बदलती बयार
बदलती बयार
मई मुहल्ला-पड़ोस की 1
अमिता जी छोटे से कस्बे से नयी-नयी अपने बेटे के पास रहने के लिए आईं थीं। उनके पति अपना गृह नगर छोड़ने के पक्ष में नहीं थे अमिता जी के कहने से जाने को तैयार हो गए थे। पहली बार उन्होंने 15 दिन की प्लानिंग की , बहू ने उनका बहुत ही ध्यान रखा। उनको भी अच्छा लगा और फिर वह वापस घर आ गई थीं।
धीरे-धीरे वह महीने दो महीने रुकने लगी पर यह क्या जो काम अपने हाथ पकड़ लेती वह काम उन्हीं के ऊपर आ जाता उस पर भी आये दिन काम वाली मेड की छुट्टी उनको डबल काम हो जाता।
बेचारी बिना कहे कुछ लगातार काम करती रहतीं। बहू वर्किंग थी ,बच्चों को भी बड़े प्यार से संभालती ,पर उन्होंने देखा बच्चों को वे डांट भी नहीं सकतीं अनुशासन में रखने का अधिकार नहीं है।
कुछ कहने पर यही था कि सब कुछ को नौकर रखे हैं फिर भी आप देख भी नहीं सकती।वही सुपरविजन का काम कठिन था। कोई को कुछ कह नहीं सकते छोड़कर भाग जायेंगे मतलब आप खुद करिये। बेचारी कहीं निकल ही न पातीं उनके मन के शौक मन में ही रह जाते।
वैसे तो वह नीचे सोसाइटी की महिलाओं के पास नहीं बैठती थीं क्योंकि उनको अपने पोती और पोते की बराबर चिंता रहती। कभी उनको पढ़ाने की तो कभी उनके गिरने-पड़ने की। टीवी मोबाइल के लिए बच्चों को एक समय निश्चित कर दिया था इस से वे कभी निश्चिंत न रह पातीं। एक दिन सबके बुलाने पर वे भी नीचे आकर बैठ गयीं। उस दिन बहू की छुट्टी होने से वे घर में थी। वे सोसाइटी की एक सहेली के साथ मंदिर चलीं गयीं। उनकी 4 साल की पोती पार्क में खेल रही थी।
अमिता जी ने कहा ,"आपकी पोती पार्क में है बता दीजिए "।
वे बोली ,"मंदिर नहीं जाने देगी अभी तो आ जाते हैं।
मंदिर में ही उनकी बहू का फोन आया ,"मम्मी जी आप कहां हैं" ??
हम दोनों मंदिर में थे पर वे बोलीं मैं तो सोसाइटी में हूं ,कुछ काम था "?
"न न काम कुछ न था सिया क्या कर रही ,बात कराइये।
" बेटा वह तो पार्क में झूला झूल रही है बुलाने पर भी नहीं आ रही "।
"ठीक है आप झूलने दीजिए"।
मैं उनका मुंह देखती रह गयी
वे बोलीं," आप ऐसे क्या देख रहीं ??
मैंने कहा अरे आपने झूंठ क्यों कहा आप तो मंदिर में हैं। बिटिया को अकेले छोड़कर आईं।
बच्चे क्या सीखेंगे ?
बोली ,"क्या बहू खुद नहीं अकेले भेजती तो जब वह खुद ऐसा करती है तब ?? हम उन्हीं से तो सीख रहे हैं। रोज लेट आना जवाब काम आ पड़ा।
हम तो घर में ये सब करते पागल हो जायेंगे। हमें भी यदि सुखी रहना है तो थोड़ा झूठ बोलना सीखना होगा। बहुत काम कर लिये।
उनकी बहू कभी कहती ,"मम्मी जी अचार डाल दीजिए ,लड्डू बना दीजिए। झूठ बोल देती ,"मुझे तो बनाना ही नहीं आता" मैने कभी बनाया ही नहीं।
ऐसा क्यों बोलीं मैं परेशान हो कहती ,"उनका जवाब होता ,देखिये बहन जी आजकल की लड़कियां जब जवान होकर कह देती है कि हम थक रहे हमसे नहीं होता या हमें करना नहीं भाता तो हम उम्रदराज कब तक अपने को संकोचवश खटाते रहेंगे ??
आजकल आपके बनाये सामान की किसी को कोई कद्र नहीं बस मात्र 100-200 का उसकी इन्हें कीमत नहीं। पिज्जा जब 400-500 का मंगा सकते हैं तब कद्र कैसे होगी ??
जिसने खुद बनाया हो और अपनी मेहनत लगती है तब कीमत पता लगती है आज पैसा सबके पास है। आपके बनाये सामान की कीमत 200-300।
पैसे सबके पास हैं और बाजार में सामान है।
आज उन्होंने अपनी सोसाइटी की सखियों से एक नया गुरूमंत्र सीखा बदलती बयार में खुद को बदलने का।
बुजुर्गों ने सच ही कहा है नदी के बहाव से बहने में ही भलाई है वरना तकलीफ छोड़कर कुछ नहीं। अमिता जी ऐसा ही कुछ गुनते हुए घर जा रही थीं। अगर बच्चे उनके साथ रहें तो उनका मन बहलाते हैं और अगर बहू-बेटा रहें तो उन्हें परेशान करते हैं। हवा की नब्ज टटोल कर चलिये पुरवाई है या पछुआ।