बागबान (नारंगी रंग )
बागबान (नारंगी रंग )
जितने मुंह उतनी ही बातें। प्रत्येक जन शीला की रिटायरमेंट पार्टी में उसकी इतनी तारीफ कर रहा था कि शीला खुद हैरान हो गई उसमें यह भी गुण है? खैर जो भी हो जिस तरह से प्रत्येक जीवन का मरण निश्चित है उसी तरह से सरकारी नौकरी ज्वाइन करने पर रिटायरमेंट की तिथि भी निश्चित है। क्योंकि वह खुद ही बैंक में कार्यरत थी और लोगों की रिटायरमेंट के केस भी डील करती थी तो प्रत्येक जन उसको अपनी रिटायरमेंट के खट्टे मीठे अनुभव सुनाना जरूरी समझते थे।
शीला सिर्फ मुस्कुरा कर रह जाती थी। घर में दूर रहने वाली बड़ी बहू चाहती थी की शीला जी उनके पास आ कर रहे तो उसे मिंटू को क्रैच में नहीं डालना पड़ेगा। मंझला बेटा जो विदेश में रहता था उसने भी चाहा था की रिटायरमेंट के बाद मम्मी और पापा कुछ दिन उसके पास आ कर रहे। छूटका जिसका विवाह भी नहीं हुआ था और बाहर नौकरी कर रहा था शीला जी की इच्छा थी कि रिटायरमेंट के बाद कुछ दिन उसके पास ही गुजारे जाएं। दोनों बेटियों के बच्चे भी नानी के रिटायर होने का इंतजार कर रहे थे कि अब वह जब चाहे नानी के घर रहने आ सकते हैं। अब नानी को कभी भी ऑफिस नहीं जाना होगा।
21 वर्ष से 60 वर्ष तक नौकरी करते हुए और बच्चे पालते हुए जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव देखे। तब मन होता था की घर में बैठकर सिर्फ बच्चों का बचपन देखा जाए। सासू मां जिन्होंने बच्चे और घर को संभाला इससे पहले कि अब समय मिलने पर वह उन्हें संभाले वहीं इस संसार से विदा ले चुकी थी। ऐसा ही मायके में माता पिता के साथ था।
अपनी रिटायरमेंट पार्टी में शीला को समझ नहीं आ रहा था कि रिटायरमेंट दुख का कारण है या खुशी का। अपने बारे में लोगों के द्वारा प्रकट किए हुए उद्गार और उनका प्यार देखकर ऐसा लग रहा था मानो कभी रिटायर ही नहीं होना चाहिए। कभी पुराने रिटायर हुए साथियों के विचार काफी डरा के उद्वेलित भी कर रहे थे कि कहीं आगे का रास्ता अंधकारमय तो नहीं होगा। बस सबकी हर समस्या की जड़ केवल यही थी कि रिटायर होने के बाद समय का कैसे उपयोग करें। बीमार होकर ,परेशान होकर या---------?
घर आते हुए शीला ने सबसे पहला काम तो यह करा कि गहनों की दुकान से जाकर अपने लिए एक खूबसूरत सी घुंघरू वाली पायल ली और बजने वाली कांच की चूड़ियां। आगे का टाइम कैसे होगा यह तो बाद में देखेंगे, पूरी जिंदगी अकाउंट्स में काम करते हुए रोजाना की भागा दौड़ी में भर भर के चूड़ियां पहनना और घुंघरू वाली पायल पहनने की इच्छा तो मन की मन में ही रह गई थी। आते हुए भर भर के हाथ मेहंदी भी लगवाई थी। हालांकि उसकी बेटियां और बहुएं करवा चौथ पर उसके भी मेहंदी तो लगातीं थी लेकिन उसे कभी अच्छा नहीं लगा कि ऐसे भरे भरे मेहंदी के हाथ से कस्टमर को पेमेंट करें या पैसे लें। आज निश्चिंत होकर उसने हाथों के दोनों तरफ मेहंदी भी लगवाई।
दूसरे दिन उसने घर पर रिटायरमेंट पार्टी रखी हुई थी। उस पार्टी में उसने अपनी लगभग सारी दोस्तों को बुलाया हुआ था। शाम को पार्टी खत्म होने पर जब बच्चों ने उन्हें अपने साथ चलने का न्योता दिया तो शीला जी और उनके पति ने फैसला सुनाया कि पूरी जिंदगी घर दफ्तर और जीवन के उतार-चढ़ाव में ही बिताई गई है, आगे क्या करेंगे यह फैसला तो बाद में लिया जाएगा फिलहाल वह दोनों इस इतवार को पहले तो साउथ टूर की ओर निकल लें। बुकिंग सिर्फ जाने की करवाई है आने की फुर्सत से बाद में ही देखी जाएगी। उसके बाद पूरा भारत भ्रमण करेंगे।
हंसते-हंसते दोनों बोले हमने भी सुना है कि रिटायरमेंट के बाद जिंदगी बिल्कुल बदल जाती है इसी कारण हम यह बदलाव प्रकृति पर छोड़ देने की बजाए खुद ही क्यों ना कर लें। जीवन में बहुत सी अधूरी इच्छाएं जो हम दोनों की अधूरी रह गईं है ,पहले तो उन्हें पूरा करने की कोशिश करेंगे। अब यह देखेंगे कि कैरम खेलने में और ताश में जीत किसकी होती है।
हमें अपने जिंदगी की पिक्चर का अंत बागबान या किसी दुखांत पिक्चर के जैसे नहीं करना। हां बच्चों की जरूरत पड़ने पर हम उनके पास आते जाते रहेंगे वरना तुम सब तो आते जाते रहना ही हमारा घर तुम्हारे स्वागत के लिए हमेशा खुला ही रहेगा। इतने में रामू सबके लिए चाय ले आया था और पूरा घर हंसी के ठहाकों से गूंज रहा था।
पाठकगण उनके जीवन की नई शुरुआत जो कि बहुत अच्छी तरीके से हुई है वह आगे भी अच्छी ही रहे इसी भावना के साथ मैं इस ब्लॉग को खत्म करती हूं पसंद आने पर कृपया इसे लाइक फॉलो और शेयर करना ना भूलें।
