बेरंग दुनिया
बेरंग दुनिया
संदली बहुत ही सुलझी हुई लड़की थी परन्तु उस घटना ने सब कुछ बदल कर रख दिया।
अब कुछ भी तो नहीं था पहले जैसा। सब रंग उसके सामने फीके थे, बेरंग सी हो गई थी दुनिया।
संदली जिस मोहल्ले में रहती थी, वहीं उसके पड़ोस में जानकी और उसका बेटा मुकेश रहता था।
मुकेश संदली को रोज आतेजाते देखा करता था।
उसका उदास चेहरा मुकेश को मजबूर कर रहा था की उससे इसका कारण जान सके, किन्तु हिम्मत नहीं जुटा पाता था।
इसलिए वह अपनी माँ को उससे बात करने के लिए भेज देता था।
उस दिन जब जानकी घर लौटी तो मुकेश ने पूछा माँ उस लड़की को क्या हुआ है वह इतना चुपचाप क्यों रहती है।
जानकी मुंह बना कर रसोई घर में चली जाती है। मुकेश का मन शांत नहीं लग रहा था, शायद वह मन ही मन संदली से प्यार करने लगा था।
मुकेश ने आज निर्णय ले ही लिया की आज मैं संदली से उसके बारे में जान कर रहूँगा।
मुकेश सुबह से ही संदली के घर के बाहर खड़ा था। संदली ने अपनी खिड़की से मुकेश को देखा, मुकेश संदली को ही टकटकी लगा कर देख रहा था।
संदली घर के बाहर आती है। मुकेश कहता हैजी नमस्ते संदली नमस्ते।
मैं जानकी जी का बेटा। अच्छा आप जानकी आंटी के बेटे हो। जी हाँ
मुकेश अब रोज सुबह सुबह संदली के घर के आगे खड़ा रहता था। संदली और मुकेश दोनों को आपस में प्यार हो जाता है।
एक दिन मुकेश संदली को अनाथ आश्रम जाते हुए देखता है।
उसे समझ नहीं आता वह वहां क्यों जाती है ?
(अगला दिन ) :मुकेश संदली का पीछा करता है देखता है वह कहीं जा रही थी, संदली के कदम जहाँ जहाँ बढ़ रहे थे मुकेश भी उसके पीछे था।
तभी मुकेश देखता है संदली अनाथ आश्रम में चली गई। मुकेश भी वहीं पहुँच जाता है।
मुकेश देखता है तो हक्का बक्का रह जाता है। यह क्या, संदली के गोद में एक छोटा सा बच्चा।
मुकेश के मन में कई सवाल उमड़गुमड रहे थे। वह समझ नहीं पा रहा था यह सब क्या है ?
सोचा संदली से ही पूछ लेता हूँ, परन्तु हिम्मत नहीं हो रही थी। मुकेश दुबिधा में पड़ गया, मुकेश वापस घर आ जाता है।
जानकी (मुकेश की माँ ) मुकेश से कहती है कहाँ गया था, मुँह हाथ धो लो। मैं खाना लगाती हूँ।
मुकेश:जी माँ अभी आया (धीमी सी आवाज में )
जानकी (मन में ) आज इसे क्या हो गया है ?
मुकेश अभी भी संदली के बारे में ही सोच रहा था।
जानकी (खाना परोसते हुए) मुकेश आज कहाँ गए थे तुम ? बहुत समय से घर पर नहीं थे।
मुकेश :माँ यही पड़ोस में अपने दोस्तों के साथ था।
और कुछ चाहिए नहीं माँ बस हो गया, क्या हुआ बेटा आज इतना कम खाना खाया तुमने।
कुछ नहीं माँ पेट भर गया मेरा। मैं अपने कमरे में सोने जा रहा हूँ ठीक है बेटा जाओ सो जाओ।
मुकेश रात भर सो नहीं पाया। बस संदली के बारे में सोचता रहा।
अगले दिन मुकेश ने संदली से पूछ ही लिया संदली तुम्हारी गोद में वो बच्चा किसका था।
संदली मेरा मुकेश के कदमों से जैसे जमीन ही खिसक गई हो।
मुकेश वहीं जमीन पर गिर जाता है। उसे समझ नहीं आ रहा था यह सब क्या है ?
संदली अपनी पूरी कहानी मुकेश को बताती है। जिसको सुनकर रूहं भी काँप जाए
संदली का बाप बहुत ही कमीना आदमी था रोज शराब पी कर घर आता, लड़ता झगड़ता और फिर
रोज रात को मेरे साथ संदली रोते हुए
मुकेश कहता है आगे कुछ मत कहो, मैं सब समझ गया। और संदली को गले लगा लेता है।
संदली रोते हुए ये बच्चा उसी पाप की निशानी है
मुकेश अब कुछ मत कहो उसके आँखों से आँसुओ को पोछते हुए।
मैं तुम्हे कभी अकेला नहीं छोडूंगा, संदली का हाथ प्यार से चूमता है।
हमारा समाज का ये कैसा घिनौना सच है।