बात जब पति के आत्मसम्मान की हो
बात जब पति के आत्मसम्मान की हो
जैसे ही डोरबेल बजी और रिया ने दरवाजा खोला उसकी मौसी की ननद सुरेखा आंटी और उनकी भाभी रमा आंटी खड़ी थी।
"आंटीजी आज आप यहाँ अचानक ?"
"नहीं रिया बेटा माफ करना। हम तो वो कलावती से मिलने आये थे। वो उनका मकान तीसरे फ्लोर में है ना। हमनें देखा नहीं और भूल में तुम्हारा दरवाजा खटखटा दिया। अब ध्यान आया कि हम सेकंड फ्लोर पर हैं। वो इस अपार्टमेंट में सबके मकान एक जैसे हैं तो ध्यान ही नहीं रहा।"
"कोई बात नहीं आंटीजी अंदर तो आईये"।
"नहीं, नहीं, बेटा हमें देर हो जायेगी। वैसे भी कलावती आंटी के घर तो कोई नहीं है। उनकी चाबी भी हमारे घर पर ही है। वो और उनकी बहू शायद किसी काम से बाहर गई है। वे बस अब आते ही होगें।"
"जाकर काफी समय हो गया तो आप यहीं उनका इंतजार कर सकती हैं" रिया ने कहा।
रिया के बार बार मनुहार करने पर वे अंदर आ गए।
"तो बेटा कैसी है तेरी सास अब तो तुझसे बोलती है ना। अब तो तुझे तंग नहीं करती ना यहाँ आती जाती तो है ना कि अभी भी नहीं सुधरी?" रमा आंटी ने पूछा या ऐसे कहो पंचायती करनी चाही।
रिया कुछ बोलती उसके पहले ही मौसीजी की ननद सुरेखा आंटी ने कहा "बहुत दुख दिया बेचारी को, कुछ भी दिये बिना घर से निकाल दिया।"
रिया की आदत नहीं थी कि वह हर किसी के सामने अपना दुखडा रोये, तो बात टालने के लिए उसने कहा क्या लोगी आंटीजी आप चाय कॉफी।
नहीं बेटा कुछ नहीं तू यहां बैठ...(वैसे भी कुछ लोगो की आदत होती है दूसरों की जिंदगी में दखलंदाजी करने की, तो फिर से शुरु हो गई उनकी पंचायती)
कैसे चल रहा है मयंक का धंधा वगैरह ..सब ठीक है आंटी।
हाँ ,हाँ ,क्यों ना हो तुम्हारे पापा का हाथ जो है उसके सिर पर। ससुरालवालो का सपोर्ट है तो फिर काहे का टेंशन।
सही कह रही हो रमा मनोहर भाईसाहब का सपोर्ट नहीं होता तो बेचारी आज भी सास की दी हुई तकलीफ़े झेल रही होती।
उनके शब्दों से साफ झलक रहा था कि वो सहानुभूति नहीं जता रहे थे, बल्कि ताने मार रहे थे।
तो कब लिया ये मकान तुमने ? सुरेखा आंटी बोली
नहीं आंटीजी ये मकान तो किराए का है।
तो खुद का ही ले लेती। तुम्हारे पापा के पास पैसों की कोई कमी थोडे ही हैं।
अब रिया से और चुप नहीं रहा गया। क्योंकि बात उसके पति के आत्मसम्मान की थी। वह कब से उनका लिहाज कर रही थी, लेकिन कुछ लोग..
माफी चाहूंगी आंटीजी छोटा मुँह बड़ी बात लेकिन मेरी सास ने मुझे दुख दिया, कष्ट दिया वो मेरे कर्मों का फल था। उसके लिए मैं किसी को दोषी नहीं मानती। और हाँ रही बात पापा के पैसों से मकान खरीदने की तो एक बात बताना चाहुँगी। मेरे पति में कमाने की ताकत है। मुझे मकान खरीदने के लिये पापा से पैसे लेने की जरुरत नहीं है। जिस दिन हम खुद का मकान खरीदने के काबिल हो जायेंगे उस दिन जरूर खरीद लेंगे और हाँ मुहूर्त में आपको जरूर बुलायेंगे। और रही बात सिर पर पापा के हाथ की तो खुशकिस्मत है वो औलाद जिनके सिर पर माँ बाप का साया है। बिजनेस के लिए पापा से पैसे लिए इसका मतलब ये नहीं है कि हमारे घर का राशन पानी उनके पैसों से आता है। मेरे पति दिन रात मेहनत करते हैं। वक्त हमेशा किसी का एक जैसा नहीं रहता। बुरे वक्त में अपने ससुराल वालों से मदद ले ली उन्होंने तो क्या गलत कर दिया? बकायदा ब्याज पर पैसे लिए हैं। बुरे वक्त से गुजरे जरुर हैं, अपना ईमान नहीं बेचा है। पता नहीं लोगों की क्या आदत होती है अपने घर में लगी आग तो बुझा नहीं पाते और दूसरों के जख्मों पर नमक लगाने पहले पहुंच जाते हैं। एक ही सांस में बिना रुके रिया ने बहुत कुछ कह दिया।
"तुम तो बहुत कुछ कह गई रिया हमारा वो मतलब नहीं था"।
इतने में कलावती आंटी आ गईं और वे दोनों वहाँ से अपना सा मुंह लेकर चल दी।
रिया मन ही मन सोच रही थी शायद मुझे उनसे ऐसा बर्ताव नहीं करना चाहिए था। लेकिन उनका खुद का बेटा घर जवांई है और ये मेरे पति पर! छोड़ो अब जो हुआ सो हुआ। उनका मुंह बंद करवाने के लिये उनको जवाब देना भी जरूरी था। अगली बार मेरे ससुराल और पीहर की पंचायती करने से पहले कम से कम सौ बार सोचेंगी।
ये कहानी एक सत्य घटना पर आधारित है। तो कैसी लगी आपको मेरी कहानी नीचे कमेंट बाक्स में अपने सुझाव दे।
