बारिश पसन्द है मुझे
बारिश पसन्द है मुझे
टप टप की आवाज
जमे पानी पर,
गिरते बूंदों की
जैसे मेरे नींद में
गिरती है याद तुम्हारी
बारिश पसन्द है मुझे
तुम्हारे जाने के बाद
मैं जाने-अनजाने भीग जाया करता हूँ..
बादल और मैं, टूट कर बरसते है
बिना खबर किये एक दूसरे को
अब नये चिढ़ ने जन्म ले लिया है
बादल के गरजने से डर कर
अब सीने से कोई नही लिपटता
मेरी बेचैनी बढ़ जाती है
और पाँव चलना शुरू करते है, किचन तक...
हाथ, उठा कर रखता है पतीला आग पर
दूध की छन्न सी आवाज,
और मैं मूड कर देखता हूँ
कहीं तुम दीवार की ओट से ताक तो नही रही!
चाय की पत्ती घुल रही होती है
जैसे मेरे होठ घुल जाया करते थे
तुम्हारे सुर्ख होठों से लिये
शक्कर सी मिठास मे, मैं दो प्याला भरता हूँ...
हाँ, आदत जो है तुम्हारे होने की बालकनी में,
चाय की चुस्की भरता हूँ
एक बारिश का झोंका
भीगा देता है चेहरा मेरा
जैसे किसी ने शिकायत भरा प्यार उछाला हो मुझपे...
मैं मुस्करा कर देखता हूँ
वही टप-टप की आवाज
खाली गमले में
जमे पानी पर गिरते बूंदों की...
सोचता हूँ बरसात खत्म हो तो
ऑर्चिड उगाऊँ गमले में।