बधाई हो साहब

बधाई हो साहब

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मैंं अपने रासन का सामान लेने के लिए बाजार गया था। बाजार मेरे घर से ज्यादा दूर नहीं है पास में ही है मैंने अपनी साईकल निकाली और झोला लटकाए निकल गया। कुछ ही मिनटों में मैंं दुकान पहुंच गया। रविवार का दिन होने के कारण आज काफी भीड़ थी। इसलिए मुझे इंतेज़ार करना पड़ा था। मैंने खाता दुकानदार को दे दिया और मैंं दुकान से सटी कुर्सी पे जा कर बैठ गया। थोड़ा नज़र घुमा कर मैंं इधर उधर देखने लगा अचानक मेरी नज़र एक जगह रुक गयी मुझे दुकान के ठीक विपरीत दिशा में यानी सड़क के दूसरे तरफ एक नया क्लिनिक नज़र आया। 

"अरे ये कब खुला" मैंं अपनेआप में बुदबुदाया। 

मैंने थोड़ा और अच्छे से देखा। 

बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था Dr. Kumar's Clinic (MBBS) DNB , Gernal Physician।

" चलो अच्छा है घर के नजदीक ही है " मैंंने मन मे कहा।

बाहर से काफी अच्छा सजाया गया था। गेंदे के फूल मालाए ऊपर से नीचे दीवारों पर सजी हुई थी , सामने कुछ सुंदर मन मोहक गमले लगे थे। एक दम साफ सुतरा चमक रहा था क्लीनिक। शायद आज ही उद्धघाटन हुआ था। 

फिर मैंं अपनी मोबाइल में लग गया। कुछ देर बाद राजू भाई(किराने का दुकानदार) ने मेरे खाते को खोल पढ़ते हुए समान निकालना शुरू किया। 

" चल भाई मिला ले सारे समान ठीक ठीक है कि नहीं " राजू भाई ने मुझे आवाज़ लगाया।

हम दोनों सामान मिलाने में लगे। उसी बीच बगल से एक शख्स आया हाथ मे प्रशाद का पैकेट लिए। 

उसने राजू भाई को एक पैकेट दिया और मेरी तरफ भी एक पैकेट बढ़ा दिया। मैंने थोड़ा हैरत से देखा। 

"अरे लीजिये.. शरमाये नहीं प्रशाद है।

आज ही उद्धघाटन हुआ है क्लिनिक का। हमारे डॉक्टर साहब ने कहा अगल बगल आमने सामने जो है सबको बांटो। " उस शख्स ने मुश्कुराते हुए कहा। 

"जी धन्यवाद। बधाई। "  मैंंने पैकेट को खुशी खुशी लेते हुए कहा। "चलो अच्छा है बिना पैसे खर्चे कुछ खाने को मिल गया " मैंं मन ही मन अपने आप से बोला।

मैंंने सारे सामान मिला लिए थे और अब मैंं सामान लेकर जाने को था कि मेरा ध्यान दूसरी तरफ फिर चला गया जब एक आदमी कार से उतरते ही जोर जोर से उचे स्वर में बधाई देता हुआ उस नए क्लीनिक के मालिक यानी डॉक्टर से गले मिला। 

" बधाई हो.. बधाई हो डॉक्टर साहब। 

नए क्लीनिक की ढेर सारी शुभकामनाएं। तेरे क्लिकनिक में मरीज़ की भीड़ लगी रहे और सालो साल तेरे पास मरीज़ आते रहे कभी खाली न रहे। खूब चले तेरा बिज़नेस। ये एक डॉक्टर की अपने डॉक्टर दोस्त को शुभकामनाएं है।" उस शख्स ने अपने सीने में हाथ रखते हुए कहा। और गले लग गए दोनों एक दूसरे के।

अरे बहुत बहुत धन्यवाद मेरे दोस्त। दोनों दोस्त गले लग आपस मे खुसी बांट रहे थे।

" देख लो आज कल के डॉक्टर को। मरीज़ों की लाइन लगी रहे और बिज़नेस चलता रहे ऐसी बधाई दे रहे है। आज डॉक्टर डॉक्टर नहीं एक व्यापारी बन गया है और डॉक्टरी एक व्यापार। " राजू भाई ने उनकी तरफ देखते हुए लाचारी भरी अंदाज़ में कहा। 

हम्म्म्म।

मैंंने बस खामोशी से उनकी(डॉक्टर्स) तरफ़ देखा फिर सामानों से भरे झोले को उठाकर साइकिल पर लदा और चल दिया।

मुझे भी राजू भाई की बात एक तरह से ठीक ही लगी। 

और जो मैंंने देखा और सुना वो भी कुछ यही जाहिर कर रहा था कि अब सब कुछ बिज़नेस ही तो बन गया है। खासकर शिक्षा। लाखो रुपये खर्च होते है फीस के रूप में इन बड़ी बड़ी यूनिवर्सिटी में डिग्री हासिल करने के लिए। शायद इसीलिए डॉक्टर , वकील या बाकी सब आज अपने काम को बिज़नेस और पैसा कमाने के लिए ही इस्तेमाल कर रहे है। शायद ही कोई सेवा भाव को ध्यान में रखता है आजकल। सब व्यापार बन चुका है और सब व्यापारी।

मेरे हाथ मे अब भी उस नए क्लिनिक के उद्धघाटन का प्रशाद रूपी पैकेट था पर अब मुझे इसे खाने की इच्छा नहीं हो रही थी। मैंंने उस पैकेट को घर लौटते वक्त रास्ते मे एक भिखारी को दे दिया और घर आ गया।


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