बेचारी सबीना
बेचारी सबीना
रात के तकरीबन दस बजे होंगे। सबीना अपने दोनो बच्चों को लिए खाट पर भूखे पेट करवटें बदल रही थी। तभी जोर - जोर से कोई दरवाज़ा पीटने लगा, लड़खड़ाती आवाज़ में ' कित्ते मर गई... खोल ना रही... भौकी, कौन से खसम के संगे कालो मुंह कर रही है। '
बेचारी डरी - सहमी सबीना समझ गई, आज फिर आया है जुआ हार के और शराब में धुत्त होके। सबीना ने कांपते हाथों से किवाड़ की सांकल खोल दी। सांकल खुलते ही भूखे भेड़िया की तरह वो टूट पड़ा और तब तक पीटता रहा जब तक कि वो स्वयं बेहोश न हो गया।
कोने में पड़ी - पड़ी सबीना सिसक - सिसक कर अपनी फूटी किस्मत पर रो रही थी ' मरघटा बारे, तेरी छाती पै कंड़ा जरैं, तेरी कढ़ी खाऊं... तू आजु ही मरि जावै तोऊ मैं तो अपने बच्चन कूं पाल लूं। पागल हती मैं जो तेरी चिकनी - चुपड़ी बातन में आके कोर्ट मेरिज करिलई...। '
सबीना अपने पति से मार खाकर बुदबुदाती रही। सबीना ने भी क्या किस्मत पाई है। ठीक तीन साल पहले वो कॉलेज की छात्रा थी। मंगल के प्यार - व्यार के चक्कर में फंसकर अपने माँ - बाप, भाई - बहिन की मर्जी के खिलाफ उसने मंगल से कोर्ट मेरिज कर ली।
आज सबीना इतनी बेबस है कि वो अपने मायके भी नहीं जा सकती, क्योंकि तीन साल पहले ही वो सारे रिश्ते - नाते तोड़ चुकी थी, अब बस मंगल के अत्याचार सहने के सिवाय उसके पास कोई दूसरा चारा भी नहीं... बेचारी बेबस सबीना !