुम्हारे लिए एक लड़का देखा है जो हमारी बिरादरी के अच्छे खासे परिवार से तालुक रखता है।" सिद्धांत जी ने अपना फैसला सुनाया।


कहीं कुछ दरक सा गया कुहू के भीतर "क्या एक लड़की को पढ़ने की नौकरी की इजाज़त देकर मां बाप एहसान करते हैं माना उन्होंने जन्म दिया पाला पोसा पर पढ़ाई तो हर किसी का मौलिक अधिकार है। रही मनमानी की बात मैने तो घर में सबको बताया है खुद से थोड़ी शादी की है।" 


खैर शायद अपने प्यार की बलि दे पापा का फैसला मानना ही होगा क्योंकि अभिषेक ने भी यही कहा था "अगर हमारे परिवार वाले ना माने तो हमे अपने रास्ते अलग करने होंगे क्योंकि परिवार को रुसवा कर हम अपने प्यार की इमारत की नींव नहीं रखेंगे!"


और कुहू ने पापा के फैसले को मौन स्वीकृति दे दी सार्थक का परिवार आया और कुहू को पसंद करके चला गया। अब सार्थक कभी फोन पर बात करता कभी कभी मिलने भी बुला लेता था। कभी कुहू मना करती तो सार्थक का जवाब होता " मैं तुम्हारा होने वाला पति हूं तुम वही करोगी जो मैं कहूंगा !" बाहर जा सार्थक उसकी पसंद नापसंद को कोई तवज्जो नहीं देता अपनी पसंद का खाना अपनी पसंद का घूमना कभी कभी तो वो कुहू के कपड़ों तक को बोल देता उसे पसंद नहीं ऐसे कपड़े तो अब कुहू ऐसे कपड़े ना पहने।


आज भी उसने कुहू को एक कैफे में बुलाया था वहां कुहू को कॉलेज के दोस्तों की टोली मिल गई तो हाई हैलो हो गई पर ये सार्थक को रास नहीं आया कि उसकी होने वाली बीवी किसी और लड़के से हाथ मिलाए या बात करे। बस इसी बात पर उसने कुहू को काफी कुछ सुना दिया था।


कुछ दिन बाद ...


" बेटा कल हम शादी की शॉपिंग करने चलेंगे तुम सब कुछ अपनी पसंद का लेना आखिर इस्तेमाल तो तुम्हे ही करना है मैं वैसे भी अपनी बेटी की शादी में कोई कमी नहीं रखना चाहती!" शालिनी जी नाश्ते की टेबल पर बोली।


" और नहीं तो क्या सारे शहर को , हमारे रिश्तेदारों को और कुहू के ससुराल वालों को भी तो पता लगे कि हमारे लिए हमारी कुहू की पसंद कितनी मायने रखती हैं !" शांति देवी बोली।


" मम्मी जो आपको पसंद हो वहीं ले आना मैं कौन सा जानती हूं शादी के बाद क्या चीज कैसी चाहिए होती है !" ये बोल कुहू अपने कमरे में चली गई।


शालिनी जी बेटी की उदासी कई दिन से भांप रही थी पर उन्होंने यही सोचा था शायद मायके से विदा होने का गम होगा पर यहां बात कुछ और ही थी।

" क्या बात है कुहू तुम इस शादी से खुश नहीं हो ?" काम से निपट कर शालिनी जी बेटी के कमरे में आ पूछती हैं।


" ऐसा कुछ नहीं मम्मी वैसे भी आप, पापा दादी सब तो खुश हैं !" कुहू बोली।


" पर बेटा तेरी ख़ुशी भी तो मायने रखती है ना ...मुझे बता क्या हुआ है ?" शालिनी जी बेटी का सिर गोद में रख सहलाती हुई बोली।


" मम्मी लड़की की शादी में मां बाप सब बेटी की पसंद का करते हैं ....कपड़े गहने से लेकर डेकोरेशन तक में उसकी सलाह ली जाती है यहां तक की कार्ड भी उसकी पसंद का होता है ... हैं ना ?" जवाब की जगह कुहू ने मां से ही सवाल किया।


" बिल्कुल आखिर शादी जिंदगी में एक बार होती है तो हर मां बाप सोचते है बेटी नए जीवन में जब प्रवेश करे तो सब उसकी पसंद का हो जिससे वो खुश रहे !" शालिनी जी मुस्कुरा कर बोली।


