STORYMIRROR

Bhavna Thaker

Drama

4  

Bhavna Thaker

Drama

और होली मन गई

और होली मन गई

2 mins
225

पूरा मोहल्ला होली के रंगों से खेलते झूम रहा था। देहरी पर खड़ी पच्चीस साल की सुमन वैधव्य के धवल रंग से लिपटी शून्य में तक रही थी, बेटी की भावनाओं को बखूबी समझती थी माँ, पर समाज के ठेकेदारों से डरती नियमों के आधीन माँ ने टकोर की सुमन बेटी होली खेलने के तेरे दिन नहीं रहे बेटी भीतर आजा, उजड़ी मांग में अब गुलाल शोभा नहीं देता। कि इतने में पडोस के यहाँ वर्मा जी के घर अमरिका से आया उनका भांजा अथर्व वैधव्य के दुन्यवी नियमों से अंजान सुमन के गोरे गाल हैपी होली कहते रंग बैठा।

सारे लोग बुत की तरह फटी आँखों से देखते रह गए, सुमन थर्रथरा कर, घबरा कर काँपती, बिलखती अंदर चली गई, पर सुमन के दादाजी हाथ पकड़ कर सुमन को सबके बीच ले आए और सारे नियम तोड़ते हुए बोले अब रंग ही गई हो तो जमकर खेलो बेटी तुम्हें भी पूरा हक है होली खेलने का। कब तक हम अठारहवीं सदी वाले दकियानुसी रिवाज़ों से लिपटे रहेंगे किस्मत ने तुम्हारे साथ खेल खेला उसमें तुम्हारी क्या गलती है। इतनी छोटी उम्र में मैं तुम्हें इस रुप में नहीं देख सकता, पूरी दुनिया रंग-बिरंगी है एक मेरी बच्ची क्यूँ बेरंग रहे।

इस पर अथर्व ने सुमन की मांग में गुलाल मलते हुए कहा दादाजी काश कि सबकी सोच आपके जैसी मुखर होती, अब सिर्फ़ इस साल नहीं जन्म जन्मांतर तक आपकी सुमन मेरे संग होली खेलती रहेगी। और घर वालों के साथ पूरे मोहल्ले ने इस रिश्ते पर मोहर लगाते अथर्व और सुमन को हरे, नीले, पीले, लाल, गुलाबी रंगों से सराबोर रंग दिया, और एक धवल आसमान सा फ़िका जीवन इन्द्रधनुषी रंगों में नहाते अथर्व की आगोश में पिघल गया।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama