बच गया बचपन
बच गया बचपन


आज दस सालों बाद स्मृति अपने गांव लौट रही थी,,, मन में अजीब सी हिलोरें उठ रही थीं। कुछ डर कुछ गुस्सा और थोड़ा सा उत्साह, सब मिल जुला ही तो चल रहा था मन में।
वो बचपन के दिन वो शैतानियां वो बचपन के खेल, सब याद करते हुए मानो चहरे पे मुस्कान बिखर गयी हो कि यकायक चहरे पे दर्द उभरने लगा,, वो वक़्त याद आने लगे, जब वो जीवन को पलट देने वाला खेल शुरु हुआ था, तब महज आठ साल की ही तो थी, मासूम सी बच्ची। कि तभी एक आवाज़ ने स्मृति का ध्यान तोड़ा, पर स्मृति की आँखों में आंसू और चहेरा गुस्से से लाल था,
उसका ये रूप देख बस कंडक्टर भी मानो कुछ डर सा गया,, और कुछ डरे डरे स्वर में उसने स्मृति से पूछा
"आप ठीक तो हैं ना मैडम, कोई तकलीफ तो नहीं?"
स्मृति कुछ बदहवास सी खुद को संभालती हुई बोली
" No No I am all fine"
"मैडम कहाँ जाना है टिकट कहाँ का दूँ"
बस कंडक्टर ne पूछा,,
तो स्मृति ने दबे स्वर में कहा "बिलसन्डा"
ये नाम लेते ही मानो फिर पुराने वक़्त ने उसे अपनी आगोश में ले लिया हो,,
कि पास बैठी एक आवाज ने फिर उसका ध्यान तोड़ा, "आप बिलसन्डा से हैं?"
एकाएक स्मृति का ध्यान उसकी तरफ गया,
देखते ही मानो उसके पैरों की ज़मीन ही खिसक गयी हो,,,
इतने वक़्त से जो उसने खुद को समेटा था मानो एक पल ना लगा हो सब बिखर के सामने पड़ा हो,,
पर इस बार उसने अपने भावों को सम्भाल कर उत्तर दिय "जी हाँ" । युवक उसकी बात सुनकर हल्का सा मुस्कुराया तो मानो स्मृति का दिल फट पड़ने को तैयार हो गया हो।
कि फिर से उस पास बैठे युवक ने सवाल किया
"माफ़ कीजिएगा,, आपको परेशान कर रहा हूँ पर पहले कभी देखा नहीं आपको इस कस्बे में।"
उसकी बात सुनकर ना चाहते हुए भी स्मृति ने जबाब दिया
"हाँ, मैं बहुत सालों बाद लौट रही हूँ।"
बस तभी बस रुकी और बस कंडक्टर ने आवाज लगायी "बिलसन्डा बिलसन्डा"
"excuse me" स्मृति ने बैग उतारते हुए आगे जाने की कोशिश की, कि तभी फिर से युवक ने टोकते हुए कहा "लाइये समान मैं उतार देता हूँ।"
पर स्मृति ने "No Thanks" कह कर बात को खत्म कर दिया,,
पर युवक मानों पीछा छोड़ने को तैयार नहीं था
"कस्बा छोटा सा है तो जल्द ही मुलाकात होगी" कह कर आगे बढ़ गया। तो एकाएक स्मृति के कदम भी उसकी ओर बढ़े और कुछ गुस्से और कटाक्ष भरे शब्द जैसे अपने आप उसके जुबान से निकले हों "क्यूँ नहीं, बहुत जल्द"।
स्मृति के शब्द मानो अनचाहे मेहमान की तरह युवक तक पहुंचे थे। जिसने उसके चहरे के भाव को अनचाहे ही बदल दिया था।
और युवक कुछ लंबे कदम लेते हुए वहां से निकल गया।
जिसके जाते ही स्मृति का मन किया कि फूट फूट के रो दे,,
पर वो इतनी कमजोर तो नहीं थी और हाँ आज उसने कई सालों बाद उसका सामना भी पूरे साहस से किया था।
"अरे बिटिया बड़े दिनन बाद आयी हौ" सामने एक रिक्शा लेके खड़े बूढ़े आदमी ने पूछा,
स्मृति ने दिमाग पे जोर डाला पर कुछ याद नहीं आ रहा था,
"पहिचानो नाय, कैसे पहचनियो, अब इत्ते बुढ्ढे जो हुई गए,
अरे हम चौधरी बाबा बिटिया तुम्हें रोज स्कूल लैय जात आहे"
उनकी इतनी सी बात सुन स्मृति का जैसे सारा डर गुस्सा सब गायब हो गया हो और एक हल्की सी मुस्कान उसके चहरे पे आगयी, उसके मुह से निकला "टाफी वाले बाबा"
और इतना कहते ही दोनों जोर जोर से हँसने लगे।
"अच्छा बताबौ बिटिया कहाँ जानो है" बाबा ने झुर्रीदार माथे पे कुछ और जोर देते हुए पूछा।