" पर मम्मी इन भौतिक चीजों से खुशी मिल जाती है क्या जब जिसके साथ को नए जीवन में प्रवेश कर रही वो दूल्हा ही अपनी पसंद का ना हो !" कुहू ने उदासी से कहा।


" बेटा इन बातों का अब क्या फायदा मुझे तो लगा था तू अभिषेक को भूल गई है !" शालिनी जी चिंतित हो बोली।


" मम्मी जबसे मेरा सार्थक से रिश्ता हुआ मैंने अभिषेक से कोई मतलब नहीं रखा क्योंकि वो भी यही बोलता था अगर हमारे मां बाप हमारी शादी को तैयार ना हुए तो हम वहीं शादी करेंगे जहां वो चाहेंगे ...मम्मी मैने सार्थक को ही अपना सब मान लिए था पर उसे पत्नी नहीं चाहिए एक ऐसी कठपुतली चाहिए जो उसकी मर्जी से नाचे वो चाहे तो हंसे वो चाहे तो बोले और किससे बोले वो भी वही तय करेगा !" कुहू बोली और उसने उन्हें सार्थक से मुलाकात की सभी बातें बताई।

 कैसे वो पहले दिन से कुहू पर अपना हक जताता है, कैसे किसी और से बोलने पर गुस्सा हो जाता है यहां तक कि बाहर क्या खाना पीना वो भी सार्थक ही तय करता है। यहां तक कि कपड़े भी वही बताता है क्या पहन कर आना क्या नहीं।


" मम्मी मेरा दम घुटने लगा है इस रिश्ते में !" कुहू ये बोल रो दी।


शालिनी जी स्तब्ध थी ऐसे कैसे बेटी इतनी लंबी जिंदगी जिएगी घुट घुट कर। क्या बेटी होने की ऐसी सजा मिलेगी कुहू को नहीं वो ऐसा नहीं होने देगी ।


" सुनिए आप लड़के वालों को मना कर दो हम उनके बेटे से अपनी बेटी का विवाह नहीं कर सकते !" शालिनी जी बाहर आ अपने पति से बोली।


" दिमाग खराब है तुम्हारा अब क्या आफत आईं है सब सही चल रहा है दोनों एक दूसरे से मिल रहे जान पहचान भी गए एक दूसरे को अब रिश्ता तोड़ने का तुक क्या है सारी रिश्तेदारी में बिरादरी में नाक कट जाएगी फिर कौन शादी करेगा तुम्हारी बेटी से ?" सिद्धांत जी चिल्ला कर बोले।


" अभिषेक ....अभिषेक से होगी हमारी बेटी की शादी !" शालिनी जी दृढ़ता से बोली।


" क्या मैं जान सकता हूं गैर बिरादरी में बेटी की शादी कर खानदान की नाक कटा तुम्हे क्या मिलेगा ...बिरादरी वाले क्या कहेंगे सोचा है कभी ?" सिद्धांत जी चिल्लाए।


" कल को हमारी कुहू ने घुट घुट कर जान दे दी या उसे कुछ हो गया तो आपकी बिरादरी वाले आ जाएंगे क्या उसे लौटने ?" शालिनी जी भी ऊंची आवाज़ में बोली।


" मतलब क्या है तुम्हारा ...सब उसकी पसंद का कर रहा हूं फिर क्यों घुट घुट कर जिएगी वो ...!" सिद्धांत जी बोले।


" हां सब उसकी पसंद का है बस दूल्हा नहीं जिसके साथ सारी जिंदगी काटनी उसे ...!" ये बोल उन्होंने सार्थक के बारे में सारी बात बताई वहां शांति देवी भी आ गई थी।


" अरे तो छोरा अपनी पसंद का चाहता भी है तो क्या गलत है पति है वो उसका होने वाला !" शांति देवी बोली।


