बेसहारा

बेसहारा

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"काफी बदल गया है ये इलाका चार सालों में," माँ के साथ मायके की सड़क पर टहलने निकली उर्वी ने कहा।

"हाँ ये तो है, अब हमें छोटी-मोटी ज़रूरतों के लिए बड़े बाज़ार नहीं जाना पड़ता लगभग सभी कुछ मिल जाता है यहाँ...। " माँ ने कहा।

"सड़क चौड़ी होने से जाम की परेशानी भी कम हो गई होगी, पहले तो सड़क पार करने में ही काफी समय लग जाता था, ये चौड़ीकरण अभियान तो काफी फायदेमंद रहा इस इलाके के लिए।"

"हाँ! इस चौड़ीकरण अभियान ने तो लोगों को काफी मालदार बना दिया है, जिनकी भी

ज़मीन इस अभियान के अन्तर्गत आई, बदले में सरकार ने अच्छा मुआवजा दिया मालिक को।"

"अच्छा..., माँ! इस तिराहे के पास एक अधपगली सी बूढ़ी अम्मा की झोपड़ी थी, आते-जाते लोगों से अक्सर पैसे मांगती थी वो, हैं क्या अभी?

"हाँ ! हैं अभी, वो ज़मीन भी आई चौड़ीकरण में।

"अरे! बेचारी ...कहाँ रहती हैं अब, कुछ मिला उन्हें?"उर्वी ने प्रश्न किया।

" बेचारी नहीं हैं अब वो, ऐश हो गए हैं उनके। अब भीख नहीं माँगती वो बल्कि...,

अपने भाई के साथ रहती हैं।"

"पर... तब तो लोग कहते थे कि बेसहारा हैं वो," उर्वी ने आश्चर्य से पूछा।

" ग़रीबी बेसहारा होती है बेटा, अमीर लोगों के कई रिश्तेदार होते हैं ..." माँ ने हँसते हुए कहा ।


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