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Harshada Pimpale

Classics Inspirational Children

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Harshada Pimpale

Classics Inspirational Children

बचपन कीं बारिश और काग़ज कीं नाव

बचपन कीं बारिश और काग़ज कीं नाव

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"। ओठोंपर मुस्कान थींकंधोंपर बस्ता था। सुकून के मामले मे वोह जमाना सस्ता था। "

  पता नहीं किसीने यह खुबसुरत सच कहाँ हैं। लेकिन बहोत हीं गहरा हैं यह सच। बचपन का हर एक लम्हा अभ भीं मुझे याद हैं। बेशक आपको भीं याद होगा। दोस्तो बचपन का हर एक लम्हा यादगार ही होगा। पर बचपन का एक ऐसा लम्हा जो सबके बहोत हीं करीब हैं। और वोह हैं। "बचपन कीं बारिश और काग़ज कीं नाव। " सुनकर अच्छा लगा होगा। क्यूँ अच्छा नहीं लगेगा यारो। वोह बचपन कीं बारिश और काग़ज कीं नाव। कितना यादगार लम्हा हैं। उसके बारे मे कितना भीं कुछ कहूँ। कम हीं हैं।

स्कूल की छुट्टीयाँ खतम हुँई थीं। जून का महिना था। आसमाँ काला निला नजऱ आ रहा था। बादल भीं गरजने लगे थें। थंडी हवा महकने लगी थीं। सारे पेड़ जोरसे हिल रहे थें। पंछीजानवरलोग सब उनके घर जा रहें थें। सूरज भीं पता नहीं कहा छुपा था। और अचानक से गरजते हुँए बादल जोरसे बरसने लगे। सभी सड़क गिले हुँए थें। सभी तरह बारिश का पाणी फहला था। उसे देखकर ऐसा लगता थाजैसे कोई नदीयाँसमंदर सड़कपर हमे मिलने आए थे। वोह पाणी समंदरमें लहरानेवाली नाव का याद दिलाता था। और उसी यादोंमे खोकर हम सभीं दोस्त। काग़ज कीं नाव बनाने मे दंग हो जाते थें। कापियोंकें आँधे पन्ने तो हमने नाव बनाने के लिए हीं फाड़ दिए थें। काग़ज कीं नाव बनाने मे कुछ अलग हीं मजा था। अलग अलग तरह के नाव हमने उन काग़जोंसे बनायी थीं। जैसे "राजा-राणी की होडी"। "सिधी होडी"। "बम्ब होडी"। ये सारी नाव बनाकर हम उसे उस पाणी में छोड देते थें। वो नाव तेरती रहती थीं।

और हमारी खुशीयाँ उसे देखकर बढ़ती रहती थीं। क्या बताऊँ वोह दिन। मजाही कुछ और था। हमारी मासुमियत कीं निशाणी। तो वो बचपन कीं बारिश और वोह काग़ज कीं नाव। हीं तो थें।

बारिश में एक साथ भिगना। मस्ती करना। किचड़मे खेलना। पाणी उडाकर जोर जोर से हसनाँ। बिना वजह चिल्लाना। कितना मजा आता था यार। कितना भोला था वोह दिल। भोला था पर खुशीयोंसे भरा हुँआ था। घर जाने का मन तो कभीं होता हीं नहीं था। और घर जाकर माँ कीं दाट का डर भीं रहता था। क्यूँकीं जब जब हम ऐसे गिले-गन्धे होकर घर जाते थें तब माँ बहोत जोरसे दाटती थी। बस् कभीं कभीं बच्चे तोह हैं। बच्चोंकाही प्यारासा पागलपन हैं। यही सोचकर माँ मुस्कुराकर हमे छोड देती थीं। बहोत नादान था वोह बचपना। अब जो रह गया है सिर्फ एक सपना। अब भीं याद आती हैं उन सुनहरे लम्होंकी। । उस बारिश कीं। उस काग़ज के नाव कीं। एक वोह बचपना थाजहा बारिश का इन्तजार सिर्फ किचड़ मे दौडने के लिए। गिरने के लिए। और उस काग़जके नाव के लिए होता था। लेकिन आज उस बारिश का इन्तजार आँसू बहने के लिए। होता हैं। कितना अजीब हैं ना। बचपना अभी भीं वही हैं। बस् रास्ते बदल गए हैं। जरूरते बडी होगयी हैं। हमारी। ।

बस् इस बारिशसे आज एकही ख्वाईश हैं। वो बचपन की बारिश और काग़ज कीं नाव फिरसे लौटादे यार। फिरसे लौटादे।


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