" मांजी पति है मालिक नहीं कि मेरी बेटी सांस भी उसकी पसंद से ले उस लड़के ने मेरी बेटी को अपनी प्रॉपर्टी समझ लिया है जब मन करे उसे बुला ले जब मन करे उसे कुछ भी सुना दे वो जिससे चाहे उससे मेरी बेटी बात करे वो जो चाहे वही कुहू पहने शादी से पहले ये हाल है सोचो बाद में क्या होगा....उसने हमारे लिए अपने प्यार की कुर्बानी तक दे दी और बदले में उसे क्या दे रहे हम एक घुटन भरी जिंदगी ....क्या पता कल को कुहू ना जी पाए ऐसे लड़के के साथ ... मैं अपनी बेटी को कफ़न में देखने की जगह बिरादरी की रुसवाई पसंद करूंगी !" शालिनी नम आंखो से बोली।


सिद्धांत जी को ये सब सुन एक धक्का सा लगा उनकी लाडली किस मानसिक तनाव से गुजर रही होगी शायद इसका अंदाजा होने लगा उन्हें वो बिना कुछ बोले बेटी के कमरे की तरफ बढ़ गए। पीछे पीछे शालिनी जी और शांति देवी भी चल दी


" पापा आप ...!" दूसरी तरफ अनमनी सी लेती कुहू के सिर पर जब उन्होंने हाथ फेरा तो पलट कर कुहू बोली।


" बेटा मुझे माफ़ कर दे मैं गलत था जो सोचता था बेटी अपनी पसंद की चीजों से खुश रहेगी ससुराल में भूल गया था रहना उसे इंसान के साथ है सामान के साथ नहीं !" सिद्धांत जी बोले।


" वो पापा ....ऐसा कुछ नहीं !" कुहू कभी पापा कभी मम्मी कभी दादी को देखते हुए बोली।


तभी सार्थक का फोन आया।सिद्धांत जी ने फोन स्पीकर पर कर दिया।


" हैलो कुहू पांच मिनट में तैयार हो जाओ मैं लेने आ रहा हूं तुमसे बात करनी है और हां तमीज के कपड़े पहन कर आना जरा !" सार्थक बोला।


" सार्थक मैं ... मैं अभी नहीं आ सकती ...!" 


" तुम मुझे मना कर रही हो अपने होने वाले पति को तुम्हारी इतनी हिम्मत ....चुपचाप जो कहा वो करो समझी मैने पूछा नहीं बताया है तुम्हे और हां सूट पहन कर आना ऐसा ना हो जींस टॉप पहन अपना एक्सपोज करो और हां पांच मिनट मतलब पांच मिनट समझी... !" सार्थक चिल्लाते हुए बोला।


" बरखुदार पति बने नहीं हो तब इतनी अकड़ बनकर क्या करोगे तुम ....कुहू नहीं आएगी ना ही उसे शादी करनी अब तुमसे समझे तुम !" ये बोल सिद्धांत जी ने फोन काट दिया।


" पापा ...!" कुहू हैरानी से पापा को देखते हुए बस इतना ही बोली उसकी आंखों में सार्थक का डर था जिसे देख सिद्धांत जी तड़प उठे।


" हां बेटा अब तेरी शादी में सब चीजों के साथ दूल्हा भी तेरी पसंद का ही होगा मैं गलत था जो बिरादरी की चिंता में अपनी बेटी की खुशियों को नजरंदाज कर रहा था भूल गया था मेरी बेटी ने मेरी गोद में आ मुझे पिता का दर्जा दिया था उसने अपना पहला कदम मेरी उंगली पकड़ कर बढ़ाया था उसकी हर सफलता में मैं उसके साथ था बिरादरी नहीं.......आज ही मैं सार्थक के यहां जा रिश्ता तोड़ आता हूं साथ ही उनकी दी चीजें भी वापिस कर आऊंगा तुम मेरी अभिषेक से बात करवाना मैं उसके माता पिता से मिलना चाहूंगा पहले !" सिद्धांत जी बेटी के सिर पर हाथ रख बोले।


कुहू रोते हुए पापा के गले लग गई।


दोस्तों आपके बच्चे सिर्फ आपके हैं बिरादरी के नहीं ...उनके पैदा होने से लेकर उनके हर सपने को पूरा करने में आप उनके साथ थे बिरादरी नहीं इसलिए उन्हें समझिए जरूरी नहीं उनकी पसंद हर बार गलत ही हो। अगर वो आपका मान रखते हुए अपनी खुशियां भूल रहे हैं तो ये आपका फर्ज है कि आप उनके लिए सही फैसला लो।



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