अटूट

अटूट

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देव का सिर दर्द से फटा जा रहा था। वह कहीं दिनो से ठीक से सो नहीं पा रहा था। उसकी पत्नी जया पिछले एक महीने से अपने मायके में रही थी। कही दिनों से उनके बीच तनाव चल रहा था। बात-बात पर उनके बीच झगड़ा हो जाता। आखिरी बार तो बात हाथा-पायी पर उतर आयी थी। उसके बाद वह अपने घर चली गयी। अब उनके बीच बात-चीत भी नहीं होती थी। देव ने कई बार चाहा कि उनके बीच सुलह हो जाए पर बात और बिगड़ गयी। अब तो जया का पूरा परिवार देव से घृणा करने लगा था।

देव ने करवट बदली और सोने की कोशिश की पर नींद तो आने का नाम ही न लेती थी। उसे वह दिन याद आया जब उसने काॅलेज के पहले दिन जया को देखा था। वे दोनो कितनी जल्दी एक दूसरे के करीब आ गए। उनकी दोस्ती कब प्यार में बदल गयी पता ही नहीं चला। दोनों ने अपने परिवारों की इच्छा के विरूद्ध विवाह कर लिया। शुरू के कुछ दिन तो सब ठीक रहा लेकिन फिर हालात बिगड़ने लगे। प्यार तो जैसे गायब ही हो गया। आए दिन होने वाले झगड़ो से वे दोनो ऊब चुके थे।

देव सोच में पड़ गया आखिर ऐसा क्या हो गया कि उनके अटूट प्रेम में दरार पड़ गयी। देव उठा और उसने अपनी माँ को फाॅन किया। उसने अपने और जया के बीच हुयी सारी बातें अपनी माँ को बताई। सब सुन कर माँ ने कहा, "देखो देव, स्वार्थ, अहंकार और गलतफहमियाँ वे हत्यारे है जो किसी भी रिश्ते का कत्ल कर सकते है। क्षमा, त्याग और प्रेम से ही तुम्हारा रिश्त जीवन-भर अटूट बना रह सकता है। अपने प्रेम को उन हत्यारों के चँगुल से बचा कर रखना। तुम बहु से बात करो और उसे प्यार से समझाओ। देखना सब ठीक हो जाएगा।"

माँ की बातों ने देव की आँखें खोल दी। उसने प्रण लिया कि वह अपने और जया के प्रेम को सदैव इन हत्यारों से दूर रखेगा।


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