प्रिय सखी के नाम पत्र -
प्रिय सखी के नाम पत्र -
प्रिय सखी मधु ,
आज सालों बीत गये, तुमसे मिले। मोबाइल पर भी बातें केवल नाममात्र की ही होती है, किंतु हृदय की सभी बातें चाहकर भी नहीं हो पाती। कभी पहले से सोची बातें, उस समय याद नहीं रहती और कभी समायाभाव होने के कारण ठीक से बातें नहीं हो पाती। इसलिए आज फिर से पत्र को अपनी बातें कहने-सुनने का जरिया बना रही हूँ।
पत्र लिखते हुए, तुम्हारी मौजूदगी का एहसास बहुत करीब महसूस कर रही हूँ। हृदय तुम्हारे एहसास से सराबोर है। कहाँ से शुरु करूँ, कुछ समझ नहीं आ रहा। वक़्त जैसे फिर वहीं ठहर गया है। तुम्हारी बोलती आँखें! दिल की गहराइयों तक महसूस होतीं हैं।
तुम्हारा रूठना! तुम्हारे प्रेम को फिर याद दिलाता है। तुम्हारे अलावा आज तक कभी किसी को अपने इतने करीब महसूस नहीं किया। जीवन में केवल तुमसे ही हृदय से जुड़ पायी हूँ।
आज के इस माहौल में, जब हम सबसे दूर हो रहे हैं; तो क्यूँ न दिलों को जोड़े रहने का प्रयास करते रहें। कुछ अपनों को अपनों से जोड़ें रखें और कुछ गैरों को उनके अपनों से मिलाने का प्रयत्न करें। सभी को इस मोबाइल की दुनिया से बाहर निकालने की छोटी-सी कोशिश करें।
इसके कारण जो बुजुर्ग, बच्चे कहीं अकेले पड़ गये हैं, उन्हें मानसिक संबल प्रदान करें। जो अकेलेपन के भय के साये में जीने को मजबूर हैं, उनके भय को दूर कर जीने का उत्साह भरें। जहाँ हमारे आस-पास कोई इस रोग(मोबाइल) से अपनों को खोने लगे हों, तो उन्हें अपनी दुनिया फिर से पाने में मदद करायें। खुद खुश रहकर, दूसरों को खुश रहने की दिशा देकर मुस्कराना सिखायें।
शायद! हमारी यह छोटी-सी कोशिश किसी के चेहरे की मुस्कराहट और जीने का सबब बन जाये।
"आओ मिलकर ये अलख जगायें।
दिलों से दिलों की, दूरियाँ मिटायें।।"
आज के लिए इतना ही, बाकी बातें फिर लिखूँगी। अपना और अपनों का हमेशा ध्यान रखना। भले ही आज हमारे घरों से चाहे मीलों दूरी हों, पर दिलों से तो सदा ही पास रहेंगे।
कहने को तो इतनी बातें हैं कि वक्त भी कम पड़ जाएगा। किंतु तुम भी घर-बच्चों में ज्यादा व्यस्त हो। इसलिए अपनी बातों को यहीं विराम देती हूँ।
इसी उम्मीद के साथ--
तुम्हारी अपनी
प्रतिमा
दिनांक- अप्रैल 10, 2024
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