बचपन आफटर पच्चपन
बचपन आफटर पच्चपन
रूपेश के पापा लगभग पिच्छतर उम्र होगी। खाने के बहुत शौकीन चाहे तबियत खराब हो खाना बढ़िया ही खाते वो भी चटपटा। कम तेल घी मिर्च का खाना उनके हिसाब से मरीज़ खाया करते। नमस्ते कहने वाले को एक घंटा उनके किस्से कहानी सुनने की फ़ीस अदा करनी पड़ती। रूपेश और रीता बड़ी मुश्किल से बहाने से मेहमान को बुलाते। कोई ना मिलकर जाये और उन्हे पता चल जाये तो उसको ये ग़लती की अच्छे से याद दिला देते ताकी अगली बार नहीं करे। कहते अरे भाई तुम बिना मिले चले गये हम से बड़ों का आशीर्वाद ही मिलता तुम को। मेरा आशीर्वाद सबको लगता है खाली नहीं जाता हमारे जमाने में लोग कहते थे इस बात को। बस उनकी कोई भी बात उनके जमाने पर शुरू हो जाती, खत्म होती नहीं, मेहमान को बुला कर खत्म कराना पड़ता। पर रूपेश और रीता इस बात के आदि हो चुके थे।
एक दिन पापा आईये आपको अपने दोस्तों से एक मिनट के लिए मिला दूँ नहीं तो कहोगे घर आये लोगो से मिलाया नहीं। चलो भाई मिलते है अपने कुर्ते की सलवटे सही करते बोले। क्यो भई रूपेश बदल लूँ क्या कुर्ता ?
क्या पापा घर में ही मिलना है और एक मिनट के बाद आप आराम करना। ठीक कहते हो बेमन से रूपेश के पापा जी ने कहा। इच्छा तो कुछ और ही थी।
आज मीटिंग हैशहर के बाहर , बस अब एक साथ ही मीटिंग के लिए जाएंगे तो अभी एक दोस्त आना है तब तक चाय पीते है। रूपेश ने अपने पापा को ड्राइंग रूम में ले जाते हुए कहा अच्छा नमस्ते ! अंकल सबने नमस्ते की। और रुपेश के पापा वहां पर बैठ गए। और नाश्ते को देखते हुए बोले अरे भाई समोसे और कचौडी नहीं मंगाई क्या रुपेश ? थोड़ा सकपकाते हुए रूपेश बोला नहीं, पापा यह खांडवी, ढोकला, बेकड बिना चिकनाई की चीजें हैं।
ओ हो ! ये भी कोई तुम्हारे उम्र में खानी चाहिए। हमारे जमाने में होता था क्या दावत आज भी समोसे खा जी नहीं भरता। सब हँस दिये अंकल जी आपने असली घी शुद्ध थाल सब्जी खाई है। हम सब मिलावटी खाते है। और फिर रुपेश के पापा शुरू हो गए अपने किस्से कहानी सुनाने के लिए यहां सब को जाने के लिए देर हो रही थी पर उन्हें रोका रोकना मुश्किल हो रहा था।
रूपेश ने उनकी बात को खत्म होते ही कहा पापा आप अंदर जाकर बैठिये बस हम चलने वाले है। बस रोमेश रुपेश के पापा नाराज़ होकर अंदर कमरे में आकर लेट गए।
जब रुपेश मीटिंग से लौटा तब रूपेश के पापा को देखा कि गुस्से में लेटे थे खाना- खा कर ।क्या हुआ पापा ?आज तबीयत ठीक नहीं है क्या ?तबीयत ठीक है पर तुमने मुझे अपने दोस्तों के सामने कमरे में जाने को क्यों कहा ?पापा वहां बहुत जरुरी मीटिंग की बातें चल रही थी और आप लगे अपनी किस्से सुनाने ।उस टाइम को तो देख लेते क्योंकि हम बहुत जल्दी में थे।
बस किसी का इंतजार कर रहे थे ।नहीं यह कोई तरीका नहीं होता अआदर करने का बड़ों का ।अच्छा बाबा अब चाय पी लीजिए चलिए रीता ने चाय बना दी ।
रुपेश के पापा बचपने की तरह नाराज़ हो जाते। कुछ दिन के बाद कुछ मेहमान आए तो समोसे मंगाए गए और सब ने खाये भी रूपेश के पापाजी भी चटखारे से खाये। और पेट में दर्द होने लगा। हर्निया भी था और जल्दी पेट में हजम भी नहीं होता था खाना, उम्र का तकाजा था। बिना खाए मानते नहीं थे।
उसके बाद शाम को अचानक दूसरे मेहमान आ गए तभी समोसे, कचौड़ी मंगाई गई तब रीता ने उतनी ही मँगाई जितने मेहमान थे और तीन ज्यादा की सब तो खायेगे नहीं दोबारा पर मँगा ली। क्योंकि थोड़ी देर पहले ही सब लोगों ने समोसे कचौड़ी खाए थे इस बात पर रूपेश के पिताजी ने पूछा मेरी कचौड़ी समोसे कहां है ? रीता ने कहा पिताजी कमरे में कुछ मेहमान बैठे हैं बस उन्हीं के लिए मंगाए थे ।
