बदनामी और तलाक
बदनामी और तलाक


राधा बस रोये चली जा रही थी, उसके आँसू रूकने का नाम नही ले रहे थे। वो अपनी माँ से बार-बार एक ही बात कह रही थी, मुझे बदनाम कर उसे क्या मिला। सिर्फ उसे डायवोर्स- तलाक आसानी से मिल जाये, उसने मेरा नाम गैर मर्दों के साथ जोड़ दिया। मेरी जिंदगी नरक बना दी। मेरे पति होते हुए, खुद मुझ पर ये इल्जाम लगा रहे हैं। ये वही इंसान है जो कल तक मेरे लिए सब कुछ करने को तैयार थे, दिन को रात कहने को तैयार थे। आज अपने अहंकार में मुझे नीचा दिखाने के लिये मुझे तलाक दे रहे हैं। मेरी ग़लती क्या, अपने और अपनी बेटी के लिए आवाज़ उठाना।
अब लोग भी मुझे अजीब नज़रों से देखते हैं, गंदी बातें करते हैं। रास्ते पर चलना मुश्किल हो गया है। सहेलियों ने भी मुँह फेर लिया, बस कुछ ही मुझे समझती हैं और मेरे साथ है। माँ, आपका भाई-बहन का साथ और बेटी का प्यार - साथ मेरा हौसला बढ़ाता है।
मैने भी फैसला कर लिया है, मैं लोगो के तानो से, बदनामी से डरूँगी ना ही झूकूँगी ना रूकूँगी। अपने आत्मसम्मान और हक के लिए बिना थके लडूँगी लोगो से, उस इंसान से जिसमे इंसानियत ही नहीं रही ।
और फिर शुरू हुए कोर्ट कचहरी के धक्के। पैसो की और समय दोनो की बरवादी पर कोई दूसरा रास्ता नही दिख रहा था। सबसे बडा़ दुख झटका उस वक्त लगता था राधा को जब उसका पति कोर्ट मे सामने खडे़ होकर गलत गंदी बात बोलता था। वो बहुत मायूस हो जाती थी कभी-कभी सब कुछ छोड़कर कहीं दूर भाग जाना चाहती थी।पर उसका अन्तर्मन उसे झकझोर देता ,तुम ऐसे पीछे नही हट सकती।तुम चुप नही रह सकती और राधा फिर हिम्मत कर खडी़ हो जाती अपने अपनी बेटी के हक के लिये।सोचती मैं मजबूत बनूँगी तभी बेटी को मजबूत बना पाऊँगी।
जैसे-जैसे कोर्ट मे केस case आगे बढ़ रहा था राधा का आत्मविश्वास भी बढ़ता जा रहा था।राथा बेझिझक अपना काम करने लगी थी।उसे महसूस होने लगा था लोगो के सामने एक अच्छी शादीशुदा जिंदगी का दिखावा करना बहुत गलत था।अगर उसने कुछ लोगो को भी सही बात बताई होती अपनी परेशानियाँ बताई होती तो आज ये दिन ना देखना पड़ता। लोग उसकी मुश्किलो को समझते, खैर जो होना था हो गया सोचकर राधा ने ठंडी सांस ली।अब वो खुलकर जीयेगी,अपनी जिंदगी।
उथर राथा के पति को भी एहसास हो गया था, उसने राथा पर झूठे इजाम लगा मुसीबत मोल ले ली है।उसने तो सोचा था ,राधा जैसी समाज मे एक अच्छी जिंदगी जीने का दिखावा करने वाली औरत मुँह बंद कर चुपचाप घर मे बैठ जायेगी।पर हुआ सब कुछ उल्टा राधा ने तो घरेलू हिंसा की सच्चाई सब के सामने लाकर रख दी थी।कुछ सबूत भी जुटा लिये थे राधा ने।वो अब अपनी बेटी के साथ जीना सीख ग ई थी।
उसके घरवाले भी पूरा साथ देते थे उसका।
तभी एक दिन दरवाजे की घंटी बजी, राधा ने भी सोचा कौन हो सकता है इस वक्त।जब देखा तो, वो अचंभित रह गई दरवाजे पर उसका पति खडा़ था। उसने राधा से पूछा अंदर आ जाऊँ? राधा ने कुछ सोच हाँ बोल, उसे अंदर आने दिया। और पूछा अब क्यों आये हो?वो बोला मुझे माफ़ कर दो ,मुझसे गलती हो गई और घर वापिस चलो। मै तुहारे और अपनी बेटी के बिना नही रह सकता।
अचानक आये इस बदलाव से ,राधा सोच मे पड़ गई थी, वो कुछ समझ नही पा रही थी।पर उसका पति केस वापिस ले, साथ मे सुखी जीवन बिताने की बात कर रहा था।उसने राधा से कहा चाहो तो थोडा़ सोचकर जबाव देना।
पर राधा का जबाव तो तैयार था, उसने साथ जाने से मना कर दिया।और बेटी ने भी बोल दिया मैं मम्मी के साथ ही रहूँगी।राधा का पति ये बोलकर तुम ठीक नही कर रही वहाँ से चला गया।पूरी रात वो सोचती रही उसने गलत निर्णय तो नही लिया, क्या मुझे अपनी बेटी के अच्छे भविष्य के लिए साथ चले जाना था।बेटी को माँ पाफा दोनो मिल जाते।शायद सच मे उनकी सोच बदल गई हो।सोचते सोचते सुबह हो
गई। सब घरवाले भी सोच मे थे क्या किया जाये। इंसान बदल भी तो सकता है! पर सबने समझदारी दिखा कुछ दिन इंतजार करने का सोचा, तभी केस की तारीख भी आ ग।ई।
राधा ने सोचा था आज के पति के व्यवहार से पक्का निर्णय ले लेगी।और जो हुआ सोच से बहार था , पति का वही रूप पाया।राधा आज भी अपने अपनी बेटी के लिये लड़ रही है। बस एक बात सोचती है। उस दिन उसका पति बदला रूप ले घर क्यों आया था! क्या साथ जाना सही था ! या अपने हक अपने आत्म सम्मान के लिये लड़ना!!