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इच्छित जी आर्य

Drama

3  

इच्छित जी आर्य

Drama

अविश्वसनीय

अविश्वसनीय

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अभी अभी गुलाबी ठण्ड मैके से ससुराल गयी ही थी कि कोयल कूक-कूक तो गौरैया चहचहा कर आपस में चुहलबाजी कर रहीं थीं। मंगरू बाबा के घर के सामने ही नीम और आम के वृक्ष सामयिक परिवेश और वातावरण में घुलते हुए प्रदूषण पर चर्चा कर रहे थे। मंगरु का पोता खदेरन और भुलई का बेटा घुरहू दोनों कुश्ती में अपने अपने दाँव और करतब को प्रमाणित करने में एक-दूसरे से भिड़े हुए थे। यही फागुन माह चल रहा था। भारत देश की यही विभिनता ही एकता को प्रदर्शित करती है। रँगों और अबीर से गले मिलने वाले लोग आपस में कुश्ती भी आजमाते है, वह भी पूरी ताकत से। तेज धूप थी। आसमान आज साफ-सुथरे दर्पण में स्वयं की छवि निहार रहा था कि अचानक ही गगनभेदी गर्जना से आकाश और धरती दोनों काँप उठे। चिलचिलाती धूप में बादल का गर्जना आश्चर्यचकित कर देने वाला था। घुरहू अपने धोपीपाटा दाँव से खदेरन को पटकने ही वाला था, कि दोनों ने एक दूसरे के बदन को शिथिल कर छोड़ दिया एक बार ऊपर गगन में देखा तो उन्हें एक जलता अंगारा दिखाई दिया। खदेरन जोर से चिल्ला पड़ा ...बाबा देखो सूरज टूटकर गिर रहा है .. है...। यही वाक्य घुरहू भी दोहराते हुए अपने घर की ओर भागा...।  

गर्जना इतनी क्रूर थी कि आशंकावश पूरा का पूरा गाँव घर से बाहर निकल कर आसमान में ताकने लगा। तभी एक बड़ा सा काला पत्थर घुरहू के सिवान में आकर गिरा। देखते ही देखते पूरा गाँव घुरहू के सिवान में एकत्र हो गया। सब अपनी-अपनी छोड़ रहे थे- कोई कहता काली माई का प्रकोप है। तो कोई कहता अबकी हमने होली के आठों पर देवी नहीं मनाया तो हमसे शीतला माता रूठ गयी हैं। तभी घुरहू के बाबा एक हाथ में लाठी पकड़े और एक हाथ में काला चश्मा लिए नुहरे-नुहरे पहुँचे। का? देखत हो सब जने। कोई कुछ बतईहे? यह कह कर अपने हाथ का काला चश्मा लगा कर बोले अरे! यह तो कौनो दैत्य है। उसी से प्रश्न करते हुए ...अरे! भाई तुम कौन अहिहो? तभी घुरहू के बप्पा जोर से हँस पड़े और बोले- अरे बप्पा जब तुम्हका पावर के चश्मे से नहीं दिखता तो हमारे इस काले चश्में से कैसे देख लिह्यो? सारे गांव वाले इस बात पर हँस पड़े। तभी घुरहू अपने बाबा का पावर वाला चश्मा उठा लाया। बाबा ने उसे लगाया तो उन्हें कुछ भी नहीं दिखाई दिया। तो अपने बेटे रामसिंह को डाँट कर कहा अपने बाप को उल्लू बनाते हो। लाओ वही हमार वाला चश्मा...। अब तक लखनऊ से आये परसादी भैया और उनका बेटा राहुल भी घटना स्थल पर पहुंच चुके थे। राहुल ने जैसे ही उस पत्थर को देखा उसने अपने पापा परसादी लाल से कहा..यह तो उल्का पिंड है। हमारे आकाश में हजारों-लाखों उल्का पिण्ड हवा में तैरते रहते हैं और जैसे ही इसकी आयु समाप्त होती है तो ये हमारी धरती या किसी और ग्रह से टकरा कर टूट जाते हैं। एक बार फिर भीड़ में कहा-सुनी बढ़ने के साथ ही हँसी का फव्वारा भी