अभी थोड़ी देर पहले ही तो हमने खाए हैं। मैंने अपने लिए भी नहीं मंगाए। तुनक कर बोले देखो बहू! तुम्हें पता है कि हमें इन चीजों का शौक है तो जितनी बार भी आएंगे उतनी बार हमारे लिए ज़रूर चाहिए। पिता जी आज आपकी तबियत भी ठीक नहीं लग रही थी। आज लग रहा था पेट में आपको कुछ परेशानी है, इसीलिए सोच कर मैंने नहीं मंगाए। आगे से ध्यान रखना रुपेश के पिताजी का मुंह बन चुका था गुस्से से छोटी-छोटी बातों पर नाराज़ हो जाया करते थे और खाना खाने का इतना शौक था उसके लिए तो वह बिल्कुल बर्दाश्त से बाहर था।
रात को रीता दूध देने के लिए पापा जी दूध ले लीजिए आज दूध कुछ कम लग रहा रूपश के पापा एक हाथ में गुड़, दूसरे हाथ में और एक गिलास लेते हुए बोले। गिलास तो भरा है बस जरा सी कमी रह गयी। पापा जी पर थोड़ा सा ही कम रह गया मेहमान ज्यादा आ गए थे। अगर मेहमानों का ऐसा हो तो पहले से ही दूध का इंतज़ाम कर लिया करो क्योंकि मुझे जितना दूध में लेता हूं उससे कम में भी नींद नहीं आती।
पापा जी आज पी लीजिए कल से ध्यान रखूंगी रीता को मनोज से शिकायत की देखो पापा जी ने एक दिन भी एडजस्ट नहीं किया और एकदम कह दिया मुझे। मनोज ने कहा तुम बात को ध्यान मत दिया करो। हां जी, कह दिया करो और आ जाया करो। वही तो करती हूं हां तो बस ठीक है बात को मत बढ़ाओ।अगले दिन रुपेश के पापा खाना खाने के लिए बैठे क्यों भाई! आज हरी धनिया की चटनी नहीं दिखाई दे रही। रीता ने रसोई आवाज़ लगाकर कहा पापा जी धनिया आया नहीं था इसलिए नहीं बनाई। और सलाद ?
वो भी सामान नहीं है। बहु हमने अपने खाने-पीने का हमेशा से बड़ा ध्यान रखा है। तुम भी यह ध्यान रखो इसीलिए यह आज बूढ़ी हड्डियाँ अब तक चल रही हैं। पहले ही इंतजाम कर लिया करो तीन-चार दिन समान चल जाता है।आगे से ध्यान रखना, घी ज्यादा डाल देना सब्जी और दाल में, कुछ तो ताकत चाहिए, सलाद नहीं है आज।
दूध भी कभी कम हो जाता है। कभी तो पुरानी कम दूध वाली बात को दोहराते हुए कहा। रीता ने रूपेश को नज़रों से देखा और रूपेश ने बात टालने का इशारा कर दिया। रुपेश के पापा अपनी सेहत को लेकर बहुत ज्यादा सावधान थे उन्हें कुछ भी कमी महसूस होती झट से बोल देते।
हर महीने अपना ख़र्चा लेते रूपेश से। चाहे सब रूपेश ही करता था। पर हर महीने रूपये चाहिए ही थे ।
बहु हमें मखाने भून कर देसी घी में देना चाय के साथ। कभी कभी बाजार की नमकीन खाकर जायका बदलने का मन करता है। और मखाने ताकत भी देते है।
एक दिन कुछ मेहमान आये ,डाइनिंग टेबल पर सब बैठे थे। रूपेश के पिता ने पूछा, रूपेश तू चावल क्यूँ नहीं खाता। पापा नुकसान देते है आप भी कम खाइये। देख रूपेश हमें मत बता, हमें तो बिना चावल तृप्ति नहीं होती। तुझे जो खाना है खा मरिजो जैसा खाना नाश्ता। उपमा ,स्पराउटस। हमें तो चटपटा पसंद है। तेरी माँ जब तक थी खूब चटपटा बनाती थी। बहु तो सेहत की कहानियाँ सुना कर कम तेल घी वाला दे देती है। मेहमान चले गये रीता नाराज़ हो गयी आज पापा जी ने मेहमान के सामने मुझे कहा मै ऐसा खाना देती हूँ क्या जो जबरदस्ती खाते है।
क्या सोचते होंगे वो मेहमान?? रीता रोए जा रही थी, रूपेश समझा रहा था। अरे वो तो कुछ भी बोल देते है।
तुम क्यूँ ध्यान देती हो। तुम अपने बेटे की ज़िद पूरी करती हो खाने की कभी वो कहना नहीं मानता। तब भी सबसे तो नहीं बताती की तरून ने ऐसा किया?अरे कैसी बात करते हो रुपेश वो बच्चा है।
बुर्जुग घर में रहे तो रौनक है बस उन्हे बच्चा समझो। बचपन आफटर पच्चपन। और हँसने लगा। रीता भी सब भूल कर हँसने लगी क्या कहा? सही तो कहा पच्चपन के बाद बुजुर्ग लोग बचपने में लौट आते है। जब भी कुछ बुरा लगे तो याद कर लेना ....दोनो एक साथ बोले....बचपन आफटर पच्चपन..
