अधूरा स्त्रीत्व
अधूरा स्त्रीत्व


"ये क्या गीता ? जब भी मैं तुम्हारे नजदीक आने की कोशिश करता हूँ तुम हमेशा कोई न कोई बहाना बना देती हो । पति हूँ तुम्हारा अब मैं, मुझे नहीं लगता कि मैं कुछ गलत कर रहा हूँ ....।"
" आई एम सॉरी नरेश, जानती हूँ सब, पर ...।"
"पर क्या गीता ? पति-पत्नी के मध्य ये प्रेम को व्यक्त करने का तरीका है... और दुनिया के हर स्त्री और पुरुष जो पति-पत्नी हैं उनके मध्य यह प्रक्रिया एक सामान्य बात है । तुम तो बायोलॉजी की व्याख्याता हो, फिर भी...।"
"जानती हूँ मैं यह सब पर ... , मैं अपूर्ण हूँ इस बात की ग्लानि है मुझे, इसलिए अक्सर सोचती हूँ कहीं दया भाव से तो शादी नहीं की आपने...।"
"अच्छा! तो ये बात है...,तभी मैं कहूँ शादी से पहले तो सब ठीक ही था अचानक तुम्हें क्या हो गया? पर गीता! मुझे तो तुम कहीं से भी अपूर्ण नहीं लगती.... नाक, कान, आँख हाथ, पैर... सभी कुछ तो बराबर है, हाँ थोड़ी हाइट कम है चलेगा," हँसते हुए नरेश ने तकिया उसकी तरफ सरकाते हुए कहा...।"
"तुम जानते हो नरेश... मेरा एक स्तन..., कैंसर बीमारी ने तो मेरा स्त्रीत्व अधूरा कर दिया है।"
" क्या फालतू बातें कर रही हो तुम, कहा ना कि तुम्हारी हाइट को छोड़ सब सही है... तुममें। तीन-तीन घंटा मेकअप में लगाने वाली स्त्री कहाँ से अधूरी ? एक बात और मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ और महान भी नहीं हूँ ... ,"
कहकर नरेश ने गीता का हाथ अपने हाथ में ले लिया....।