और मैं हंस पड़ी!

और मैं हंस पड़ी!

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गर्मी का मौसम था और मैं बस स्टैंड पर खड़ी बस का इंतजार कर रही थी । चिलचिलाती धूप थी और स्टैंड पर सिर छुपाने के लिए कोई पेड़ या शेड नहीं थी। मजबूरन सड़क पर खड़े होकर इंतजार करना पड़ रहा था। इतनी देर में एक बस आती हुई दिखाई दी। लेकिन वह मेरी बस नहीं थी। स्टैंड पर बस रुकी। उसमें से जो सवारी खिड़की की तरफ बैठी थी, वह मुझे देखकर मुस्कुराने लगी । मुझे बड़ा अजीब लगा और मैं उस तरफ से मुंह फेर, दूसरी ओर देखने लगी। इसी तरह से 1-2 बसें और आई और फिर से वही लोगों का मुझे देख मुस्कुराना । एक तो गर्मी, ऊपर से लोगों का बेवजह मुझे देखकर यूं मुस्कुराना। मुझे परेशान कर रहा था।

तभी स्कूल की लड़कियां स्टैंड पर आई। उनमें से कुछ लड़कियां मेरे पास आकर बोली " आंटी आपका पूरे मुंह पर सिंदूर लगा हुआ है। साफ कर लीजिए।" तभी दूसरी लड़की हंसते हुए बोली " आंटी आप बिल्कुल भूल-भुलैया फिल्म की मंजुलिका लग रही हो इस हालत में।" अब मुझे सारा माजरा समझ आ गया था कि पसीनों के कारण बहकर सिंदूर मुंह पर आ गया होगा और पसीना पोछने के चक्कर में मैंने उसे सारे मुंह पर फैला दिया।

मुंह साफ करते हुए, मैं भी उनकी हंसी में शामिल हो गई।



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