अटूट-बंधन
अटूट-बंधन
"मेघा--, मेघा--क्या कर रही हो? प्लीज यार, अब माफ़ भी कर दो। आज के बाद कभी देर से नहीं आऊँगा। तुम्हारी कसम!"
मेघा, जो इतनी देर से मुँह फुलाए इधर से उधर घूम रही थी, यह सुनकर रोहित को देखने लगी। उसने धीरे से कहा, 'पक्का न।'
"हाँ, बिल्कुल पक्का, माय डियर। मेघा---सुनो न, प्लीज़। चलो खाना खायें। बहुत भूख लगी है। जल्दी से कुछ खाने को दो-------, प्लीज़ यार---जल्दी करो।"
यह कहते हुए रोहित ने मेघा को कंधों से पकड़कर उठा दिया। मेघा अनमने भाव से उठकर किचन में चली गई और खाना गर्म करने लगी। न चाहते हुए भी उसे रोहित पर गुस्सा आ रहा था।
उधर रोहित हाथ-मुँह धोकर जल्दी से खाने के लिए बैठ गया। उसे सच में बहुत भूख लगी थी। आज सुबह से ऑफिस में काम बहुत ज्यादा था। डेली छुट्टी के समय ही बॉस रोहित को कुछ ऐसा काम बताते, जो उसे तुरंत ही करके देना होता। उसने कई बार बॉस से कहा भी कि उसकी वाइफ उसके देर से घर जाने पर नाराज़ होती है। इसलिए आप दिन में ही उसे पूरा काम बता दें। लेकिन बॉस को तो उसे परेशान करने में ही मज़ा आता था। तभी मेघा ने आकर खाना परोसा और बिना कुछ बोले जाने लगी।
यह देख रोहित ने झट से मेघा का हाथ पकड़ा और उसे अपने पास ही बैठा लिया। लेकिन मेघा अपनी नाराजगी के चलते ठीक से देख भी नहीं रही थी।
रोहित ने मेघा के गालों को छूकर प्यार से कहा,'मेघा--,प्लीज़ मेघा--। कुछ तो बोलो यार--। मुझे तुम्हारी यह चुप्पी खल रही है। मैं तुम्हें ऐसे नहीं देख सकता। मुझे तो अपनी वही-- चुलबुली मेघा चाहिए।'
तब भी मेघा ने कोई जवाब नहीं दिया। रोहित, मेघा के आगे-पीछे घूमकर मेघा को हर तरीके से मनाने की कोशिश कर रहा था। लेकिन मेघा-- बिना कोई जवाब दिये कमरे में चली गई और चादर ओढ़कर बिस्तर पर लेट गई। आज मेघा को बहुत ज्यादा बुरा लग रहा था। अभी उसकी शादी के केवल सात महीने ही तो हुए थे। लेकिन फ़िर भी पिछले दो महीनों से रोहित कभी भी समय पर घर नहीं लौट रहा था। डेली वह मेघा को ऐसे ही मना लेता था। किंतु आज मेघा की सुबह से ही तबियत खराब थी। इसलिए वह दिनभर अकेली रहकर परेशान हो गई थी। आज उसने सोच लिया था कि चाहे कुछ भी हो जाये, वह चुप ही रहेगी।
उधर रोहित बहुत ज्यादा मायूस हो गया। उसे समझ नहीं आ रहा था, कि वह क्या करे। उधर ऑफिस की टेंशन, इधर घर की। लेकिन रोहित, मेघा को ऑफिस की टेंशन के बारे में बताना नहीं चाहता था। तेज भूख के कारण उसने खाना शुरु किया। पर खाना उसके गले से नीचे नहीं उतर रहा था। इसलिए उसने खाना ढककर किचन में रख दिया और पानी पीकर कुर्सी में बैठे-बैठे ही सो गया।
उधर मेघा भीगी आँखें लेकर सो गई। रात दो बजे, अचानक मेघा की नींद खुली। उसने कमरे में चारों ओर देखा। रोहित के न दिखने पर, मेघा डर गई। वह जल्दी से उठकर कमरे से बाहर आई तो देखा कि वह कुर्सी पर बैठे-बैठे ही सो रहा है। यह देख मेघा को बहुत गुस्सा आया और ग्लानि भी हुई। उसने रोहित को उठाने के लिए आवाज़ दी। पर वह नहीं उठा तो मेघा ने उसे हिलाने के लिए उसके हाथ को छुआ। रोहित को छूते ही मेघा का सारा गुस्सा पल भर में ही गायब हो गया। रोहित का पूरा शरीर तेज बुखार से तप रहा था।
मेघा, परेशान और चिंतित हो उठी। उसने झिंझोड़कर रोहित को उठाया। रोहित ने मुश्किल से आँखें खोलकर मेघा को देखा। उसने अपनी टूटती आवाज़ में कहा, "मेघा, --मैं जानबूझकर देरी से नहीं आता। --बॉस छुट्टी के समय ही काम सौंप देते हैं। ---जो मुझे करके ही आना होता है। ---तुम्हारी कसम मेघा! मैं काम जल्दी निबटाने के चक्कर में खाना भी नहीं खाता आजकल।"
यह सुनते ही मेघा ने रोते हुए, रोहित को अपने गले से लगा लिया। रोहित बुखार में बेहोशी की हालत में बड़बड़ा रहा था। 'मेघा, खाना दो प्लीज़। बहुत भूख लगी है।'
मेघा ने इधर-उधर देखा। थाली में खाना वैसे ही रखा था। यह देख मेघा तड़प उठी। उसने मुश्किल से रोहित को उठाकर खाना खिलाया। फ़िर मेडिसिन दी और कमरे में ले जाकर लिटा दिया।
आज मेघा अपनी परेशानियों से दूर होकर नम आँखों से मुस्करा रही थी।