छूट पड़ा। अब तक बाबा फिर वही फैशनेबल वाला काला चश्मा लगा चुके थे। 

बाबा ने एक बार फिर से बड़ी गम्भीर मुद्रा में उस पत्थर की ओर देखा..और बोले हम बुढाये गएन हैं तो सब हमार मजाक उड़ावत हैं। अरे यह तो वही जमोघा है। इसे यहीं पत्थर के नीचे दब कर मर जाने दो। पूरे गाँव को बहुत सताता है। अब तक उस पत्थर में दबे जीव ने भी कराहना शुरू कर दिया था। गांव वालों ने जब कराहने की आवाज सुनी तो सब डर गए। लेकिन बाबा के आत्मविश्वास के बल पर वे सब कुछ देखते-सुनते रहे।

बाबा- (उस जीव से) सच बताओं तुम्ह हो कौन?

जीव- मैं कोरोना हूँ

बाबा- तुम कोरोना हो तो यहाँ क्या लेने आये हो?

जीव- हम आये नहीं हैं। मुझे लाया गया है। आपको याद होगा कि जब भारत का चंद्रयान 2 चाँद के सफर पर गया और फेल हो गया था। उसी समय चीन का भी यान चन्द्र पर सफलता पूर्वक पहुँचा था। चीन ने हमें दावत दी। हम उनके यहाँ गए तो हमें चमगादड़, साँप, छिपकली, मटन मुर्गा खिलाया और पुष्ट किया। अब हम वापस अपने ग्रह जा रहे थे तो भारत की पवित्र भूमि के ऊपर से गुजरे ..... हमें बहुत जोर का झटका लगा और हम नीचे आ गिरे। अब हमारी जिंदगी आपके हाथ में है। मुझे बचा लीजिए!

बाबा- बेटा! तुम चाहे जमोघा हो चाहे करोना हो। तुम्हें हम लोग बचाएँगे जरूर...अरे! कोई गंगाजल तो लाओ।

जीव- नहीं। नहीं। गंगाजल और तुलसी की पत्ती बिल्कुल मत लाना वरना तो मैं उसके स्पर्श से ही मर जाऊँगा।

बाबा- तुम्हारे शरीर से रक्त रिस रहा है, पीपल का दूध तो लगा सकते हैं....।  

जीव- नहीं।

बाबा- तो हम तुमका कैसे बचाई। कोई वैद्य या डॉक्टर बुलाई ?

जीव- नहीं। आप लोग बस मुझे मेरा हाथ पकड़ कर बाहर निकाल लें तो मैं स्वयं ही आपकी गाय-बकरी और मुर्गे खाकर स्वस्थ हो जाऊँगा.....।

बाबा- अब बात हमारे भेजे में आ गयी। सुनत हो पंचों हम इनके जान बचाई और ई हमार जीने के सहारा ही छीन लैहे। और कल बकरी मुर्गा न बची तो हमही का मुर्गा बनाए के खा जैहैं। बड़े घुस्से में बाबा बोले अब हम तुमका एकदम से मुक्ति ही दिलायब ।

(गाँव वालों से मुखातिब होते हुए) देखो पंचों जब तक इनके साँस चलति है तब तक कोऊ जने इनके पास न फटकेउ। ऊके बाद हम सब मिलके इनके क्रिया करम करके मूलरूप में इनके पैतृक देश भेज देब। यही इनका सच्चा इलाज और सद्गति होगी।

आज सारे गांव वालों को 22 मार्च दिन रविवार वर्ष 2020 का इंतजार है। तब तक कोई भी कोरोना के पास नहीं जाएगा। सब अपने-अपने घर में मस्ती करेंगे।

जय हिन्द    जय जगत  ऊँ शांतिः

(यह कहानी बिल्कुल काल्पनिक है। बस इतना बताना चाहता हूँ कि विज्ञान/विकास से यदि लाभ होता है तो नुकसान भी हो सकता है। हमें सतर्क रहना होगा।)



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