स्मृति ने भी मुस्कुराते हुए कहा कि "बाबा सरकारी दफ्तर जाना है"
ये कहते हुए स्मृति रिक्शे में बैठ गयी और बाबा ने भी ना जाने क्या क्या बातें करते हुए उसे कब सरकारी दफ्तर पहुचा दिया पता ही नहीं चला।
" लेओ बिटिया आय गाओ तुम्हारो दफ्तर" कहते हुए नीचे आने का इशारा किया तो स्मृति पर्स में हाथ डाल कुछ निकलने लगी तो बाबा ने उसे रोकते हुए कहा "बिटिया अब तुम्हऊ से पैसा लिअ का"
तो मुस्कुराते हुए स्मृति ने कुछ Toffee निकाल बाबा की हथेली पे रख दी और बोली "बाबा परसों इसी वक़्त यहां आजाना"
आँखे मानो कहना चाहती थी कि किसी और पे भरोसा नहीं है मुझको।
"ठीक है बिटिया हम आय जईयें तुम्हे लेन" बाबा बोल कर निकलने लगे तो स्मृति ने झुक कर उनके पैर छू लिए,
बाबा की आंखें नम हो आयीं "खुश रहो बिटिया" बस इतना ही बोल सके बाबा और फिर स्मृति ऑफिस की ओर जाने लगी तो एक कांस्टेबल ने बैग उठाकर उसको अंदर चलने को कहा।
अंदर पहुंचते ही सब स्मृति को देख खड़े हो गए और सलाम किया,, कि एकाएक उसकी नज़र कुर्सी पर बैठी एक मासूम सी बच्ची पर पड़ी,, जो डर से सहमी हुई थी।
स्मृति ने अपने जूनियर ऑफिसर से पूछा तो मानो स्मृति स्तब्ध खड़ी रह गयी हो, उस 8 साल की बच्ची के साथ पिछले कई महीनों से शारीरिक शोषण किया जा रहा था और घर वाले बदनामी के डर से कुछ बोल नहीं रहे थे,, और आज किसी कांस्टेबल ने बच्ची को रोते देखा तो सीधा पुलिस स्टेशन ले आया।
स्मृति ने ऑफिसर को घर वालों को बुलाने को कहा, तो ऑफिसर टोकते हुए बोला "But ma'am आप तो किसी और case के सिलसिले में",
उसकी आधी बात काटते हुए स्मृति बोली,,"फिलहाल इससे ज्यादा जरूरी कुछ भी नहीं, बस इसके घर वालों को बुला लो"
फिर स्मृति उस बची के पास पहुंची उसको कंधे पे हाथ रखा तो बच्ची मानो डर से चिल्ला पडी हो,,
स्मृति ने बच्ची को प्यार से दुलारा, उसको शांत करने की कोशिश की, पानी का गिलास उसको देते हुए बोली, "बेटा आपका नाम क्या है? " बच्ची के मन से मानो डर छट रहा हो, वो कुछ शांत होते हुए बोली, "अंकिनी",
स्मृति उसको शांत करा ही रही थी कि बच्ची के पिता वहाँ पहुँच गए,, "कहाँ है मेरी बेटी",,
स्मृति को आवाज कुछ जानी पहचानी सी लगी तो उसने मुड़ कर देखा और देखते ही मानो स्मृति आवाक रह गयी,"आप" यकायक ही उसके मुँह से निकला।
"आपकी बच्ची है जिसके साथ"
"रहने दो मैडम जी कुछ होगा नहीं बेमतलब ही इज्जत का जनाज़ा निकलेगा" उसने स्मृति की बात काटते हुए कहा। तो मानो स्मृति का आपा ही खो गया हो वो गुस्से में तमतमाते हुए बोली, "शर्म नहीं आती आपको बच्ची के साथ जो हो रहा है और आपको अपनी इज्जत की पडी है"
इसपर वो शख्स ने स्मृति से पूछा "अरे आपको इससे क्या लेना देना हैं कौन हैं आप"
इसपर जो स्मृति ने जबाब दिया उसको सुनकर मानो वो शख्स पत्थर बन गया हो,"मैं officer स्मृति गुप्ता, राजकुमार जी की पोती, शायद आप मुझे जानते हैं बचपन वाले ट्यूशन के कमरे से,
पहले भी मैं एक बचपन को बचा नहीं पायी जिसका मलाल अब तक है पर अब इसको मरने नहीं दूँगी, आपसे वादा है मेरा"
"तुम वो गुड़िया हो" बस इतना ही कह सका था और उसकी आँखे मानो शर्म से झुकी जा रही हों।
आज स्मृति को समझ आया था कि उसको फिर जिंदगी उन्हीं पुराने रास्तों पे क्यूँ लायी थी।
कुछ अलग सा सुकून था उसके चहरे पे मानो उसने अपना बचपन बचा लिया हो।