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Satyam Prakash

Abstract

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Satyam Prakash

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बड़े होकर क्या बनोगे - व्यस्क की कलम से

बड़े होकर क्या बनोगे - व्यस्क की कलम से

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ये वक़्त काफी मुश्किल जान पड़ता है।लगता है जैसे सब कुछ बदल जायेगा।मैं नहीं पर मेरे आसपास का सब कुछ।आप जो मुझसे पूछोगे क्या हालचाल है, क्या कर रहे हो आजकल, तो जो मेरा जवाब होगा बदल जायेगा।अगर कभी पूछ लिया क्या करना चाहते हो तो मैं कोई शौक़ या सपना नहीं बताऊंगा क्यूंकि सपने तो बच्चे देखते हैं।सपनों की भी कोई सीमा, कोई उम्र होती है बरखुरदार।


हम तो हुए अब कुशल, अनुभवी, जिम्मेदार नागरिक।हमें पता है आगे क्या करना है, बल्कि उससे बेहतर, कैसे संभालना है।समंदर के बारे में इतनी पढ़ाई की, स्विमिंग पूल में ट्रेनिंग भी ली, पूरा शहर घूमने के बाद जब समुद्र तट पर पहुंचे, तो पता नहीं दोस्त कहाँ गायब हो गयें।मुझे बताया गया पढ़ाई ख़त्म, सफर शुरू, आगे का रास्ता समंदर से तय करना होगा।पर स्विमिंग पूल की ट्रेनिंग से कोई समंदर कैसे पार करे।और तो और दूसरा छोड़ किधर है |


अब तक तो मेरे अरमान बहोत थे, एक बेहतर कल के लिए सुझाव बहुत थे, पर ये ही कल झूठे साबित होंगे।मैं कुछ बोलूंगा फिर रुक जाऊंगा, आगे बढूंगा और ठिठक जाऊंगा।आगे बस सही होना काफी नहीं होगा, परिवर्तनशील होना काफी नहीं होगा, अपनी बातें रख पाना भी काफी नहीं होगा।मुझे डर है कि आगे मैं किसी के मुस्कराहट पर ठहर नहीं पाउँगा, मैं आंसुओं को नज़रअंदाज करना सीख जाऊंगा।अगर तुम मुझसे मिले, ये ध्यान रखूँगा कि तुम मेरे लिए किस श्रेणी में हो।तुम्हे वर्गीकृत, श्रेणीबद्ध करके तुम्हारी बातें सुन नहीं पाउँगा, और तुम भी किसी विचारधारा से पृथक बातें बता नहीं पाओगे |


इतना घना कोहरा ? इतना अँधेरा ? इतना अकेलापन, मुझे इसकी आदत नहीं है।पर हाँ ज़िन्दगी से लगाव है।इसीलिए ही तो मैं इतने घने कोहरे में भी, लालटेन जला कर एक साथी कि तलाश करूँगा।जो मेरे बातों की लड़खड़ाहट को सुन पाए, और कभी बता भी दे।ताकि लिखते हुए मेरे कलम की घबराहट से हम कई दास्ताँ बुन लें।मुझे यकीन है मैं उसे ढूंढ पाउँगा।धीरे धीरे मुझे ज़िन्दगी का अहसास होगा और मैं इससे भी बेहतर लिख पाउँगा।


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