बेरोजगार
बेरोजगार
"अंशु अब हमें मम्मी-पापा को बता देना चाहिए एक की तो सरकारी नौकरी हो गई न।”
"क्या बताऊंगी नौकरी तुम्हारी नहीं मेरी लगी है, कोई मां-बाप अपनी लड़की का हाथ बेरोजगार लड़के के हाथ में तो नहीं देगा। वैसे भी पापा ने एक लड़का देखा है सिविल कोर्ट में जज लगा है। मैं भी मिल चुकी हूं, बहुत ही क्यूट और सिंसियर है। तुम्हारा क्या भरोसा कब तक लगोगे नौकरी पर।”
"मतलब इतने सालों से जो हम साथ-साथ हैं कुछ नहीं। यही नौकरी मेरी लगी होती और मैं पलट जाता तो।”
"देखो प्रभात चीजों को मिक्स मत करो। वो बात अलग होती, देखो अगले महीने मेरी शादी है परसों मैं घर जा रही हूं पैकिंग में मेरी मदद कर दो प्लीज।"
"अंशु तुम जा रही हो तो मैं बेरोजगार इतने बड़े कमरे का किराया कैसे भरूंगा।"
"नखरे मत करो पहले भी तो तुम ही भरते थे और, वो ब्यूटी क्रीम का आर्डर किया है ऑनलाइन, आएगा तो पेमेंट करके छुड़वा लेना और मेरे घर कुरियर कर देना प्लीज।"
प्रभात चढ़ रहा है छज्जे पर छोटे-छोटे डिब्बे उतारने, जिसमें वो कभी सरप्राइज लाया था, अंशु के लिए, तभी अंशु की आवाज गूंजी "अरे वो क्या कर रहे हो इडियट ये कबाड़ थोड़े न उठा के ले जाऊंगी घर पर।"
प्रभात वहीं धम्म से बैठ गया, वो भी शायद बेरोजगार होकर कबाड़ ही बन गया था अंशु के लिए।