बात बन गई

बात बन गई

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प्रतीक और नेहा गोवा के एक होटल में लगे झूले पर साथ बैठे बीते दिनों की मधुर यादों में खोए हुए थे।

"प्रतीक हम दोनों के माता- पिता कितने समझदार और खुले विचारों के हैं ना....." नेहा ने प्रतीक की ओर देख कर कहा

"हाँ, सचमुच हमें विवाह करने में ज़रा सी भी कठिनाई नहीं हुई, वरना कुछ लोगों के माता पिता तो मानते ही नहीं है।"

दोनों ही पुरानी यादों में खोए हुए से थे.....

नेहा और प्रतीक कॉलेज में साथ पढ़ते- पढ़ते पहले एक दूसरे की ओर आकर्षित हुए, फिर प्यार करने लगे। अंतिम वर्ष में दोनों का अच्छी कंपनी में नौकरी के लिए चुनाव हो गया। एक ओर दोनों अच्छी नौकरी मिलने पर खुश थे वहीं दूसरी ओर बिछड़ जाने के गम से उदास......

ट्रेनिंग के बाद दोनों को अलग शहर जाना था, सो दोनों मिले, कुछ गिले - शिकवे, वादों के बाद अश्रुपूरित नयनों से अपने गंतव्य की ओर चल दिए।

दीवाली की छुट्टियों में दोनों अपने घर लौटे तो नेहा की माँ बोली, "बेटा एक दो लड़कों से तेरे विवाह की बात चलाई है। ये काम जितनी जल्दी हो जाए उतना अच्छा है।"

"माँ, मै विवाह तो करूँगी पर प्रतीक से...." नेहा ने डरते डरते कहा

"ये प्रतीक कौन है, तूने कभी बताया नहीं...."

"माँ, है एक, मेरे साथ पढ़ता था..... मुझे लगा आप दोनों मना कर दोगे तो......."

"क्यों मना कर देंगे...?"

"क्योंकि वो अपनी जात का नहीं है..."

"अरे मेरी बिट्टो, ज़माना बदल गया है। आजकल जात- पात कौन मानता है। तेरी ख़ुशी में ही हमारी खुशी है..... आज चाय पर बुला ले, हम भी तो देखें हमारी लाडो का राजकुमार..... "माँ कहने लगी "मैं अभी तेरे पापा को बता कर आती हूँ।"

और फिर माता- पिता ने लड़के को देखा। उसके बारे में आवश्यक जानकारी ली और दोनों को विवाह सूत्र में बाँध दिया।

अब जबकि उनके विवाह को एक वर्ष पूरा हो गया था, तो दोनों ऑफिस से छुट्टी लेकर अपनी वर्षगाँठ मनाने गोवा आए हुए थे।


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